#वाल्मीकि जयंती #🌹🌻वाल्मीकि जयंती🌻🌹
महर्षि वाल्मीकि जन्मोत्सव विशेष
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आश्विन मास की पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को परगट दिवस या वाल्मिकी जयंती के रूप में भी जाना जाता है , और यह हिंदू धर्म के बाल्मीकि धार्मिक संप्रदाय के अनुयायियों का एक प्रमुख उत्सव भी है।
वाल्मीकि, संस्कृत रामायण के प्रसिद्ध रचयिता हैं जो आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने संस्कृत मे रामायण की रचना की। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। रामायण एक महाकाव्य है जो कि श्री राम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य व कर्तव्य से, परिचित करवाता है। आदिकवि शब्द 'आदि' और 'कवि' के मेल से बना है। 'आदि' का अर्थ होता है 'प्रथम' और 'कवि' का अर्थ होता है 'काव्य का रचयिता'। वाल्मीकि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी जो रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना करने के कारण वाल्मीकि आदिकवि कहलाये।
जीवन परिचय
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किंवदंती के अनुसार वह एक बार महान ऋषि नारद से मिले और उनके साथ उनके कर्तव्यों पर चर्चा की। नारद के शब्दों से प्रभावित होकर, अग्नि शर्मा ने तपस्या करना शुरू कर दिया और "मरा" शब्द का जाप किया जिसका अर्थ था "मरना"। जैसे ही उन्होंने कई वर्षों तक तपस्या की, शब्द "राम" बन गया, जो भगवान विष्णु का एक नाम था। अग्नि शर्मा के चारों ओर विशाल एंथिल का निर्माण हुआ और इससे उन्हें वाल्मिकी नाम मिला।
एक अन्य कथा के अनुसार ऋषि बनने से पहले वाल्मिकी एक चोर थे, इसके बारे में कुछ किंवदंतियाँ भी मौजूद हैं। स्कंद पुराण के नागर खंड में मुखारा तीर्थ के निर्माण पर अपने खंड में उल्लेख किया गया है कि वाल्मिकी का जन्म एक ब्राह्मण के रूप में हुआ था , जिसका नाम लोहजंघा था और वह अपने माता-पिता के प्रति समर्पित पुत्र थे। उसकी एक खूबसूरत पत्नी थी और वे दोनों एक-दूसरे के प्रति वफादार थे। एक बार, जब अनारता क्षेत्र में बारह वर्षों तक बारिश नहीं हुई, तो लोहजंघा ने अपने भूखे परिवार की खातिर, जंगल में मिलने वाले लोगों को लूटना शुरू कर दिया। इस जीवन के दौरान वह सात ऋषियों या सप्तर्षियों से मिला और उन्हें भी लूटने की कोशिश की। लेकिन विद्वान ऋषियों को उस पर दया आ गई और उन्होंने उसे उसकी मूर्खता बता दी। उनमें से एक, पुलहा ने उसे ध्यान करने के लिए एक मंत्र दिया और ब्राह्मण बना चोर उसके पाठ में इतना तल्लीन हो गया कि उसके शरीर के चारों ओर चींटियों की पहाड़ियाँ उग आईं। जब ऋषि वापस आये और उन्होंने चींटी पहाड़ी से मंत्र की ध्वनि सुनी, तो उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया और कहा, "चूंकि तुमने वाल्मीक (एक चींटी का झुंड) के भीतर बैठकर महान सिद्धि प्राप्त की है, इसलिए तुम दुनिया में वाल्मिकी के रूप में प्रसिद्ध हो जाओगे।" ।"
वाल्मिकी जी के पिता का नाम प्रचेत था। वाल्मीकि जी ने 24000 श्लोकों में श्रीराम उपाख्यान ‘रामायण’ लिखी। ऐसा वर्णन है कि- एक बार वाल्मीकि क्रौंच पक्षी के एक जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि बहेलिये ने प्रेम-मग्न क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया। इस पर मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके विलाप को सुनकर वाल्मीकि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥
