🍀तुळशी विवाह पूजा विधी🕉️
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💥💫Mrs. Jyoti💫💥
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#🌿तुळशी विवाह स्टेटस🍀 #🍀तुळशी विवाह पूजा विधी🕉️ #श्रीतुलसीअष्टोत्तरशतनामावली!! ॐ श्रीं ह्रीं ऐं श्रीं श्रीतुलसीलक्ष्म्यै नमः। ॐ भगवती तुलसी देव्यै विष्णुप्रियायै नमः। ॐ नमः तुलसी तरूवासिन्यै विष्णु प्रियायै ॐ। ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं तुलसीवनवासिनी केशवप्रियायै नमः। ॐ ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सौ; तुलस्यै अमृतरूपिणी केशव प्रियायै नमः। ॐ श्रीं तुलस्यै च विदमहे विष्णु प्रियायै धीमहि तन्नो तुलसी प्रचोदयात्। ॐ वृक्षेश्वर्यै च विदमहे महाऔषध्यै धीमहि तन्नो तुलसी: प्रचोदयात्। ॐ श्रीमहात्रिपुरायै च विदमहे तुलसीपत्रायै धीमहि तन्नो तुलसी: प्रचोदयात । ॐ आरोग्यप्रदायिन्यै च विदमहे अमृतसंंजीवन्यै धीमहि तन्नो तुलसी: प्रचोदयात्। ॐ ह्रीं रामतुलस्यै च विदमहे क्लीं कृष्णतुलस्यै धीमहि तन्नो श्रींं मोक्षतुलसी: प्रचोदयात्। ॐ भवपाशविनाशिन्यै च विदमहेनिवार्णमार्गदायिन्यै धीमहि तन्नो शालिग्रामप्रिया: प्रचोदयात्। #श्रीतुलसीअष्टोत्तरशतनामावली!! ॐ श्री तुलस्यै नमः। ॐ नन्दिन्यै नमः।ॐ देव्यै नमः। ॐ शिखिन्यै नमः ।ॐ धारिण्यै नमः।ॐ धात्र्यै नमः। ॐ सावित्र्यै नमः ।ॐ सत्यसन्धायै नमः ।ॐ कालहारिण्यै नमः । ॐ गौर्यै नमः।ॐ देवगीतायै नमः।ॐ द्रवीयस्यै नमः। ॐ पद्मिन्यै नमः ।ॐ सीतायै नमः ।ॐ रुक्मिण्यै नमः । ॐ प्रियभूषणायै नमः ।ॐ श्रेयस्यै नमः ।ॐ श्रीमत्यै नमः । ॐ मान्यायै नमः ।ॐ गौर्यै नमः ।ॐ गौतमार्चितायै नमः । ॐ त्रेतायै नमः ।ॐ त्रिपथगायै नमः ।ॐ त्रिपादायै नमः । ॐ त्रैमूर्त्यै नमः ।ॐ जगत्रयायै नमः ।ॐ त्रासिन्यै नमः । ॐ गात्रायै नमः ।ॐ गात्रियायै नमः ।ॐ गर्भवारिण्यै नमः । ॐ शोभनायै नमः ।ॐ समायै नमः ।ॐ द्विरदायै नमः। ॐ आराद्यै नमः।ॐ यज्ञविद्यायै नमः।ॐ महाविद्यायै नमः। ॐ गुह्यविद्यायै नमः।ॐ कामाक्ष्यै नमः।ॐ कुलायै नमः। ॐ श्रीयै नमः ।ॐ भूम्यै नमः ।ॐ भवित्र्यै नमः । ॐ सावित्र्यै नमः । ॐ सरवेदविदाम्वरायै नमः । ॐ शंखिन्यै नमः । ॐ चक्रिण्यै नमः । ॐ चारिण्यै नमः । ॐ चपलेक्षणायै नमः । ॐ पीताम्बरायै नमः । ॐ प्रोत सोमायै नमः । ॐ सौरसायै नमः । ॐ अक्षिण्यै नमः । ॐ अम्बायै नमः । ॐ सरस्वत्यै नमः । ॐ संश्रयायै नमः । ॐ सर्व देवत्यै नमः । ॐ विश्वाश्रयायै नमः । ॐ सुगन्धिन्यै नमः । ॐ सुवासनायै नमः । ॐ वरदायै नमः । ॐ सुश्रोण्यै नमः । ॐ चन्द्रभागायै नमः । ॐ यमुनाप्रियायै नमः । ॐ कावेर्यै नमः । ॐ मणिकर्णिकायै नमः । ॐ अर्चिन्यै नमः । ॐ स्थायिन्यै नमः । ॐ दानप्रदायै नमः । ॐ धनवत्यै नमः । ॐ सोच्यमानसायै नमः । ॐ शुचिन्यै नमः । ॐ श्रेयस्यै नमः । ॐ प्रीतिचिन्तेक्षण्यै नमः । ॐ विभूत्यै नमः । ॐ आकृत्यै नमः । ॐ आविर्भूत्यै नमः । ॐ प्रभाविन्यै नमः । ॐ गन्धिन्यै नमः । ॐ स्वर्गिन्यै नमः । ॐ गदायै नमः । ॐ वेद्यायै नमः । ॐ प्रभायै नमः । ॐ सारस्यै नमः । ॐ सरसिवासायै नमः । ॐ सरस्वत्यै नमः । ॐ शरावत्यै नमः । ॐ रसिन्यै नमः । ॐ काळिन्यै नमः । ॐ श्रेयोवत्यै नमः । ॐ यामायै नमः । ॐ ब्रह्मप्रियायै नमः । ॐ श्यामसुन्दरायै नमः । ॐ रत्नरूपिण्यै नमः । ॐ शमनिधिन्यै नमः । ॐ शतानन्दायै नमः । ॐ शतद्युतये नमः । ॐ शितिकण्ठायै नमः । ॐ प्रयायै नमः । ॐ धात्र्यै नमः । ॐ श्री वृन्दावन्यै नमः । ॐ कृष्णायै नमः । ॐ भक्तवत्सलायै नमः । ॐ गोपिकाक्रीडायै नमः । ॐ हरायै नमः । ॐ अमृतरूपिण्यै नमः । ॐ भूम्यै नमः । ॐ श्री कृष्णकान्तायै नमः । ॐ श्री तुलस्यै नमः ॥
