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जय श्री कृष्ण घर पर रहे-सुरक्षित रहे
#जय श्री राम 🍁राजा दशरथ का विवाह माता कौशल्या से कैसे हुआ? 🍁 एक पौराणिक कथा के अनुसार, कौशल्या, कुशल प्रदेश (छत्तीसगढ़) की राजकुमारी थीं। उनके पिता का नाम सुकौशल और माता का नाम अमृतप्रभा था। राजकुमारी के विवाह योग्य होने पर अच्छे मैत्री संबंधों के चलते सुकौशल ने बेटी कौशल्या का विवाह भी राजा दशरथ से तय कर दिया लेकिन अचानक एक दिन राजकुमारी कौशल्या राजभवन से अदृश्य हो गयीं। उधर अयोध्या से महाराज अपने पुत्र दशरथ और बाकी सेना लेकर सरयू नदी के मार्ग से नौका द्वारा कोसल की यात्रा के लिए निकले, ताकि पुत्र विवाह शीघ्र हो सके। अचानक भयानक आँधी आयीं और बहुत-सी नौकाएँ डूब गयीं। महाराज ने देखा कि युवराज जिस नौका से चल रहे थे, उसका भी कोई अता-पता नहीं है। दरअसल, रावण ने जब अपने भाग्य पर विचार किया, तो उसे पता चला कि दशरथ और कौशल्या के द्वारा उत्पन्न पुत्र उसका वध करेगा। इसलिये, उसने कौशल्या का हरण करके और उन्हें पेटिका में बन्द करके दक्षिण सागर में अपने एक परिचित महामत्स्य को दे दिया था। महामत्स्य पेटिका को सदैव अपने मुख में रखता था। लेकिन एक दिन दूसरे महामत्स्य ने उस पर आक्रमण किया। उससे लड़ने के लिए, मत्स्य ने वह पेटिका गंगासागर के किनारे भूमि पर छोड़ दी। भीतर से कौशल्या पेटिका खोलकर बाहर आ गयीं। संयोग से दशरथ जी भी बहते हुए वहीं पहुँचे। वहीं उनका कौशल्या से पहली मुलाक़ात हुई। परस्पर परिचय के बाद, उन्होंने कौशल्या से विवाह कर लिया और अयोध्या लौट आये। माता कौशल्या इतनी कोमल ह्रदय की थीं कि उन्होंने राजा दशरथ की सभी पत्नियों को अपनी बहन के समान समझा और भगवान् राम के वनवास जाने के बाद भारत को ही राम समझकर पुत्र स्नेह देती रहीं। भगवान् राम उनकी कोख से जन्म लेंगे और राजा दशरथ से उनका रिश्ता तय होगा, ये सब पहले से ही तय था।
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चार प्रकार के भक्त जिज्ञासु --- ब्रह्म की रचना एवं इसके संचालन के रहस्य को जानना चाहते हैं, राम - नाम के अभ्यास से इनका आंतरिक विकास हो जाता है जिसके द्वारा इनको ब्रह्म के रहस्य की जानकारी हो जाती है, वे स्थूल, सूक्ष्म और कारण जगत की जानकारी हासिल करके ब्रह्म के प्रपंच यानी माया के खेल को समझ लेते हैं, इस ज्ञान के कारण ये संसार से विरक्त हो जाते हैं और ब्रह्म से इनका अनुराग पैदा हो जाता है, वे संसार के बीच रहते हुए भी अनुपम सुख का अनुभव करते हैं। आर्त ---- वे हैं जो सांसारिक विपत्ति से पीड़ित या घबराकर राम- नाम के भजन में लगते हैं, उन पर भी परमात्मा की कृपा होती है और उनकी दुःख और पीड़ा खत्म हो जाती है। अर्थार्थी ----- वो हैं जो अपनी किसी मनोकामना पूर्ण करने के लिए प्रभु की भक्ति करते हैं, राम-नाम के अभ्यास से उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है पर वो फिर भी चौरासी के कैदी ही रहते हैं, इच्छाओं का कोई अन्त नहीं है, ये तो अंधे कुएं के सामान है, एक पूरी हो तो दस खडी हो जाती हैं। ज्ञानी ---- वो हैं जिनके अन्दर संसार की कोई कामना नहीं होती, वे सच्चे परमार्थी ज्ञान की प्राप्ति करके मोक्ष पाना चाहते हैं, ऐसे भक्तजन भी राम- नाम के अभ्यास से गूढ़ परमार्थी ज्ञान को प्राप्त करके मोक्ष की प्राप्ति कर लेते हैं, चारों प्रकार के भक्तों को राम -नाम के अभ्यास द्वारा मनवांछित फल प्राप्त हो जाता है। तुलसीदास जी समझाते हैं कि इन सब भक्तों में ज्ञानी भक्त प्रभु को विशेष प्रिय होते हैं, क्योंकि उनके अन्दर कोई सांसारिक कामना नहीं होती, वे भक्ति द्वारा परमात्मा का ज्ञान प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं, इसीलिए प्रभु के प्यारे होते हैं, जो भक्त सभी सांसारिक कामनाओं को छोड़ कर केवल प्रेम और भक्ति के वश में होकर राम- नाम का अभ्यास करता है, उसका मछली रूपी मन मानों राम- नाम रूपी अमृत-कुंड में निवास करता है, आत्मा शरीर के आवरणों मन के बन्धनों से मुक्त होकर राम-नाम रूपी मानसरोवर में प्रवेश करती है-- नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी। बिरती बिरंची प्रपंच वियोगी।। ब्रह्मसुखहिं अनुभवहिं अनूपा। अकथ अनामय नाम न रूपा।। ब्रह्मा के बनाए हुए इस प्रपंच (दृश्य जगत) से भली-भाँति छूटे हुए वैराग्यवान मुक्त योगी पुरुष इस नाम को ही जीभ से जपते हुए जागते हैं और नाम तथा रूप से रहित अनुपम, अनिर्वचनीय, अनामय ब्रह्मसुख का अनुभव करते हैं। जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ। नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ॥ साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ॥ जो परमात्मा के गूढ़ रहस्य को (यथार्थ महिमा को) जानना चाहते हैं, वे (जिज्ञासु) भी नाम को जीभ से जपकर उसे जान लेते हैं। (लौकिक सिद्धियों के चाहने वाले अर्थार्थी) साधक लौ लगाकर नाम का जप करते हैं और अणिमादि (आठों) सिद्धियों को पाकर सिद्ध हो जाते हैं। जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी॥ राम भगत जग चारि प्रकारा। सुकृती चारिउ अनघ उदारा॥ (संकट से घबराए हुए) आर्त भक्त नाम जप करते हैं, तो उनके बड़े भारी बुरे-बुरे संकट मिट जाते हैं और वे सुखी हो जाते हैं। जगत् में चार प्रकार के (1-अर्थार्थी - धनादि की चाह से भजने वाले, 2-आर्त - संकट की निवृत्ति के लिए भजनेवाले, 3-जिज्ञासु - भगवान को जानने की इच्छा से भजनेवाले, 4-ज्ञानी - भगवान को तत्त्व से जानकर स्वाभाविक ही प्रेम से भजने वाले) रामभक्त हैं और चारों ही पुण्यात्मा, पाप रहित और उदार हैं। चहू चतुर कहुँ नाम अधारा। ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा॥ चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ। कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ॥ चारों ही चतुर भक्तों को नाम का ही आधार है, इनमें ज्ञानी भक्त प्रभु को विशेष रूप से प्रिय हैं। यों तो चारों युगों में और चारों ही वेदों में नाम का प्रभाव है, परंतु कलियुग में विशेष रूप से नाम को छोड़कर दूसरा कोई उपाय ही नहीं है। सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन। नाम सुप्रेम पियूष ह्रद तिन्हहुँ किए मन मीन॥ जो सब प्रकार की कामनाओं से रहित और रामभक्ति के रस में लीन हैं, उन्होंने भी नाम के सुंदर प्रेम रूपी अमृत के सरोवर में अपने मन को मछली बना रखा है अर्थात वे नामरूपी सुधा का निरंतर आस्वादन करते रहते हैं, क्षण भर भी उससे अलग होना नहीं चाहते। #🕉️सनातन धर्म🚩 #☝अनमोल ज्ञान
🕉️सनातन धर्म🚩 - OM NAMAH JHIVAAY भगवान को हमेशा याद रखो भगवान की याद एक प्रकाश है अपने पास -@ प्रकाश रख होने दोे अन्धरा मत SWAMIJI SHRI RAMSUKHDADJI MAHARAJ OM NAMAH JHIVAAY भगवान को हमेशा याद रखो भगवान की याद एक प्रकाश है अपने पास -@ प्रकाश रख होने दोे अन्धरा मत SWAMIJI SHRI RAMSUKHDADJI MAHARAJ - ShareChat
