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*शोषकों की पहचान के मामले में आरएसएस और अम्बेडकर में अन्तर*
अम्बेडकर ने कहा है– “मुट्ठी भर लोगों द्वारा बहुसंख्यक जनता का शोषण इस लिए संभव हो पा रहा है क्यों कि उत्पादन के संसाधनों पर मुट्ठी भर लोगों का मालिकाना बना हुआ है।” इसका समाधान बताते हुए कहते हैं कि “इसे रोकने के लिए, राज्य को प्रमुख उद्योगों, कृषि और उत्पादन के अन्य साधनों का स्वामित्व और नियंत्रण रखना चाहिए, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका उपयोग पूरे समाज के लाभ के लिए किया जाए।” – “The concentration of the means of production in the hands of a few leads to the exploitation of the many. To prevent this, the State must own and control the key industries, agriculture, and other means of production, ensuring that they are used for the benefit of society as a whole.” ( Dr. Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches, Vol. 1 Section I, Clause 3, States and Minorities—Government of Maharashtra, 1979– पेज 408-409)
अम्बेडकर का मानना था कि जो उत्पादन के संसाधनों का मालिक है वही शोषण कर सकता है, अतः शोषण से बचाने के लिए उन्होंने उत्पादन के संसाधनों के राष्ट्रीयकरण की वकालत किया। (राज्य और अल्पसंख्यक पढ़िए) सही मायने में यही राजकीय समाजवाद, डा. अंबेडकर का सपना था। इस सपने को पूरा करने के लिए सवर्णों से नहीं लड़ना था बल्कि सिर्फ बड़े-बड़े धनपतियों से लड़ना था जिनकी संख्या तकरीबन अधिकतम् 2 लाख के आस-पास होगी।
मगर आरएसएस द्वारा प्रेरित जातिवादी नेताओं ने 15 बनाम 85 का अप्राकृतिक और अवैज्ञानिक बँटवारा कर दिया। इस प्रकार 2 लाख धनपतियों से लड़ने की बजाय तकरीबन 22 करोड़ सवर्णों को ललकार दिया। इस प्रकार अनायास ही लगभग 21 करोड़ गरीब सवर्णों को भी उन दो लाख शोषकों के साथ खड़ा करके उनकी शक्ति बढ़ा दिया। एससी एसटी ओबीसी में जो क्रीमीलेयर हैं उनमें उच्च जातियों के धनी लोगों की गहरी पैठ होती है। कुछ अपवादों को छोड़कर एससी-एसटी ओबीसी के क्रीमीलेयर अक्सर हिन्दुत्व के नाम पर शासक वर्गों के साथ ही रहते हैं।
यूं तो आरएसएस ऊंची जाति को शोषक नहीं मानता। वह तो शोषक और शोषित का नाम नहीं लेता। मगर आरएसएस का जो अम्बेडकरवाद है, जिसे बामसेफ और बसपा जैसे संगठन फैला रहे हैं, उसके अनुसार जो लोग ऊँची जाति में पैदा हुए हैं वही लोग शोषण करते हैं, ऊँची जाति में पैदा हुए लोग गरीब ही क्यों न हों, आरएसएस के अम्बेडकरवाद के अनुसार, वे लोग शोषक हैं। बामसेफ व बसपा जैसे संगठनों के 15 बनाम 85 के मूल में यही धारणा है। यह धारणा गलत और अवैज्ञानिक है। इस गलत धारणा के कारण ही बामसेफ और बसपा जैसे संगठन उत्पादन के संसाधनों के मालिकों का कोई विरोध नहीं करते। बल्कि कुछ सवर्ण जातियों की खिलाफत करते हैं। वे शोषण से बचने के लिए बड़े-बड़े पूंजीपतियों के मालिकाना हक के राष्ट्रीयकरण या समाजीकरण की बात नहीं करते सिर्फ नौकरियों में आरक्षण की वकालत पर जोर देते हैं। इस तरह जातीय संघर्ष बढ़ा कर वर्णव्यवस्था को मजबूत करते हैं, जिससे आरएसएस का हिन्दुत्व मजबूत होता है और धार्मिक नफरत बढ़ती है, जनता आपस में ही लड़ती है। इससे आरएसएस के धन्ना सेठों का मालिकाना बहुत सुरक्षित हो जाता है।
*रजनीश भारती*
*जनवादी किसान सभा*
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