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💥💫Mrs. Jyoti💫💥
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#🌿तुळशी विवाह स्टेटस🍀 #🍀तुळशी विवाह पूजा विधी🕉️ #🍁कार्तिकी एकादशी 💐 #😊ओरिजिनल शुभेच्छा #🌼बुधवार भक्ती स्पेशल🙏 तुलसी और वृंदा - जालंधर और शंखचूड़ में भेद 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ जालंधर और शंखचूड़ दोनो की कथा अलग अलग है, जो इस प्रकार है- शिव महापुराण के अनुसार, प्राचीन काल में, राक्षसों का राजा दंभ हुआ करता था। जो कि एक महान विष्णु भक्त थे। कई वर्षों तक संतान न होने के कारण, राजा दंभ ने शुक्राचार्य को अपना गुरु बनाया और उनसे श्री कृष्ण का मंत्र प्राप्त किया। इस मंत्र को प्राप्त करने के बाद, उन्होंने पुष्कर सरोवर में तपस्या की। भगवान विष्णु उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दिया। भगवान विष्णु के वरदान से राजा दंभ के यहां एक पुत्र ने जन्म लिया। इस पुत्र का नाम शंखचूड़ था। बड़े होकर, शंखचूड़ ने ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए पुष्कर में तपस्या की। शंखचूड़ की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने शंखचूड़ को वरदान मांगने को कहा। तब उसने ने वरदान मांगा कि वह हमेशा अमर रहे और कोई भी देवता उसे न मार सके। ब्रह्मा जी ने उन्हें यह वरदान दिया और कहा कि वह बदरीवन जाकर धर्मध्वज की बेटी तुलसी से विवाह करें। जो इस समय तपस्या कर रही है। शंखचूर्ण ने ब्रह्मा जी के अनुसार तुलसी से विवाह किया और सुखपूर्वक रहने लगा। शंखचूर्ण ने अपने बल से देवताओं, राक्षसों, असुरों, गंधर्वों, यमदूतों, नागों, मनुष्यों और तीनो लोकों के सभी प्राणियों पर विजय प्राप्त की। शंखचूर्ण भगवान कृष्ण का अनन्य भक्त था । उसके अत्याचार से परेशान सभी देव ब्रह्मा जी के पास गए और ब्रह्मा जी को शंखचूर्ण के अत्याचार का हाल बताया तब ब्रह्माजी उन्हें भगवान विष्णु के पास ले गए। भगवान विष्णु ने कहा कि शंखचूड़ की मृत्यु भगवान शिव के त्रिशूल से ही संभव है, इसलिए तुम भगवान् शिव के पास जाओ। भगवान शिव ने चित्ररथ नाम के गण को अपना दूत बनाकर शंखचूड़ के पास भेजा। चित्ररथ ने शंखचूड़ को समझाया कि चित्ररथ देवताओं का राज्य उनको लौटा दे। लेकिन शंखचूड़ ने इनकार कर दिया और कहा कि वह महादेव से लड़ना चाहता है। जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने अपनी सेना के साथ युद्ध करने के लिए प्रस्थान किया। इस तरह, देवताओं और राक्षसों के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ। लेकिन ब्रह्मा जी के वरदान के कारण देवता शंखचूड़ को हरा नहीं पाए। जैसे ही भगवान शिव ने शंखचूड़ को मारने के लिए अपना त्रिशूल उठाया, तब आकाशवाणी हुई- जब तक शंखचूड़ के हाथ में भगवान् श्री श्रीहरि का कवच है और उसकी पत्नी की सतीत्व अखंड है, तब तक उसे मारना असंभव है। आकाशवाणी सुनकर भगवान विष्णु एक बूढ़े ब्राह्मण का रूप धारण कर शंखचूड़ के पास गए और उन्हें श्रीहरि कवच का दान करने को कहा। शंखचूड़ ने बिना किसी हिचकिचाहट के