#🌿आयुर्वेदिक नुस्खों पर चर्चा #💁🏻‍♀️घरेलू नुस्खे #🌿दादी नानी के नुस्खे खजूर के औषधीय गुण 〰️〰️🔸〰️🔸〰️〰️ छुहारा और खजूर एक ही पेड़ की देन है। इन दोनों की तासीर गर्म होती है और ये दोनों शरीर को स्वस्थ रखने, मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गर्म तासीर होने के कारण सर्दियों में तो इसकी उपयोगिता और बढ़ जाती है। आइए, इस बार जानें छुहारा और खजूर के फायदे के बारे में- 👉 खजूर में छुहारे से ज्यादा पौष्टिकता होती है। खजूर मिलता भी सर्दी में ही है। अगर पाचन शक्ति अच्छी हो तो खजूर खाना ज्यादा फायदेमंद है। छुहारे का सेवन तो सालभर किया जा सकता है, क्योंकि यह सूखा फल बाजार में सालभर मिलता है। 👉 छुहारा यानी सूखा हुआ खजूर आमाशय को बल प्रदान करता है। 👉 छुहारे की तासीर गर्म होने से ठंड के दिनों में इसका सेवन नाड़ी के दर्द में भी आराम देता है। 👉 छुहारा खुश्क फलों में गिना जाता है, जिसके प्रयोग से शरीर हृष्ट-पुष्ट बनता है। शरीर को शक्ति देने के लिए मेवों के साथ छुहारे का प्रयोग खासतौर पर किया जाता है। 👉 छुहारे व खजूर दिल को शक्ति प्रदान करते हैं। यह शरीर में रक्त वृद्धि करते हैं। 👉 साइटिका रोग से पीड़ित लोगों को इससे विशेष लाभ होता है। 👉 खजूर के सेवन से दमे के रोगियों के फेफड़ों से बलगम आसानी से निकल जाता है। 👉 लकवा और सीने के दर्द की शिकायत को दूर करने में भी खजूर सहायता करता है। - 👉 भूख बढ़ाने के लिए छुहारे का गूदा निकाल कर दूध में पकाएं। उसे थोड़ी देर पकने के बाद ठंडा करके पीस लें। यह दूध बहुत पौष्टिक होता है। इससे भूख बढ़ती है और खाना भी पच जाता है। 👉 प्रदर रोग स्त्रियों की बड़ी बीमारी है। छुआरे की गुठलियों को कूट कर घी में तल कर, गोपी चन्दन के साथ खाने से प्रदर रोग दूर हो जाता है। 👉 छुहारे को पानी में भिगो दें। गल जाने पर इन्हें हाथ से मसल दें। इस पानी का कुछ दिन प्रयोग करें, शारीरिक जलन दूर होगी। - 👉 अगर आप पतले हैं और थोड़ा मोटा होना चाहते हैं तो छुहारा आपके लिए वरदान साबित हो सकता है, लेकिन अगर मोटे हैं तो इसका सेवन सावधानीपूर्वक करें। 👉 जुकाम से परेशान रहते हैं तो एक गिलास दूध में पांच दाने खजूर डालें। पांच दाने काली मिर्च, एक दाना इलायची और उसे अच्छी तरह उबाल कर उसमें एक चम्मच घी डाल कर रात में पी लें। सर्दी-जुकाम बिल्कुल ठीक हो जाएगा। 👉 दमा की शिकायत है तो दो-दो छुहारे सुबह-शाम चबा-चबा कर खाएं। इससे कफ व सर्दी से मुक्ति मिलती है। 👉 घाव है तो छुहारे की गुठली को पानी के साथ पत्थर पर घिस कर उसका लेप घाव पर लगाएं,घाव तुरंत भर जाएगा। 👉 अगर शीघ्रपतन की समस्या से परेशान हैं तो तीन महीने तक छुहारे का सेवन आपको समस्या से मुक्ति दिला देगा। इसके लिए प्रात: खाली पेट दो छुहारे टोपी समेत दो सप्ताह तक खूब चबा-चबाकर खाएं। तीसरे सप्ताह में तीन छुहारे खाएं और चौथे सप्ताह से 12वें सप्ताह तक चार-चार छुहारों का रोज सेवन करें। इस समस्या से मुक्ति मिल जाएगी खजूर की चटनी 〰️〰️〰️〰️〰️ विधि : खजूर के बीच में से गुठली निकाल दें, धोकर इसमें एक कप पानी डाल दें। 2 घंटे के लिए भीगने दें। 5 मिनट के लिए पकाये और ब्लेंडर में बारीक पीस लें। अब इसमें लाल मिर्च पाउडर, जीरा पाउडर और नमक डालकर अच्छी तरह मिला लें, खजूर की चटनी तैयार है। सामग्री : 200 ग्राम खजूर, 100 ग्राम इमली, 1/2 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर, 1/2 टी स्पून भुना जीरा पाउडर, 1/4 टी स्पून काला नमक, नमक स्वादानुसार। कितने लोगों के लिए : 6 अति लाभकारी है खजूर 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ शीतकाल में खजूर सबसे अधिक लोकप्रिय मेवा माना जाता है। घर घर में प्रयोग किया जाने वाला यह खाद्य फल है, जिसे अमीरगरीब ब़डे चाव से खाते हैं। होली के पर्व पर इसकी खूब मनुहार चलती है। खजूर रेगिस्तानी सूखे प्रदेश का फल है। प्रकृति की यह अनुपम देन खास ऐसे प्रदेशों के लिए ही है, जहां जिन्दगी ब़डी कठिन होती है और जहां बरसात या पीने के पानी की कमी होती है। इसके प़ेड हमें जीवन से ल़डना सिखाते हैं, इसीलिए इसके खाने का प्रचलन ज्यादातर सूखे रेगिस्तानी इलाकों में ही होता है। सूखे खजूर को छुहारा या खारकी कहते हैं। पिंड खजूर भी इसका दूसरा नाम है। खजूर ताजा व सूखे को ही खाया जाता है। अरब प्रदेशों में आम की तरह खजूर भी रस भरे होते हैं, पर वे हाथ लगाते ही कुम्हला जाते हैं। सूखे किस्म की खजूर को पूरा सुखाया जाता है। इसके टुक़डों को मुखवास व खटाई में पचाकर तथा साग बनाकर भी खाया जाता है। अरब लोगों के लिए खजूर लोकप्रिय खाद्य पदार्थ है और वे रोज इसे थ़ोडा बहुत खाते ही हैं। खाने के अलावा अन्य मिष्ठान्न व बेकरी में भी इसका उपयोग किया जाता है। इसका मुरब्बा, अचार व साग भी बनता है। खजूर से बना द्रव्य शहद खूब लज्जतदार होता है और यह शहद दस्त, कफ मिटाकर कई शारीरिक प़ीडाआें को दूर करता है। श्वास की बीमारी में इसका शहद अत्यन्त लाभप्रद होता है। इससे पाचन शक्ति ब़ढती है तथा यह ठंडे या शीत गुणधर्म वाला फल माना जाता है। सौ ग्राम खजूर में 04 ग्राम चर्बी, 12 ग्राम प्रोटीन, ३३८ ग्राम कार्बोदित पदार्थ, 22 मिली ग्राम कैल्शियम, 38 मिलीग्राम फास्फोरस प्राप्त होती है। विटामिन ए बी सी, प्रोटीन, लौह तत्व, पोटेशियम और सोडियम जैसे तत्व मौजूद रहते हैं। बच्चों से लेकर ब़ूढे, बीमार और स्वस्थ सभी इसे खा सकते है। खजूर खाने के पहले इसे अच्छी तरह से धो लेना चाहिए, क्योंकि प़ेड पर खुले में पकते हैं तथा बाजार में रेहडी वाले बिना ढके बेचते हैं, जिस पर मक्खी मच्छर बैठने का अंदेशा रहता है। आजकल खजूर छोटी पैकिंगों में भी मिलते हैं। वे दुकानदार स्वयं पोलीथीन में पैक कर अपनी दुकान का नाम लगा देते हैं। वे इतने साफ नहीं होते। वैज्ञानिक ढंग से पैक किए खजूर ही खाने चाहिए। विशेषज्ञों के अनुसार १०० ग्राम से अधिक खजूर नहीं खाने चाहिए। इससे पाचन शक्ति खराब होने का भय रहता है। अगर कोई बहुत ही दुबला पतला हो, तो खजूर खाकर दूध पीने से उसका वजन भी ब़ढ जाता है। यद्यपि खजूर हर प्रकार से गुणकारक है, परन्तु इसमें विरोधाभास भी पाया जाता है। शीतकाल में जो इसे खाते हैं, वे इसे गरम मानते हैं। आयुर्वेद ग्रंथों में इसे शीतल गुण वाला माना है, इसलिए गरम तासीर वालों को यह खूब उपयोगी व माफिक आता है। ठंडा आहार जिनके शरीर के अनुरूप नहीं होता, उन्हें खजूर नहीं खाना चाहिए। कुछ लोग घी में रखकर उसका पेय बनाकर पीते हैं। ये अति ठंडा होता है। जिन्हें खजूर न पचता हो, उन्हें नहीं खाना चाहिए। यह वायु प्रकोप को मिटाता है, पित्तनाशक है। पित्त वालों को घी के साथ खाने से असरदायक होता है। यह मीठा स्निग्ध