बिहार में भाजपा की जीत का असली कारण
भाजपा सरकार धर्मनिरपेक्ष है- इसने किसी जाति, धर्म, पंथ, रंग, लिंग, नस्ल के खिलाफ मँहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सूदखोरी, जमाखोरी, मिलावटखोरी, नशाखोरी, जुआखोरी नहीं बढ़ाया है। बल्कि सभी गरीबों के खिलाफ बढ़ाया है। इसने अपनी पूर्ववर्ती कांग्रेस की सरकारों की तरह सभी गरीबों के खिलाफ ही हमले किए हैं। भाजपा साम्प्रदायिक उन्माद बढ़ा रही है मगर हमला सभी गरीबों के खिलाफ कर रही है।
परन्तु
विपक्षी लोग भाजपा की साम्प्रदायिकता का जवाब वर्गचेतना से नहीं दे रहे हैं, बल्कि जातिचेतना से दे रहे हैं। यहां तक कि कई बार जाति को ढाल बना कर सुरक्षात्मक खेलते रहे हैं। जब कि जाति चेतना साम्प्रदायिक चेतना को मजबूत कर रही है। जयभीम लाल सलाम के नारे लगाकर कुछ वामपंथी भी भाजपा की साम्प्रदायिक चेतना के खिलाफ जाति चेतना का इस्तेमाल कर रहे हैं। जाने या अनजाने वे भाजपा को मजबूत बना रहा है
ओवैसी जैसों को पता है कि हिन्दू 80% हैं। अतः उनकी साम्प्रदायिकता को 14% मुस्लिम साम्प्रदायिकता से नहीं हराया जा सकता फिर भी वे मुस्लिम साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दे रहे हैं। दर असल उन्हें पता है कि मुस्लिम साम्प्रदायिकता को हवा देकर हिन्दू साम्प्रदायिकता को मजबूत किया जा सकता है। कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवी भाजपा की साम्प्रदायिकता का जवाब देने के लिए जातिवादियों की शरण में चले जाते हैं और वही जातिवादी नेता अलग-अलग अंदाज में भाजपा को मजबूत बनाते हैं। इस तरह भाजपा के विपक्षी भी भाजपा का ही काम कर रहे हैं।
बिहार चुनाव में देख लीजिए - नीतीश और उनके समर्थकों की जाति चेतना तथा जीतनराम मांझी, चिराग पासवान, सम्राट चौधरी... जैसों की जाति चेतना ने भाजपा को सीधे तौर पर मजबूत बना दिया। प्रकारान्तर से तेजस्वी यादव एवं अखिलेश यादव की जातिचेतना अर्थात यादवों के जातीय उन्माद का भय दिखाकर ही अतिपिछड़ी जातियों को भाजपा अपने पाले में करती रही है। हालांकि भाजपा को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाने में और भी कई भौतिक कारण हैं।
अधिकांश सीटों पर जीतने में कालाधन ही मुख्य कारण रहा है। भाजपा ने विपक्षी पार्टियों का अधिकांश कालाधन जब्त कर लिया है। और अपने कालेधन का भण्डार बेशुमार बढ़ा लिया है। एक अनुमान के मुताबिक जितना काला धन भारत की हजारों राजनीतिक पार्टियों के पास है उसका कई गुना कालाधन अकेले भाजपा के पास इकट्ठा हो चुका है। वोट चोरी एक मुद्दा रहा है मगर कालेधन के बगैर बहुत बड़े पैमाने पर वोटचोरी मुश्किल है।
ग्रोक ने बताया भारतीय जनता पार्टी की वित्तीय स्थिति
"नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार (वित्तीय वर्ष 2023-24 तक, जो 31 मार्च 2024 को समाप्त हुआ), भाजपा की स्थिति निम्नलिखित है:
बैंक और नकद बैलेंस ₹7,113.80 करोड़। यह कांग्रेस के ₹857 करोड़ से काफी अधिक है।
इसके अलावा संपत्ति: पुराने आंकड़ों (2021-22) के अनुसार ₹6,046.81 करोड़, जो 2021 से 21% की वृद्धि दर्शाती है। 2024 तक यह और बढ़ी होगी, लेकिन नवीनतम रिपोर्ट में कुल संपत्ति का सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।"
कालाधन कहां होता है? एक दरिद्र भिखारी को एक करोड़ कालाधन दे दीजिए तो वह उस कालेधन को कहीं छिपा नहीं पायेगा। मगर किसी के पास 100 करोड़ सफेद धन हो तो वह कम से कम दो सौ करोड़ कालाधन आराम से छिपा लेगा। कालाधन सफेद धन के पीछे ही छिप सकता है इसलिए जो लोग सफेद धन के मालिक हैं वही लोग कालेधन के भी मालिक हैं। भाजपा के पास कांग्रेस से कई गुना सफेद धन है, इसी से अन्दाज़ लगा सकते हैं कि भाजपा के पास सबसे अधिक कालाधन इकट्ठा हो चुका है।
इसी कालेधन के बल पर भाजपा अधिकांश जातियों के नेताओं समेत सभी छुटभैय्ए नेताओं को खरीद लेती है। इसी कालेधन से सभी अपराधियों, गुन्डों, माफियाओं, भ्रष्ट अधिकारियों, मीडिया, आदि को खरीद कर अपने पाले में करके चुनाव जीतती है।
कांग्रेस भी अपने दौर में कमोवेश ऐसा ही करती थी। बजट के पैसे से वोटों की खरीदारी तो आम बात हो गई है। ऐसा सभी पार्टियां अपनी सरकारों के बल पर करती रहती हैं।
मार्क्सवाद-लेनिनवाद के अनुसार भाजपा की साम्प्रदायिकता का जवाब जातिवाद नहीं, वर्गचेतना ही है।
*रजनीश भारती*
*जनवादी किसान सभा*
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