उस कवच को दान कर दिया। इसके बाद, भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण किया और तुलसी के पास गए। शंखचूड़ के रूप में भगवान विष्णु तुलसी के महल के द्वार पर गए और अपनी जीत की सूचना दी। यह सुनकर तुलसी बहुत खुश हुई और अपने पति रूप में आए भगवान की पूजा की। ऐसा करने से, तुलसी का सार टूट गया और भगवान शिव ने युद्ध में अपने त्रिशूल से शंखचूड़ को मार डाला। तब तुलसी को पता चला कि वे उनके पति नहीं हैं, बल्कि वे भगवान विष्णु हैं। गुस्से में तुलसी ने कहा कि तुमने मेरे धर्म को धोखा देकर मेरे पति को मार डाला है। इसलिए, मैं आपको श्राप देती हूं कि आप पाषण काल तक पृथ्वी पर ही रहो। तब भगवान विष्णु ने कहा👉 हे देवी। आपने लंबे समय तक भारत वर्ष में रहकर मेरे लिए तपस्या की है। आप का यह शरीर एक नदी में तब्दील हो जाएगा और गंडकी नामक नदी के रूप में प्रसिद्ध होगा। आप फूलों में सबसे अच्छा तुलसी का पेड़ बन जाओगी और हमेशा मेरे साथ ही रहोगी। मैं आपके शाप को सच करने के लिए एक पत्थर (शालिग्राम) के रूप में पृथ्वी पर रहूंगा। मैं गंडकी नदी के किनारे पर रहूंगा। उसी दिन से देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न करके मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं। हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन तुलसी-शालिग्राम विवाह करने से अपार सफलता की प्राप्ति भी होती है। जालंधर की कथा 👉 श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, प्राचीन काल में, जालंधर नाम के एक दानव ने चारों ओर बड़ी उथल-पुथल मचा रखी थी। जालंधर बहुत बहादुर और पराक्रमी था। उनकी वीरता का रहस्य उनकी पत्नी वृंदा का पुण्य धर्म था। उसी के प्रभाव में वह विजयी होता रहा। जालंधर के अत्याचारों से परेशान होकर देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे सुरक्षा की गुहार लगाई। देवताओं की प्रार्थना सुनकर, भगवान विष्णु ने वृंदा की धर्मपरायणता को भंग करने का फैसला किया। उसने जालंधर का रूप लिया और छल से वृंदा का धर्म भांग करने का निश्चय किया। जालंधर, वृंदा के पति, देवताओं के साथ लड़ रहे थे, लेकिन वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही जालंधर को भगवान् शिव ने मार दिया। जैसे ही वृंदा का सतीत्व भंग हुआ, जालंधर का सिर उसके आंगन में आकर गिरा। जब वृंदा ने यह देखा, तो वह बहुत क्रोधित हो गई और उसने जानना चाहा कि जो उसके सामने खड़ा है वह कौन है। सामने भगवान विष्णु प्रकट हो गए । वृंदा ने भगवान विष्णु को शाप दिया, 'जिस तरह तुमने मेरे पति को छल से मारा है, उसी तरह तुम्हारी पत्नी भी छली जाएगी और तुम भी स्त्री वियोग को भोगने के लिए मृत्यु संसार में पैदा होगे।' यह कहते हुए वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। वृंदा के सती होने के स्थान पर तुलसी के पौधे का उत्पादन किया गया था। भगवान् विष्णु ने कहा, 'हे वृंदा! यह आपके पुण्य का परिणाम है कि आप तुलसी के रूप में मेरे साथ रहोगी, और जो व्यक्ति मेरा विवाह आपके साथ कराएगा वह मेरे परम धाम का अधिकारी होगा। तभी से तुलसी दल के बिना शालिग्राम या विष्णु की पूजा करना अधूरा माना जाता है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है। इस कथा के अनुसार- इस कथा में वृंदा ने भगवान् विष्णु जी को शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे। यही पत्थर शालिग्राम कहलाया। शंखचूड और जालन्धर के आख्यानों मे बहुत कुछ समानताएँ विद्यमान है। ये दो कल्पभेद (अलग-अलग कल्पों में घटित घटनाओ) के कारण हुआ हो सकता है, और, तन्त्र मे जालन्धर का स्थान और शंख की नाद दोनों मे सम्बन्ध का कुछ एहसास है। 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