होने से थ़ोडे प्रमाण में पित्त करता है, परन्तु ग़ुड, शक्कर, केले व अन्य मिठाइयों से कम पित्त करता है। कफ के रोगी को चने के दलिये (भुने हुए चने) के साथ खाना चाहिए। धनिए के साथ खाने से कफ का नाश होता है। यह औषधि का काम तो करता ही है, व्रण, लौह विकार, मूर्च्छा, नशा च़ढना, क्षय रोग, वार्धक्य, कमजोरी, गरमी वगैरह के साथ कमजोर मस्तिष्क वालों के लिए भी यह दवा का काम करता है। खजूर मांसवर्धक होने के कारण शाकाहारी लोगों की अच्छी खुराक माना जाता है। यह भी माना जाता है कि खजूर को दूध में उबाल कर उस दूध को पीने से नुकसानदायक होता है, इसलिए खजूर खाने व दूध पीने के बीच २३ घंटों का अंतर रखना चाहिए। बच्चों को पूरा खजूर न देकर उसकी गुठली निकाल टुक़डे कर खिलाना चाहिए। खजूर एक तरह से अमृत के समान है। यह आंखों की ज्योति व याददाश्त भी ब़ढाता है। दांतों से लहू निकले या मसूडे खराब हों, तो यह दवा का काम करता है। इसके खाने से बाल कम झ़डते हैं। खजूर व उसका शहद एक तरह से कुदरत की अनुपम देने हैं, इसलिए खूब खाएं व खूब खिलाएं। अति लाभकारी है खजूर. क्या आप जानते हैं? 〰️〰️〰️〰️〰️〰️ खजूर का पेड़ विश्व के सबसे सुन्दर सजावटी पेड़ों में से एक माना जाता है और इसे सड़कों राजमार्गो और मुख्य रास्तों पर शोभा के लिए भी लगाया जाता है। अरबी देशों में खजूर की व्यवस्थित रूप से खेती के प्रमाण ईसा से 3000 वर्ष पूर्व के हैं। चार खजूरों में लगभग 230 कैलोरी, 2 ग्राम प्रोटीन, 62 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 570 मिली ग्राम पोटेशियम और 6 खाद्य रेशे होते हैं साथ ही इसमें कोलेस्ट्राल और वसा की मात्रा बिलकुल नहीं होती इस कारण यह एक आदर्श फल माना जाता है। खजूर विश्व के सबसे पौष्टिक फलों में से एक है। सदियों से यह मध्यपूर्व एशिया और उत्तरी अफ्रीका के रेगिस्तानी इलाकों का प्रमुख भोजन बना हुआ है क्योंकि वहाँ इसके सिवा और कुछ उत्पन्न नहीं होता। यह ताज़ा और सूखा, दोनों तरह के फलों में गिना जा सकता है। पेड़ पर पके खजूर ज़्यादा स्वादिष्ट होते हैं। लेकिन जल्दी खराब हो जाने की वजह से इसे धूप में सुखाया जाता है। सूखे हुए खजूर का वजन करीब ३५ प्रतिशत कम हो जाता है। ताज़े खजूर के मुकाबले सूखे खजूर में रेशों की मात्रा अधिक होती है। खजूर में पौष्टिक तत्व काफी मात्रा में होते हैं। इसके सेवन से ग्लुकोज और फ्रुक्टोज के रूप में नैसर्गिक शक्कर हमारे शरीर को मिलती है। इस तरह की शक्कर शरीर में शोषण के लिए तैयार रहती है, इसलिए यह आम शक्कर से अच्छी होती है। रमज़ान के पवित्र महिने में खजूर खा कर ही उपवास की समाप्ति की जाती है। खजूर अपने आप में एक टॉनिक भी है। खजूर के साथ उबला हुआ दूध पीने से ताकत मिलती है। खजूर को रात भर पानी में भीगो कर रखिये। फिर इसी में थोड़ा मसल कर उसका बीज निकाल दीजिए। यह हफ्ते में कम से कम दो बार सुबह लेने से अपने दिल को मजबूती मिलती है। यदि कब्ज की शिकायत है तो रात भर भीगाया हुआ खजूर सुबह महीन पीस कर लेने से यह शिकायत दूर हो सकती है। बकरी के दूध में खजूर को रात भर भीगो कर रखिए। सुबह इसी में पीस कर थोड़ी दालचिनी पावडर और शहद मिलाइए। इसके सेवन से बांझपन दूर हो सकता है। खजूर के पेड़ का हर हिस्सा उपयोगी होता है। इसकी पत्तियाँ और तना घर के लिए लकड़ी बाड़ और कपड़े बनाने के काम आते हैं। पत्तियों से रस्सी, सूत और धागे बनाए जाते हैं जिनके प्रयोग से सुंदर टोकरियों और फर्नीचरों का निर्माण होता है। फल की डंडियों और पत्तियों के मूल हिस्से इंधन के काम आते हैं। खजूर से अनेक खाद्यपदार्थों का निर्माण होता है जिनमें सिरका, तरह-तरह की मीठी चटनियाँ और अचार प्रमुख हैं। अनेक प्रकार के बेकरी उत्पादों के लिए इसके गूदे का प्रयोग होता है। अरबी व्यंजन कानुआ और भुने हुए खजूर के बीज सारे अरबी समाज में लोकप्रिय हैं। यहाँ तक कि इसकी कोपलों को शाकाहारी सलाद में अत्यंत स्वास्थ्यवर्धक समझा जाता है। विश्व भोजन एवम कृषि संस्थान के अनुसार विश्व में लगभग ९ करोड़ खजूर के वृक्ष हैं। हर खजूर का जीवन एक सौ सालों से अधिक होता है। इनमें से साढ़े छे करोड़ खजूर के वृक्ष केवल अरब देशों में हैं जिनसे प्रतिवर्ष २ करोड़ टन खजूर के फल हमें प्राप्त होते है। खजूर का फल चार-पाँच साल में फलना प्रारंभ हो जाता है और दस बारह सार में पूरी उत्पादन क्षमता पा लेता है। खजूर की ऊपरी सतह चिकनी होने से धूल मिट्टी बैठने की संभावना होती है। इसलिए खजूर खरीदते समय सही पैकिंग वाला ही खरीदना चाहिए और प्रयोग में लाने से पहले साफ़ पानी से अच्छी तरह धो लेना चाहिए। सर्दियों में खजूर खाओ, सेहत बनाओ सर्दियों में खजूर खाओ, सेहत बनाओ : खजूर मधुर, शीतल, पौष्टिक व सेवन करने के बाद तुरंत शक्ति-स्फूर्ति देने वाला है। यह रक्त, मांस व वीर्य की वृद्धि करता है। हृदय व मस्तिष्क को शक्ति देता है। वात-पित्त व कफ इन तीनों दोषों का शामक है। यह मल व मूत्र को साफ लाता है। खजूर में कार्बोहाईड्रेटस, प्रोटीन्स, कैल्शियम, पौटैशियम, लौह, मैग्नेशियम, फास्फोरस आदि प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। खजूर के उपयोग👉 मस्तिष्क व हृदय की कमजोरीः रात को खजूर भिगोकर सुबह दूध या घी के साथ खाने से मस्तिष्क व हृदय की पेशियों को ताकत मिलती है। विशेषतः रक्त की कमी के कारण होने वाली हृदय की धड़कन व एकाग्रता की कमी में यह प्रयोग लाभदायी है। मलावरोधः👉 रात को भिगोकर सुबह दूध के साथ लेने से पेट साफ हो जाता है। कृशता👉 खजूर में शर्करा, वसा (फैट) व प्रोटीन्स विपुल मात्रा में पाये जाते हैं। इसके नियमित सेवन से मांस की वृद्धि होकर शरीर पुष्ट हो जाता है। रक्ताल्पताः👉 खजूर रक्त को बढ़ाकर त्वचा में निखार लाता है। शुक्राल्पता👉 खजूर उत्तम वीर्यवर्धक है। गाय के घी अथवा बकरी के दूध के साथ लेने से शुक्राणुओं की वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त अधिक मासिक स्राव, क्षयरोग, खाँसी, भ्रम(चक्कर), कमर व हाथ पैरों का दर्द एवं सुन्नता तथा थायराइड संबंधी रोगों में भी यह लाभदायी है। नशे का जहर👉 किसी को नशा करने से शरीर में हानी हो गयी है ... नशे का जहर शरीर मै है...हॉस्पिटल मै भर्ती होने की नौबत आ रही हो ...