अर्थ👉 हे दुष्ट, तुमने प्रेम मे मग्न क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।
उसके बाद उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य "रामायण" (जिसे "वाल्मीकि रामायण" के नाम से भी जाना जाता है) की रचना की और "आदिकवि वाल्मीकि" के नाम से अमर हो गये। अपने महाकाव्य "रामायण" में उन्होंने अनेक घटनाओं के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है। इससे ज्ञात होता है कि वे ज्योतिष विद्या एवं खगोल विद्या के भी प्रकाण्ड ज्ञानी थे। महर्षि वाल्मीकि जी ने पवित्र ग्रंथ रामायण की रचना की परंतु वे आदिराम से अनभिज्ञ रहे।
अपने वनवास काल के दौरान भगवान"श्रीराम" वाल्मीकि के आश्रम में भी गये थे। भगवान वाल्मीकि को "श्रीराम" के जीवन में घटित प्रत्येक घटना का पूर्ण ज्ञान था। सतयुग, त्रेता और द्वापर तीनों कालों में वाल्मीकि का उल्लेख मिलता है इसलिए भगवान वाल्मीकि को सृष्टिकर्ता भी कहते है, रामचरितमानस के अनुसार जब श्रीराम वाल्मीकि आश्रम आए थे तो आदिकवि वाल्मीकि के चरणों में दण्डवत प्रणाम करने के लिए वे जमीन पर डंडे की भांति लेट गए थे और उनके मुख से निकला था "तुम त्रिकालदर्शी मुनिनाथा, विस्व बदर जिमि तुमरे हाथा।" अर्थात आप तीनों लोकों को जानने वाले स्वयं प्रभु हैं। ये संसार आपके हाथ में एक बैर के समान प्रतीत होता है।
महाभारत काल में भी वाल्मीकि का वर्णन मिलता है। जब पांडव कौरवों से युद्ध जीत जाते हैं तो द्रौपदी यज्ञ रखती है, जिसके सफल होने के लिये शंख का बजना जरूरी था परन्तु कृष्ण सहित सभी द्वारा प्रयास करने पर भी पर यज्ञ सफल नहीं होता तो कृष्ण के कहने पर सभी वाल्मीकि से प्रार्थना करते हैं। जब वाल्मीकि वहाँ प्रकट होते हैं तो शंख खुद बज उठता है और द्रौपदी का यज्ञ सम्पूर्ण हो जाता है। इस घटना को कबीर ने भी स्पष्ट किया है "सुपच रूप धार सतगुरु आए। पाण्डवो के यज्ञ में शंख बजाए।
साभार~ पं देव शर्मा💐
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*सनातन धर्म में रामायण का कितना महत्व है इसको बताने की आवश्यकता नहीं है ! रामायण एवं महाभारत दो ऐतिहासिक ग्रंथ सनातन धर्म की नींव है , जिसमें से रामायण की रचना संस्कृत भाषा में करने वाले आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जी थे ! प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों की श्रेणी में महर्षि वाल्मीकि जी को प्रमुख स्थान प्राप्त है ! वाल्मीकि जी महर्षि कश्यप और आदिति के नम पुत्र वरुण जिन्हें प्रचेता भी कहा जाता है उनकी पत्नी चर्षिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे , इनके भाई का नाम भृगु था ! प्रचेता के पुत्र होने के कारण इनको प्राचेतस् भी कहा जाता था ! कुछ कथाओं के अनुसार वाल्मीकि जी बचपन से ही कुछ दस्युओं के साथ मिलकर के राहगीरों को लूटा करते थे ! एक दिन उन्होंने सप्तर्षियों को पकड़ लिया तो सप्त ऋषियों ने उनसे पूछा आप यह लूटपाट जिसके लिए क्या कर रहे हैं ? क्या इस पाप में वह भागीदार बनेंगे ? सप्तर्षियों की बात को सुनकर वाल्मीकि जी सप्तर्षियों को पेड़ में बांधकर के घर गए अपने परिवार से पूछा ! परिवार ने साफ जवाब दिया कि पाप आप कर रहे हैं भागीदार हम क्यों बनेंगे ! परिवार का जवाब सुनकर के वाल्मीकि जी का हृदय परिवर्तन हो गया और वह मरा - मरा कहते हुए राम-राम करने लगे और परम ज्ञानी हुए ! संगत के प्रभाव से वाल्मीकि जी आदि काव्य रामायण के रचयिता हुए ! कठोर तपस्या करते समय दीमकों ने उनके शरीर को अपना घर बना लिया था इसलिए इनका नाम वाल्मीकि पड़ा !