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💥💫Mrs. Jyoti💫💥
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#🌿तुळशी विवाह स्टेटस🍀 #🍁कार्तिकी एकादशी 💐 #🍀तुळशी विवाह पूजा विधी🕉️ #🌹राधा कृष्ण #🌼 जय श्री कृष्ण #तुलसी_मंगलाष्टक_मंत्र #तुलसी_स्तुति_मंत्र देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।। तुलसी मंगलाष्टक मंत्र ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः, चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः । प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः, स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ।। गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ, गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः । गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी, गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ।। नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं, तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम् । गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्, संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ।। बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः, व्यासोवसिष्ठो भृगुः, जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः । मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो, धन्यो दिलीपो नलः, पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम् ।। गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा, कद्रूसुपणार्शिवाः, सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती । स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी, दुःस्वप्नविध्वंसिनी, वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम् ।। गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नमर्दा, कावेरी सरयू महेन्द्रतनया, चमर्ण्वती वेदिका । शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी, ख्याता च या गण्डकी, पूर्णाः पुण्यजलैः समुद्रसहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ।। लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा, गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः । अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे, रतनानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ।। ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः, सूयोर् ग्रहाणां पतिः, शुक्रो देवपतिनर्लो नरपतिः, स्कन्दश्च सेनापतिः । विष्णुयर्ज्ञपतियर्मः पितृपतिः, तारापतिश्चन्द्रमा, इत्येते पतयस्सुपणर्सहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ।। #तुलसी_विवाह_का_आज_शुभ_दिन # तुळशी_ विवाह_ बुधवार_२०२५
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