ऐसे लोग भी खजूर के द्वारा जहर कों भगा कर स्वास्थ्य पा सकते है 5 से 7 खजूर अच्छी तरह धोकर रात को भिगोकर सुबह खायें। बच्चों के लिए 2-4 खजूर पर्याप्त हैं। दूध या घी में मिलाकर खाना विशेष लाभदायी है। पोषक तत्वों से भरपूर खजूर 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ प्रकृति ने मनुष्य को यूं तो बहुत कुछ दिया है पर हम प्रकृति की दी हुई इस अनमोल सम्पदा को ठीक प्रकार से उपयोग करना नहीं जानते। सर्दियों की मेवा के रूप में प्रकृति ने हमें बहुत सी चीजें दी हैं, जिनमें खजूर की मिठास का भी प्रमुख स्थान रहा है। यह दिल, दिमाग, कमर दर्द तथा आंखों की कमजोरी के लिए बहुत गुणकारी है। खजूर खाने से शरीर की आवश्यक धातुओं को बल मिलता है। यह छाती में एकत्रित कफ को निकालता है। खजूर में 60 से 70 प्रतिशत तक शर्करा होती है, जो गन्ने की चीनी की अपेक्षा बहुत पौष्टिक व गुणकारी वस्तु है। खाने में तो खजूर बहुत स्वादिष्ट होती ही है, सेहत की दृष्टि से भी यह बहुत गुणकारी है। इसके अलावा विभिन्न बीमारियों में भी खजूर का सेवन बहुत लाभ पहुंचाता है। डालते हैं, खजूर के गुणों पर एक नजर : कमजोरी : खजूर 200 ग्राम, चिलगोजा गिरी 60 ग्राम, बादाम गिरी 60 ग्राम, काले चनों का चूर्ण 240 ग्राम, गाय का घी 500 ग्राम, दूध दो लीटर और चीनी या गुड़ 500 ग्राम। इन सबका पाक बनाकर 50 ग्राम प्रतिदिन गाय के दूध के साथ खाने से हर प्रकार की शारीरिक वं मानसिक कमजोरी दूर होती है। बिस्तर पर पेशाब : छुहारे खाने से पेशाब का रोग दूर होता है। बुढ़ापे में पेशाब बार-बार आता हो तो दिन में दो छुहारे खाने से लाभ होगा। छुहारे वाला दूध भी लाभकारी है। यदि बच्चा बिस्तर पर पेशाब करता हो तो उसे भी रात को छुहारे वाला दूध पिलाएं। यह मसानों को शक्ति पहुंचाते हैं। मासिक धर्म : छुहारे खाने से मासिक धर्म खुलकर आता है और कमर दर्द में भी लाभ होता है। दांतों का गलना : छुहारे खाकर गर्म दूध पीने से कैलशियम की कमी से होने वाले रोग, जैसे दांतों की कमजोरी, हड्डियों का गलना इत्यादि रूक जाते हैं। रक्तचाप : कम रक्तचाप वाले रोगी 3-4 खजूर गर्म पानी में धोकर गुठली निकाल दें। इन्हें गाय के गर्म दूध के साथ उबाल लें। उबले हुए दूध को सुबह-शाम पीएं। कुछ ही दिनों में कम रक्तचाप से छुटकारा मिल जायेगी। कब्ज : सुबह-शाम तीन छुहारे खाकर बाद में गर्म पानी पीने से कब्ज दूर होती है। खजूर का अचार भोजन के साथ खाया जाए तो अजीर्ण रोग नहीं होता तथा मुंह का स्वाद भी ठीक रहता है। खजूर का अचार बनाने की विधि थोड़ी कठिन है, इसलिए बना-बनाया अचार ही ले लेना चाहिए। मधुमेह : मधुनेह के रोगी जिनके लिए मिठाई, चीनी इत्यादि वर्जित है, सीमित मात्रा में खजूर का इस्तेमाल कर सकते हैं। खजूर में वह अवगुण नहीं है, जो गन्ने वाली चीनी में पाए जाते हैं। पुराने घाव : पुराने घावों के लिए खजूर की गुठली को जलाकर भस्म बना लें। घावों पर इस भस्म को लगाने से घाव भर जाते हैं। आंखों के रोग : खजूर की गुठली का सुरमा आंखों में डालने से आंखों के रोग दूर होते हैं। खांसी : छुहारे को घी में भूनकर दिन में 2-3 बार सेवन करने से खांसी और बलगम में राहत मिलती है। जुएं : खजूर की गुठली को पानी में घिसकर सिर पर लगाने से सिर की जुएं मर जाती हैं। साभार~ पं देव शर्मा💐 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
🌿आयुर्वेदिक नुस्खों पर चर्चा - खजूर खाने के फायदे खजूर खाने के फायदे - ShareChat
#पूजा पाठ #sahi aachran सही आचरण 🙏🏻🙏🏻🌹🌹🙏🏻🙏🏻गलत पूजा पाठ न करें 🙏🙏🌹🌹🙏🏻🙏🏻एक कदम मोक्ष की ओर #गृहस्थी के लिए पूजा पाठ आचमन तीन बार ही क्यों? 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ पूजा, यज्ञ आदि आरंभ करने से पूर्व शुद्धि के लिए मंत्र पढ़ते हुए जल पीना ही आचमन कहलाता है। इससे मन और हृदय की शुद्धि होती है। धर्मग्रंथों में तीन बार आचमन करने के संबंध में कहा गया है। प्रथमं यत् पिवति तेन ऋग्वेद प्रीणाति । यद् द्वितीयं तेन यजुर्वेदं प्रीणाति यद् तृतीयं तेन सामवेदं प्रीणाति ॥ अर्थात् तीन बार आचमन करने से तीनों वेद यानी-ऋग्वेद, यजुर्वेद व सामवेद प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। मनु महाराज के मतानुसार त्रिराचामेदपः पूर्वम् । -मनुस्मृति 2/60 अर्थात् सबसे पहले तीन बार आचमन करना चाहिए। इससे कंठशोषण दूर होकर, कफ़ निवृत्ति के कारण श्वसन क्रिया में व मंत्रोच्चारण में शुद्धता आती है। इसीलिए प्रत्येक धार्मिक कृत्य के शुरू में और संध्योपासन के मध्य बीच-बीच में अनेक बार तीन की संख्या में आचमन का विधान बनाया गया है। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि इससे कायिक, मानसिक और वाचिक तीनों प्रकार के पापों की निवृत्ति होकर न दिखने वाले फल की प्राप्ति होती है। अंगूठे के मूल में ब्रह्मतीर्थ, कनिष्ठा के मूल प्रजापत्यतीर्थ, अंगुलियों के अग्रभाग में देवतीर्थ, तर्जनी और अंगूठे के बीच पितृतीर्थ और हाथ के मध्य भाग में सौम्यतीर्थ होता है, जो देवकर्म में प्रशस्त माना गया है। आचमन हमेशा ब्रह्मतीर्थ से करना चाहिए। आचमन करने से पहले अंगुलियां मिलाकर एकाग्रचित्त यानी एकसाथ करके पवित्र जल से बिना शब्द किए 3 बार आचमन करने से महान फल मिलता है। आचमन हमेशा 3 बार करना चाहिए। आचमन के मंत्र 〰️〰️〰️〰️〰️ जल लेकर तीन बार निम्न मंत्र का उच्चारण करते हैं:- हुए जल ग्रहण करें- ॐ केशवाय नम: ॐ नाराणाय नम: ॐ माधवाय नम: ॐ ह्रषीकेशाय नम:, बोलकर ब्रह्मतीर्थ (अंगुष्ठ का मूल भाग) से दो बार होंठ पोंछते हुए हस्त प्रक्षालन करें (हाथ धो लें)। उपरोक्त विधि ना कर सकने की स्थिति में केवल दाहिने कान के स्पर्श मात्र से ही आचमन की विधि की पूर्ण मानी जाती है। आचमन करने के बारे में मनुस्मृति में भी कहा गया है कि ब्रह्मतीर्थ यानी अंगूठे के मूल के नीचे से इसे करें अथवा प्राजापत्य तीर्थ यानी कनिष्ठ उंगली के नीचे से या देवतीर्थ यानी उंगली के अग्रभाग से करें, लेकिन पितृतीर्थ यानी अंगूठा व तर्जनी के मध्य से आचमन न करें, क्योंकि इससे पितरों को तर्पण किया जाता है, इसलिए यह वर्जित है। आचमन करने की एक अन्य विधि बोधायन में भी बताई गई है, जिसके अनुसार हाथ को गाय के कान की तरह आकृति प्रदान कर तीन बार जल पीने को कहा गया है। आचमन के बारे में स्मृति ग्रंथ में लिखा है की :- प्रथमं यत् पिबति तेन ऋग्वेद प्रीणाति। यद् द्वितीयं तेन यजुर्वेद प्रीणाति। यत् तृतीयं तेन सामवेद प्रीणाति। पहले आचमन से ऋग्वेद और द्वितीय से यजुर्वेद और तृतीय से सामवेद की तृप्ति होती है। आचमन करके जलयुक्त दाहिने अंगूठे से मुंह का स्पर्श करने से अथर्ववेद की तृप्ति होती है। आचमन करने के बाद मस्तक को अभिषेक करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। दोनों आंखों के स्पर्श से सूर्य, नासिका के स्पर्श से वायु और कानों के स्पर्श से सभी ग्रंथियां तृप्त होती हैं। माना जाता है कि ऐसे आचमन करने से पूजा का दोगुना फल मिलता है। साभार~ पं देव शर्मा💐 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
पूजा पाठ - आचमन का महत्त्व ऊँ केशवाय 6[8: 3ژ नारायणाय Gम ऊँ माधवाय O आचमन का महत्त्व ऊँ केशवाय 6[8: 3ژ नारायणाय Gम ऊँ माधवाय O - ShareChat