वाल्मीकि जी मात्र और रामायण के रचना ही नहीं कि बल्कि मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की भार्या जगतजननी भगवती सीता को अपने आश्रम में पुत्री की तरह रख करके उनके पुत्रों लव एवं कुश को वेद वेदांग , शास्त्र पुराणों का ज्ञान भी प्रदान किया ! महर्षि वाल्मीकि जी को आदि कवि कहा जाता है !*
*आज आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि जी की जन्म जयंती पूरे देश में मनाई जा रही है ! ऐसी मान्यता है इनका प्राकट्य आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हुआ था ! कुछ लोग वाल्मीकि जी को ब्राह्मण ना मान करके कुछ और मानते हैं ! ऐसे सभी लोगों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" अपने पौराणिक ग्रन्थों के माध्यम से यह बताना चाहता हूं कि जहां अन्य पौराणिक कथाओं में वाल्मीकि जी को प्रचेता का दसवां पुत्र कहा गया है वही वाल्मीकि रामायण में वाल्मीकि जी ने स्वयं लिखा है कि मैं प्रचेता का दसवां पुत्र हूं ! ऐसे में उनके विषय में अविश्वास करना समझ से परे है ! किसी भी महापुरुष के विषय में जानने के लिए उनकी जीवनी को पढ़ना चाहिए , भ्रम एवं भ्रांति में न पड़ करके वास्तविकता को समझना चाहिए ! आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जी ने किसी कथा को सुनकरके रामायण की रचना नहीं की बल्कि उन्होंने उस समय जो देखा वही लिखा ! भगवान श्री राम के भूत वर्तमान एवं भविष्य तीनों की गाथा लिखकर के उन्होंने स्वयं के त्रिकालदर्शी होने का भी प्रमाण दिया है ! आम जनमानस को भगवान श्री राम की लीलाओं से परिचित करने वाले ऐसी सनातन धर्म के महापुरुष के चरणों में कोटिश: नमन वन्दन !*
*महर्षि वाल्मीकि जी के जीवन मैं घटित घटना हमको यह उपदेश देती है कि इस संसार में परिवार , पत्नी , पुत्र , माता-पिता सभी लोग स्वार्थ बस ही प्रीति करते हैं ,निस्वार्थ भाव से प्रेम करने वाला कोई नहीं !*
🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺
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सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना*🙏🏻🙏🏻🌹
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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#🌹🌻वाल्मीकि जयंती🌻🌹
प्रभु श्री राम सुग्रीव से कह रहे हैं कि तुम किसी बात से मत डरो, तुम जानते नही हो लक्ष्मण को यदि क्रोध आ जाये तो वह अकेला ही पलक झपकते ही (निमिख में) सारे विश्व के समस्त राक्षशों का अंत कर सकता है (जैसे सिर्फ साढ़े तीन ग्राम करोना वायरस ने विश्व की महाशक्तियों को पल भर में प्रभु याद दिला दिए) ; और यदि वह प्रेम या भय से मेरी शरणागति में आ रहा है तो मैं वचनबद्ध हूँ और शरणागत को प्राणों के समान प्रेम करता हूं।
।। राम राम।।
##सुंदरकांड पाठ चौपाई📙🚩
#🪔शरद पूर्णिमा🌕
🪷 || #शरद_पूर्णिमा_तत्व_विचार || 🪷
शरद पूर्णिमा की रात्रि में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण द्वारा असंख्य गोपिकाओं के मध्य माँ यमुना के पावन तट पर महारास रचाया गया। प्रथमतः उन ब्रह्म द्वारा बाँसुरी का नाद किया जाता है अर्थात् जीव को अपनी ओर आकृष्ट करने हेतु आवाज लगाई जाती है। कुछ जीव इस आवाज को सुन नहीं पाते हैं, कुछ सुन तो लेते हैं, लेकिन उसके संदेश को समझ नहीं पाते हैं।
