जब कभी जीवन में “सही” और “दयालु” होने में से किसी एक को चुनना हो, तो हमेशा “दयालु” होना बेहतर होता है। क्योंकि दया वह गुण है जो न केवल दूसरों के दिल में जगह बनाता है, बल्कि आपको भी आंतरिक संतोष और मानसिक शांति देता है। सही होने की ज़िद से तर्क तो जीते जा सकते हैं, लेकिन दिल नहीं। दयालुता से रिश्ते बनते हैं, विश्वास बढ़ता है और समाज में समरसता आती है। अंततः वही व्यक्ति सही माना जाता है जो अपने व्यवहार से दूसरों को सम्मान, समझ और सहानुभूति देता है।
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