#श्री गणेशाय नमः श्री गणेश की मूर्ति के विषय में सारगर्भित वर्णन 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 1-श्री गणेश की मूर्ति 1फुट से अधिक बड़ी (ऊंची) नहीं होना चाहिए। 2-एक व्यक्ति के द्वारा सहजता से उठाकर लाई जा सके ऐसी मूर्ति हो। 3-सिंहासन पर बैठी हुई, लोड पर टिकी हुई प्रतिमा सर्वोत्तम है। 4-सांप,गरुड,मछली आदि पर आरूढ अथवा युद्ध करती हुई या चित्रविचित्र आकार प्रकार की प्रतिमा बिलकुल ना रखें। 5-शिवपार्वती की गोद में बैठे हुए गणेश जी कदापि ना लें. क्येंकि शिवपार्वती की पूजा लिंगस्वरूप में ही किये जाने का विधान है. शास्त्रों में शिवपार्वती की मूर्ति बनाना और उसे विसर्जित करना निषिद्ध है। 6-श्रीगणेश की मूर्ति की आंखों पर पट्टी बांधकर घरपर ना लाएं। 7-श्रीगणेश की जबतक विधिवत प्राणप्रतिष्ठा नहीं होती तब तक देवत्व नहीं आता. अत: विधिवत् प्राणप्रतिष्ठा करें। 8-परिवार मेंअथवा रिश्तेदारी में मृत्युशोक होने पर, सूतक में पडोसी या मित्रों द्वारा पूजा, नैवेद्य आदि कार्य करायें. विसर्जित करने की शीघ्रता ना करें। 9-श्रीगणेश की प्राणप्रतिष्ठा होने के बाद घर में वादविवाद, झगड़ा, मद्यपान, मांसाहार आदि ना करें। 10-श्रीगणेशजी को ताजी सब्जीरोटी का भी प्रसाद नैवेद्य के रूप में चलता है केवल उसमें खट्टा, तीखा, मिर्चमसाले आदि ना हों। 11-दही+शक्कर+भात यह सर्वोत्तम नैवेद्य है। 12-विसर्जन के जलूस में झांज- मंजीरा,भजन आदि गाकर प्रभु को शांति पूर्वक विदा करें. डी. जे. पर जोर जोर से अश्लील नाच, गाने, होहल्ला करके विकृत हावभाव के साथ श्रीगणेश की बिदाई ना करें. ध्यान रहे कि इस प्रकार के अश्लील गाने अन्यधर्मावलंबियों केउत्सवों पर नहीं बजाते. 13-यदि ऊपर वर्णित बातों पर अमल करना संभव ना हो तो श्रीगणेश की स्थापना कर उस मूर्ति का अपमान ना करें। अंत में-जो लोग 10दिनों तक गणेशाय की झांकी के सामने रहते हैं, अगर वो नहीं सुधर सकते, तो हम आप भीड़ में धक्के खाकर 2,4 सेकिंड का दर्शन कर सुघर जायेंगे??? कितने अंधेरे में हैं हम लोग.!! इस अंधेरे में क्षणिक प्रकाश ढूंढने की अपेक्षा, घर में रखी हुई गणेशमूर्ति के सामने 1घंटे तक शांत बैठे. अपना आत्मनिरीक्षण करें, अच्छा व्यवहार करें.. घरपर ही गणेश आपपर कृपा बरसायेंगे. श्रीगणेशजी एक ही हैं.... उनकी अलग अलग कंपनियां नहीं होती... अपनी सोच अलग हो सकती है. एकाग्रचित्त हों, शांति प्राप्त करें। शुभम साभार~ पं देव शर्मा💐 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
श्री गणेशाय नमः - श्रीगणेशकी मूर्तिकैे बारेमें सारगर्भितवर्णन श्रीगणेशकी मूर्तिकैे बारेमें सारगर्भितवर्णन - ShareChat
#ज्योतिष ज्योतिष और आध्यात्म (महत्त्वपूर्ण लेख) 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ भारतीय संस्कृति में मानव-जीवन आनन्द और शान्ति की प्राप्तिके लिये है।ऋषि-मुनियों ने जीवन को ऐहलौकिक और पारलौकिक दो भागों में विभक्त किया है। मानव के जीवनकाल में भौतिक सुख-शान्ति के लिये हमारे यहाँ अनेक शास्त्र हैं- (१) आयुर्वेद, (२) ज्योतिष, (३) योगशास्त्र, (४) वास्तुशास्त्र एवं (५) शिल्प-कला आदि। अध्यात्म में- (१) वेदान्त, (२) न्याय, (३) सांख्य, (४) योगदर्शन आदि हैं। मानव अपने जीवन-यापन तथा सुख-शान्ति के लिये शुभ एवं अशुभ कर्म करता है। कर्मों से ही उसका भाग्य (प्रारब्ध) का योग बनता है। जीवन में सुख-दु:ख का, अनुकूलता-प्रतिकूलता का एवं वर्तमान तथा भविष्य का ज्ञान ज्योतिष शास्त्र से होता है। ज्योतिषशास्त्र वेद का चक्षु (नेत्र) है। इस शास्त्र का उद्देश्य जीवन को अध्यात्म की ओर लगाना है। ज्योतिष शास्त्र व्यावहारिक जीवन को दर्शित करने का शास्त्र है। इससे प्रारब्ध की जानकारी होती है तथा यह जीवन को अग्रसर करने की प्रेरणा देता है, सत्कर्मों में प्रवृत्त करता है और जीवन के भूत-भविष्य को प्रदर्शित करता है। काल भगवान को कहते हैं- 'कालः कलयतामहम्।' सृष्टि का सृजन, पालन एवं संहार काल भगवान् करते हैं। काल ही पल, घड़ी, दिन, रात, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग और मन्वन्तर आदि के रूपमें है। काल एक अनिर्वचनीय तत्त्व है। हम जिस जगत में रहते हैं, उसके नियामक कालरूप सूर्य ही हैं। सूर्य ही ग्रह, उपग्रह तथा नक्षत्र मण्डल की सृष्टिकर उसे गतिशील एवं प्रकाशित करते हैं। यह सौरमण्डल ही जीवों के कर्म का साक्षी है। ज्योतिषशास्त्र में इन्हीं सौरमण्डल के ग्रह, नक्षत्रों तथा राशि-समुहों और पृथ्वी के जीवों के परस्पर सम्बन्ध एवं परस्पर पड़ने वाले प्रभावों का विवेचन है। हमारी दैनिकचर्या, दिन-रात, पक्ष-मास तथा वर्षादि के काल का ज्ञान ज्योतिष शास्त्र से ही होता है। दिन, नक्षत्र, मास, सूर्योदय, सूर्यास्त आदि इसी शास्त्र से होते हैं। जीवन में यज्ञोपवीत, विवाह, नामकरण आदि संस्कार एवं यज्ञ-दानादिकर्म, यात्रा तथा देव-प्रतिष्ठा आदि इसी शास्त्र से निर्दिष्ट होते हैं। सृष्टि-रहस्य और क्रम, भूगर्भ स्थिति, मौसम-विज्ञान आदिका ज्ञान भी इससे ही होता है। सृष्टिका सृजन-पालन एवं संहारका क्रम चलता रहता है, जिसे कालचक्र कहते हैं। भौतिक जीवन का उद्देश्य अध्यात्म-जीवनकी प्राप्ति करना है। हमारे जीवन में अनुकूलता एवं प्रतिकूलता की जानकारी ज्योतिषशास्त्र से होती है तथा उसका निराकरण भी ज्योतिष ही बतलाता है जैसे किसी व्यक्ति के अरिष्ट का योग है तो उसका उपाय महामृत्युंजय का अनुष्ठान तथा दान आदि करना ज्योतिषशास्त्र बतलाता है। सृष्टिके सृजन-पालन और प्रलय-इन सभी अवस्थाओं में परमात्मा सदा समान रूप से रहते हैं, सृष्टि में जो वैशिष्ट्य है, वह सब परमात्माका ही है। गीता में भगवान् स्वयं इस बातको निम्न वचनों द्वारा निर्दिष्ट करते हैं- 'ज्योतिषां रविरंशुमान्', 'नक्षत्राणामहं शशी', 'यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।' 'अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते।' 'अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन।' 'यदादित्यगतं तेजो जगद्भा सयतेऽखिलम्। यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि - मामकम्॥' जिस प्रकार वृक्ष के मूल को जल से सींचने पर शाखा, पत्ते, फल, फल सब तप्त हो जाते हैं. उसी प्रकार भगवान की उपासना (भजन) से सम्पूर्ण जगत् तृप्त हो जाता है यथा तरोर्मूलनिषेचनेन तृष्यन्ति तत्स्कन्धभुजोपशाखाः। प्राणोपहाराच्च यथेन्द्रियाणां तथैव सर्वार्टणमच्युतेज्या॥ मानवको चाहिये कि वह अपने जीवन में भगवान की मुख्यता रखे एवं उनकी आराधना करता रहे, अपने इष्ट देव के अनुसार भगवन्नाम-जप, संकीर्तन, भगवद्ध्यान, भगवद्-विग्रह-दर्शन, भक्तोंकी तथा भगवान की कथा का श्रवण, भगवद्गुणानुवाद करता रहे, सत्य बोले, संयम रखे, भगवान्-गुरुजनों-माता-पिता तथा पूज्यजनों को प्रणाम करे, उनका सदा सम्मान करे। इस दैवीचर्या से ग्रह-नक्षत्रादि सभी स्वयं उसके अनुकूल हो जाते हैं।नमस्कार करने से सब पाप-ताप मिट जाते हैं। आयु बढ़ जाती है। विद्या आती है। अहंकार दूर होता है। मार्कण्डेय ऋषि की आयु नमस्कार करने मात्र से बढ़ गयी तथा वे चिरंजीवी हो गये। दान करने से सब आपदाएँ मिट जाती हैं। 'प्रगट चारि पद धर्म के कलि अं महुँ एक प्रधान। जेन केन बिधि दीन्हें दान करड़ प्र कल्यान । भगवत् प्रार्थना से कौरवों की सभा में भगवान ने द्रौपदी की लाज रखी। गजेन्द्रको ग्राह से बचाया। सबका निष्काम भाव से हित करने से सब संकट दूर होकर भगवत प्राप्ति हो जाती है। 'ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः।' सर्वदेवमयी गौकी सेवा से हृदयरोग, शारीरिक दौर्बल्य आदि रोग मिट जाते हैं। शंकरभगवान् पर एवं सूर्य-भगवान पर जल चढ़ाने से सभी ग्रह-बाधाएँ, रोग तथा आपदाएँ मिट जाती हैं। रामेश्वर यात्रा में प्यासे मरते हुए गधे को गंगाजल पिलाने से एकनाथ जी को वहीं रामेश्वर भगवान् ने दर्शन दे दिये। हिमाचल प्रदेशमें एक गरीब किसान ने गंगायात्रा करने के विचार से धन कमाकर एकत्रित किया। पड़ोसी की कन्या बीमार हो गयी थी। किसान ने यात्रा न करके वह पैसा कन्या की चिकित्सा के लिये लगाया। गंगाजी ने किसानकी यात्रा सफल मानकर उसको वहीं दर्शन दे दिया। श्रीहनुमान् जी की उपासना करने से सब संकट दूर होते हैं- भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥ संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥ कोणार्क का सूर्य मन्दिर राजाने सूर्योपासना से शरीर का कुष्ठ रोग ठीक होनेपर निर्माण करवाया। माता-पिता की सेवा से भगवान् प्रसन्न होकर पण्ढरपुर में पुण्डरीक भक्त के लिये एक ईंटपर खड़े हैं। सन्त श्री तुलसीदास जी महाराज ने एक मुर्देको। रामनाम के प्रभाव से जीवित कर दिया। तुलसी मुआ मंगाय के सिर पर धरिया हाथ। मैं तो कछु जानू नहीं तुम जानो रघुनाथ।। भायें कभायँ अनख आलसहूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ।। उलटा नामु जपत जगु जाना। बालमीकि भए ब्रह्म समाना॥ सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे राम।। अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ। भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ।। सीथल ग्राम बीकानेर जिले में पूज्य सन्त श्रीहरिरामदास जी के शरीर त्याग देने पर शिष्यों ने भगवान से प्रार्थना की तो वे पुनः उसी शरीर में आये और महोत्सव- पर्यन्त जीवित रहे। भगवान् कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुम् सर्वथा समर्थ हैं। अत: भगवान् के भजन से सब संकट, रोग आदि मिट जाते हैं-सन्तोंने कहा है- सब ही कूँ डर काल का निडर न दीसै कोय। हरिया, जा। डर नहीं, राम सनेही होय॥ करता जो कायम करे तो कुण मारण हार। जन हरिया करतार बिन और न को आधार ॥ सिर ऊपर साहिब खड़ा समरथ राम दयाल। रामदास सांसो तजो कदै न व्यापै काल॥ श्वांस श्वांस दम दम बिचै रक्षक राम दयाल। रामा राम उचारतां कदै न व्यापै काल॥ अत: मानव को भगवान् का भजन, परोपकार एवं सदाचार का पालन करना चाहिये, जिससे वह सदा सुखी रहे, आनन्दित रहे। यस्य स्मरणमात्रेण जन्मसंसारबन्धनात्। विमुच्यते नमस्तस्मै विष्णवे प्रभविष्णवे॥ जीवमात्र भगवत्स्मरण, व्यक्ति भगवन्नाम संकीर्तन,भगवत् प्रणाम आदि से जन्म-मरण रूपी संसार-बन्धन से मुक्त हो जाता है। अपवित्र-पवित्र-कैसी भी अवस्था में जो भगवान् का स्मरण करता है, वह बाहर-भीतर से शुद्ध हो जाता है- ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥ साभार~ पं देव शर्मा💐 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
ज्योतिष - ज्योतिष और आध्यात्म (महत्त्वपूर्ण लेख) ज्योतिष और आध्यात्म (महत्त्वपूर्ण लेख) - ShareChat
#राधे राधे राधा और रुक्मिणी में से लक्ष्मी कौन ? 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ चराचर जगत में रुक्मिणी और राधा का संबंध श्रीकृष्ण से है। संसार रुक्मिणी जी को श्रीकृष्ण की पत्नी और राधा जी को श्रीकृष्ण की प्रेमिका के रूप में मानता है। आम जगत में रुक्मिणी और राधा की यही पहचान है परंतु क्या कभी आपके मन में यह प्रशन उठा है की राधा और रुक्मिणी में से कौन लक्ष्मी का अवतरण था ? इस लेख के माध्यम से हम शास्त्रों के अनुसार इस तथ्य से आप सभी पाठकों को रूबरू करवाते हैं। शास्त्रों में लक्ष्मी जी के रहस्य को इस प्रकार उजागर किया है कि लक्ष्मी जी क्षीरसागर में अपने पति श्री विष्णु के साथ रहती हैं एवं अपने अवतरण स्वरुप में राधा के रूप में कृष्ण के साथ गोलोक में रहती हैं। महाभारत में लक्ष्मी के ‘विष्णुपत्नी लक्ष्मी’ एवं ‘राज्यलक्ष्मी’ ऐसे दो प्रकार बताए गए हैं। इनमें से लक्ष्मी हमेशा विष्णु के पास रहती हैं एवं राज्यलक्ष्मी पराक्रमी राजाओं के साथ विचरण करती हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार विष्णु के दक्षिणांग से लक्ष्मी का, एवं वामांग से लक्ष्मी के ही अन्य एक अवतार राधा का जन्म हुआ था। ब्रह्मवैवर्त पुराण में निर्दिष्ट लक्ष्मी के अवतार एवं उनके प्रकट होने के स्थान इस प्रकार है 1.महालक्ष्मी जो वैकुंठ में निवास करती हैं। 2. स्वर्गलक्ष्मी जो स्वर्ग में निवास करती हैं। 3. राधा जी गोलोक में निवास करती हैं। 4. राजलक्ष्मी (सीता) जी पाताल और भूलोक में निवास करती हैं। 5. गृहलक्ष्मी जो गृह में निवास करती हैं। 6. सुरभि (रुक्मणी) जो गोलोक में निवास करती हैं। 7. दक्षिणा जो यज्ञ में निवास करती हैं। 8. शोभा जो हर वस्तु में निवास करती हैं। लक्ष्मी रहस्य का रूपकात्मक दिग्दर्शन करने वाली अनेकानेक वृतांत और कथाएं महाभारत जैसे शास्त्रों में वर्णित हैं। जिनमें से एक वृतांत है "लक्ष्मी-रुक्मिणी संवाद" महाभारत के एक प्रसंग में लक्ष्मी के रहस्य से संबंधित एक प्रशन युधिष्ठिर ने भीष्म से पूछा था, जिसका जवाब देते समय भीष्म ने लक्ष्मी एवं रुक्मिणी के दरम्यान हुए एक संवाद की जानकारी युधिष्ठिर को दी। महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार, लक्ष्मी ने रुक्मिणी से कहा था, की मेरा निवास तुममे (रुक्मिणी) और और राधा में समानता से है तथा गोकुल कि गाएं एवं गोबर में भी मेरा निवास है। श्रीकृष्ण के तत्व दर्शन अनुसार रुक्मिणी को देह और राधा को आत्मा माना गया है। श्रीकृष्ण का रुक्मिणी से दैहिक और राधा से आत्मिक संबंध माना गया है। रुक्मिणी और राधा का दर्शन बहुत गहरा है। इसे सम्पूर्ण सृष्टि के दर्शन से जोड़कर देखें तो सम्पूर्ण जगत की तीन अवस्थाएं हैं। 1. स्थूल; 2. सूक्ष्म; 3. कारण स्थूल जो दिखाई देता है जिसे हम अपने नेत्रों से देख सकते हैं और हाथों से छू सकते हैं वह कृष्ण-दर्शन में रुक्मणी कहलाती हैं। सूक्ष्म जो दिखाई नहीं देता और जिसे हम न नेत्रों से देख सकते हैं न ही स्पर्श कर सकते हैं, उसे केवल महसूस किया जा सकता है वही राधा है और जो इन स्थूल और सूक्ष्म अवस्थाओं का कारण है वह हैं श्रीकृष्ण और यही कृष्ण इस मूल सृष्टि का चराचर हैं। अब दूसरे दृष्टिकोण से देखें तो स्थूल देह और सूक्ष्म आत्मा है। स्थूल में सूक्ष्म समा सकता है परंतु सूक्ष्म में स्थूल नहीं। स्थूल प्रकृति और सूक्ष्म योगमाया है और सूक्ष्म आधार शक्ति भी है लेकिन कारण की स्थापना और पहचान राधा होकर ही की जा सकती है। यदि चराचर जगत में देखें तो सभी भौतिक व्यवस्था रुक्मणी और उनके पीछे कार्य करने की सोच राधा है और जिनके लिए यह व्यवस्था की जा रही है और वो कारण है श्रीकृष्ण। अतः राधा और रुक्मणी दोनों ही लक्ष्मी का प्रारूप है परंतु जहां रुक्मणी देहिक लक्ष्मी हैं वहीं दूसरी ओर राधा आत्मिक लक्ष्मी हैं। साभार~ पं देव शर्मा💐 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
राधे राधे - राधा औरखक्मिणीधैसैलक्ष्मीकौन२ राधा औरखक्मिणीधैसैलक्ष्मीकौन२ - ShareChat
#गायत्री मंत्र अगर चाहिए स्वस्थ तन और मन तो कीजिए गायत्री मंत्र का जाप 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 कहते हैं कि यदि आप संस्कृत भाषा में अलग-अलग मंत्रों का उच्चारण करते हैं तो आपका तन और मन स्वस्थ रहता है, और कहीं आप उच्चारित किए जाने वाले मंत्रों का अर्थ भी जानते हों तो फिर सोने पर सुहागा. संस्कृत मंत्रों का सूची में सबसे ऊपर आता है गायत्री मंत्र. इस मंत्र के हर एक शब्द के अलहदा मायने हैं. आप भी इसे जानिए:- 1. दिमाग को शांत रखता है 〰〰🌼〰〰🌼〰〰 गायत्री मंत्र की शुरुआत ओम शब्द से होती है. ओम शब्द का उच्चारण आपके ओंठ, जीभ, तालु, गले के पिछले हिस्से और खोपड़ी में कंपन पैदा करता है. ऐसा माना जाता है कि हार्मोनों के रिलीज की वजह से दिमाग शांत होता है. गायत्री मंत्र के अक्षर कुछ इस कदर बिठाए गए हैं कि उनका उच्चारण करने से दिल और दिमाग को ठंडक पहुंचती है. 2. प्रतिरोधी क्षमता विकसित करता है 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 जीभ, ओंठ, वोकल कॉर्ड, तालु और दिमाग पर इस मंत्र के उच्चारण और उससे निकलने वाले कंपन की वजह से हाइपोथैलमस ग्लैंड से हारमोन का स्त्राव होता है. इस हारमोन के स्त्राव की वजह से इंसान को ख़ुश रखने वाले हार्मोन शरीर से बाहर निकलते हैं. ये हार्मोन इंसान में शारीरिक विकारों व व्याधियों से लड़ने की क्षमता को भी पुख्ता करते हैं. गायत्री मंत्र के उच्चारण से शरीर के भीतर के चक्र या केंद्रों को भी राहत पहुंचती है. 3. किसी भी चीज़ को जल्दी सीखने व एकाग्रचित्त होने में मदद करता है 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 अब इसमें हम अपनी ओर से कुछ नहीं कह रहे हैं. अंतर्राष्ट्रीय जर्नल ऑफ योगा ने उनके एक रीसर्च व अध्ययन में कहा है कि संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से इंसान अपेक्षाकृत ज़्यादा बेहतर एकाग्रचित्त रह सकता है. गायत्री मंत्र के लगातार उच्चारण से शरीर के भीतर मौजूद चक्र झंकृत हो जाते हैं. 4. आपके सांस लेने की क्षमता मजबूत होती है 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 मंत्र के उच्चारण के दौरान आपको सिलसिलेवार व लंबे स्वाश लेने पड़ते हैं जो आपके स्वाश लेने की शक्ति को मजबूत करते हैं. इससे न सिर्फ़ आपका फेफड़ा मजबूत होता है बल्कि इस तरह से सांस लेने से आपका रक्त संचार भी बढ़िया हो जाता है. 5. आपके दिल को स्वस्थ रखता है 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपने वाली रिपोर्ट को गर सही मानें तो गायत्री मंत्र का उच्चारण दिल की धड़कन को भी बेहतर तालमेल में रखता है. इसकी वजह से मनुष्य के भीतर का रक्तचाप भी नियंत्रण में रहता है. 6. नसों के कार्य क्षमता को नियंत्रित रखता है 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 मंत्र के उच्चारण के साथ ही शरीर के अलग-अलग हिस्से में होने वाली कंपन दिमाग व नसों में होने वाले रक्तसंचार को काबू में रखती है. ये मंत्र उच्चारण दिमाग व शरीर में मौजूद नसों में बेहतर तालमेल स्थापित करने में मदद करते हैं. 7. तनाव को कम करने व उससे होने वाली नुकसान की भरपाई 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 मंत्र के उच्चारण से तनाव व चिंता तो कुछ इस कदर गायब होते हैं जैसे गदहे के सिर से सींघ. और यदि आप मंत्र उच्चारण को रोज का शगल बना लेते हैं तो विश्वास मानिए कि इससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता. 8. दिमाग को मजबूत व अवसाद को बहुत दूर रखता है 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰🌼〰〰 गायत्री मंत्र के उच्चारण से दिमाग नियंत्रण में रहता है. अंतर्राष्ट्रीय योगा जर्नल में एक अध्ययन के छपने के बाद इस बाद का खुलासा हुआ है कि यह मंत्र अवसाद से उबरने में सहायक होता है. अब मैं तो इस स्टडी से पूरी तरह सहमत हूं, हो सकता है कि आप भी हों. 9. शरीर व चेहरे पर चमक ले आता है 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 इस मंत्र के उच्चारण से शरीर के भीतर कुछ ऐसे हार्मोन्स रिलीज होते हैं कि शरीर व चेहरे पर स्वत: ही चमक आ जाती है. और साथ ही वे लंबे समय तक जवां रहने में मदद करते हैं. 10. अस्थमा से भी राहत दिलाता है 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 गायत्री मंत्र के उच्चारण के दौरान लोग लंबी सांस लेते हैं और उन्हें थोड़ी देर तक रोक कर रखते हैं. यह पूरी प्रक्रिया फेफड़े को मजबूत करती है और अस्थमा के मरीजों के लिए ख़ास सहायक होती है। साभार~ पं देव शर्मा💐 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
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#श्रीमद्वाल्मिकी_रामायण_पोस्ट_क्रमांक०६२ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण बालकाण्ड सत्तावनवाँ सर्ग विश्वामित्रकी तपस्या, राजा त्रिशंकुका अपना यज्ञ करानेके लिये पहले वसिष्ठजीसे प्रार्थना करना और उनके इन्कार कर देनेपर उन्हींके पुत्रोंकी शरणमें जाना श्रीराम! तदनन्तर विश्वामित्र अपनी पराजयको याद करके मन-ही-मन संतप्त होने लगे। महात्मा वसिष्ठके साथ वैर बाँधकर महातपस्वी विश्वामित्र बारम्बार लम्बी साँस खींचते हुए अपनी रानीके साथ दक्षिण दिशामें जाकर अत्यन्त उत्कृष्ट एवं भयंकर तपस्या करने लगे॥१-२॥ वहाँ मन और इन्द्रियोंको वशमें करके वे फल-मूलका आहार करते तथा उत्तम तपस्यामें लगे रहते थे। वहीं उनके हविष्पन्द, मधुष्पन्द, दृढनेत्र और महारथ नामक चार पुत्र उत्पन्न हुए, जो सत्य और धर्ममें तत्पर रहनेवाले थे॥३½॥ एक हजार वर्ष पूरे हो जानेपर लोकपितामह ब्रह्माजीने तपस्याके धनी विश्वामित्रको दर्शन देकर मधुर वाणीमें कहा—'कुशिकनन्दन! तुमने तपस्याके द्वारा राजर्षियोंके लोकोंपर विजय पायी है। इस तपस्याके प्रभावसे हम तुम्हें सच्चा राजर्षि समझते हैं'॥४-५½॥ यह कहकर सम्पूर्ण लोकोंके स्वामी ब्रह्माजी देवताओंके साथ स्वर्गलोक होते हुए ब्रह्मलोकको चले गये॥६½॥ उनकी बात सुनकर विश्वामित्रका मुख लज्जासे कुछ झुक गया। वे बड़े दुःखसे व्यथित हो दीनतापूर्वक मन-ही-मन यों कहने लगे—'अहो! मैंने इतना बड़ा तप किया तो भी ऋषियोंसहित सम्पूर्ण देवता मुझे राजर्षि ही समझते हैं। मालूम होता है, इस तपस्याका कोई फल नहीं हुआ'॥७-८½॥ श्रीराम! मनमें ऐसा सोचकर अपने मनको वशमें रखनेवाले महातपस्वी धर्मात्मा विश्वामित्र पुनः भारी तपस्यामें लग गये॥९½॥ इसी समय इक्ष्वाकुकुलकी कीर्ति बढ़ानेवाले एक सत्यवादी और जितेन्द्रिय राजा राज्य करते थे। उनका नाम था त्रिशंकु॥१०½॥ रघुनन्दन! उनके मनमें यह विचार हुआ कि 'मैं ऐसा कोई यज्ञ करूँ, जिससे अपने इस शरीरके साथ ही देवताओंकी परम गति—स्वर्गलोकको जा पहुँचूँ'॥११½॥ तब उन्होंने वसिष्ठजीको बुलाकर अपना यह विचार उन्हें कह सुनाया। महात्मा वसिष्ठने उन्हें बताया कि 'ऐसा होना असम्भव है'॥१२½॥ जब वसिष्ठने उन्हें कोरा उत्तर दे दिया, तब वे राजा उस कर्मकी सिद्धिके लिये दक्षिण दिशामें उन्हींके पुत्रोंके पास चले गये॥१३½॥ वसिष्ठजीके वे पुत्र जहाँ दीर्घकालसे तपस्यामें प्रवृत्त होकर तप करते थे, उस स्थानपर पहुँचकर महातेजस्वी त्रिशंकुने देखा कि मनको वशमें रखनेवाले वे सौ परमतेजस्वी वसिष्ठकुमार तपस्यामें संलग्न हैं। उन सभी महात्मा गुरुपुत्रोंके पास जाकर उन्होंने क्रमशः उन्हें प्रणाम किया और लज्जासे अपने मुखको कुछ नीचा किये हाथ जोड़कर उन सब महात्माओंसे कहा—॥१६½॥ 'गुरुपुत्रो! आप शरणागतवत्सल हैं। मैं आपलोगोंकी शरणमें आया हूँ, आपका कल्याण हो। महात्मा वसिष्ठने मेरा यज्ञ कराना अस्वीकार कर दिया है। मैं एक महान् यज्ञ करना चाहता हूँ। आपलोग उसके लिये आज्ञा दें॥१७-१८॥ 'मैं समस्त गुरुपुत्रोंको नमस्कार करके प्रसन्न करना चाहता हूँ। आपलोग तपस्यामें संलग्न रहनेवाले ब्राह्मण हैं। मैं आपके चरणोंमें मस्तक रखकर यह याचना करता हूँ कि आपलोग एकाग्रचित्त हो मुझसे मेरी अभीष्टसिद्धिके लिये ऐसा कोई यज्ञ करावें, जिससे मैं इस शरीरके साथ ही देवलोकमें जा सकूँ॥१९-२०॥ 'तपोधनो! महात्मा वसिष्ठके अस्वीकार कर देनेपर अब मैं अपने लिये समस्त गुरुपुत्रोंकी शरणमें जानेके सिवा दूसरी कोई गति नहीं देखता॥२१॥ 'समस्त इक्ष्वाकुवंशियोंके लिये पुरोहित वसिष्ठजी ही परमगति हैं। उनके बाद आप सब लोग ही मेरे परम देवता हैं'॥२२॥ *इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें सत्तावनवाँ सर्ग पूरा हुआ॥५७॥* ###श्रीमद्वाल्मिकी_रामायण२०२५
##श्रीमद्वाल्मिकी_रामायण२०२५ - हरि शरणं ೦೦೦:: नारयण बृणचद बिनु जीवन कौन सहारा। IH सकल सुभग सब तजै संसारा Il যম ক নিনা হ্ম সসাং ম ক্িমী ক্ধা ব্মীৎ মন্সা सहारा नहीं| सब कुछ अस्थायी है। सच्चा आधार केवल राम का नाम है; बाकी सब समय के साथ बदल जाता है। हरि शरणं ೦೦೦:: नारयण बृणचद बिनु जीवन कौन सहारा। IH सकल सुभग सब तजै संसारा Il যম ক নিনা হ্ম সসাং ম ক্িমী ক্ধা ব্মীৎ মন্সা सहारा नहीं| सब कुछ अस्थायी है। सच्चा आधार केवल राम का नाम है; बाकी सब समय के साथ बदल जाता है। - ShareChat
🕉️🗽🛕🏖️🎋🏝️🌳 *🙏सादर वन्दे🙏* *🚩धर्मयात्रा🚩* *🏖️श्रीवर्धन शहर,महाराष्ट्र 🗽* महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में श्रीवर्धन स्थित है यह एक समुद्र तटीय शहर है। यह स्थान अपने शांत समुद्र तटों , मन्दिरों और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पेशवा बालाजी विश्वनाथ का निवास स्थान था तथा यह महान पेशवाओं की शुरुआत का स्थान है । श्री वर्धन में एक शिव मदिर भी है। श्रीवर्धन में कई समुद्र तट हैं , इसके अलावा यह दिवेआगर बीच और कोंडिवली बीच जैसे कई अन्य समुद्र तटीय स्थलों के भी निकट है । पूरे महाराष्ट्र से लोग साल भर श्रीवर्धन और आसपास के समुद्र तटों पर आते हैं। श्रीवर्धन का अर्थ भगवान विष्णु , भगवान शिव है। भगवान विष्णु , भगवान शिव अर्थ होने के कारण श्रीवर्धन इसका नाम बहुत सुन्दर लगता है। महाराष्ट्र का एक शांत तटीय शहर श्रीवर्धन न केवल अपने प्राचीन समुद्र तटों के लिए , बल्कि अपने महत्वपूर्ण मन्दिरों और धार्मिक स्थलों के लिए भी प्रसिद्ध है। ये स्थल अपार ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व रखते हैं , जो श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। *श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर* , भगवान विष्णु को समर्पित एक अद्भुत स्थापत्य कला का उदाहरण है। पेशवा काल में निर्मित , यह मन्दिर जटिल नक्काशी और पारंपरिक मराठा वास्तुकला का प्रतीक है। यह स्थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है। *जीवनेश्वर मन्दिर* , यह मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है । हरियाली के बीच बसा यह प्राचीन मन्दिर , ध्यान और प्रार्थना के लिए एक शांत स्थान है। *काल भैरव मन्दिर* यह भगवान भैरवनाथ को समर्पित एक प्राचीन मन्दिर है जो श्रीवर्धन समुद्र तट के पास एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यह श्रीवर्धन समुद्र तट से लगभग 5 किमी दूर है और कार या बाइक से लगभग 10 मिनट में पहुँचा जा सकता है। यह अपनी पत्थर की नक्काशी , मूर्तियों और हिंदू पौराणिक कथाओं के विभिन्न दृश्यों को दर्शाने वाले चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। आप मन्दिर से अरब सागर और आसपास की पहाड़ियों के मनोरम दृश्य का भी आनंद ले सकते हैं। इसका ऐतिहासिक महत्व और इसका शांत वातावरण इसे शानदार दर्शनीय स्थल बनाता है । श्रीवर्धन बीच मुंबई , पुणे और हरिहरेश्वर से रेल , हवाई और सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। आप अपने बजट, समय और सुविधानुसार परिवहन का कोई भी साधन चुन सकते हैं। श्रीवर्धन बीच का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन मानगाँव है , जो लगभग 45 कि.मी. दूर है। आप मुंबई या पुणे से मानगाँव तक ट्रेन से आ सकते हैं और फिर श्रीवर्धन बीच के लिए बस या टैक्सी ले सकते हैं। श्रीवर्धन बीच पहुँचने का सबसे सुविधाजनक तरीका सड़क मार्ग है क्योंकि यह आपको अपनी गति से यात्रा करने का सुविधाजनक और आरामदायक साधन है। आप मुंबई या पुणे से श्रीवर्धन बीच के लिए बस या टैक्सी भी ले सकते हैं। मुंबई से श्रीवर्धन करीब 172 कि.मी. , पुणे से करीब 162 कि.मी.एवं हरिहरेश्वर से मात्र 20 कि.मी.दूर स्थित है l *आप भी धर्मयात्रा🚩 हेतु जुड़ सकते हैं : *धर्मयात्रा में दी गई ये जानकारियाँ , मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। यहाँ यह बताना जरूरी है कि , धर्मयात्रा किसी भी तरह की मान्यता , जानकारी की पुष्टि नहीं करता है ।* *🙏शिव🙏9993339605* 🕉️🗽🛕🏖️🌳🎋🕉️ #🏞 पर्यटन फोटोग्राफी #🌊खूबसूरत झरने की फोटोग्राफी #🌊खूबसूरत झरने की फोटोग्राफी #🚗🧗🏻भारत भ्रमण व सफर प्रेमी🚂⛰ #😍खूबसूरत पर्यटन स्थल🏝 #🙏धार्मिक पर्यटन स्थल🛕
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