जिनके द्वारा उन परम ब्रह्म के इस इशारे को समझ लिया जाता है, वो सब भोग विलास का त्याग करके उनकी ही शरण में चले जाते हैं। जब जीव द्वारा पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ श्रीकृष्ण की शरण ग्रहण की जाती है, तब श्रीकृष्ण द्वारा अपना वह ब्रह्म रस उन शरणागतों के मध्य मुक्त हस्तों से वितरित करके उनको अलौकिक ब्रह्म रस का आस्वादन कराके निहाल किया जाता है।
किसी भी जीव द्वारा प्रभु के इस इशारे को अनसुना कर देना ही उसके दुःखों का कारण है। जिस दिन उसकी समझ में आ जाता है, कि मेरे प्रभु मुझे बुला रहे हैं और वह सब छोड़कर उस प्रभु के शरणागत हो जाता है, उसी दिन प्रभु द्वारा भी उसे अपनी सामीप्यता का परम आनंद प्रदान कर दिया जाता है। जिस रस की प्राप्ति को ब्रह्मा, शंकर आदि लालायित रहते हैं, उस रस को बृज की गोपियाँ प्राप्त करती हैं। जीव और ब्रह्म की एक रूपता का महामहोत्सव ही महारास है।
जय श्री राधे कृष्ण
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दश धर्मं न जानन्ति
धृतराष्ट्र ! निबोध तान् ।
मत्त: प्रमत्त उन्मत्त:
श्रान्त: क्रुद्धो बुभुक्षितः ॥
त्वरमाणश्च लुब्धश्च
भीतः कामी च ते दश ॥
[ महाभारत, उ.प. ३३/१०१-०२ ]
अर्थात 👉🏻 नशे में मतवाला , असावधान , पागल , थका हुआ , क्रोधी , भूखा , शीघ्र कार्य करने वाला ( जल्दबाज ) , लोभी , भयभीत तथा कामी - हे महाराज धृतराष्ट्र ! ये दस प्रकार के लोग धर्म के तत्व को नही जानते ।
🌄🌄 प्रभातवंदन 🌄🌄
#🙏सुविचार📿
#🪔शरद पूर्णिमा🌕 #🌺कोजागरा पूजा📿
वंशी वट, वृंदावन
यह वह स्थान है जहां भगवान कृष्ण गोपीनाथ ने (गोपी के भगवान के रूप में) शरद पूर्णिमा (पूर्णिमा की रात) के शुभ दिन पर महारास नृत्य की लीला की। वंशी का अर्थ है बांसुरी और वट का अर्थ बरगद वृक्ष है। श्री कृष्ण अपनी बांसुरी बरगद के वृक्ष के नीचे बजा रहे हैं, इसे वंशी वट के नाम से जाना जाता है। दिव्य बांसुरी सुनने पर, गोपी भावनात्मक रूप से असहाय हो गयी और वंशी वट की तरफ दौड़ आयी। यहां श्री कृष्ण नित्य ही बांसुरी बजाते हैं।
श्री कृष्ण ने गोपियों के लिए कई रूपों को धारण किया। यह वंशी वट की लीला 5500 वर्ष पुरानी है। भगवान शिव इस स्थान पर महारास के दौरान एक गोपी के रूप में आए और इसलिए श्री कृष्ण ने उन्हें "गोपीश्वर महादेव" नाम दिया। यह भी उल्लेख किया गया है कि "वृंदावन की तरह कोई जगह नहीं है, नंद गांव जैसा कोई गांव नहीं है, वंशी वट की तरह कोई बरगद का वृक्ष नहीं है, और राधा कृष्ण की तरह कोई नाम नहीं है"।
श्री कृष्ण के लिए गोपियों का इतना गहरा प्रेम था कि उन्होंने श्री कृष्ण की इच्छा के लिए अपने बच्चों, पतियों और घरों को छोड़ दिया। रास लीला के दौरान, श्री कृष्ण ने गोपियों को वियोग दिया और उनसे अलक्षित हो गए। गोपियों ने कृष्ण की खोज शुरू कर दी और जब कृष्ण से अलग होने की उनकी तीव्र भावना पागल पन के चरम बिंदु तक पहुंचने वाली थी, कृष्ण उनके सामने उनके शुद्ध प्यार से प्रभावित होकर आगये। यहां एक बड़ा वट वृक्ष का रूप भी है जहां श्री राधा गोपीनाथ दिखाई दिए (जो अब जयपुर में है)। ऐसा माना जाता है कि आज भी श्री कृष्ण अपनी बांसुरी बजा रहे हैं और कई लोग दावा करते हैं कि वे भी इसे सुन सकते हैं।
राधे राधे....
जय श्रीकृष्ण....
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#🪔शरद पूर्णिमा🌕
मोहनी मदन गोपाल की बांसुरी।।
माधूरी श्रवण पुट सुनत सुर राधिके
करत रतिराज के ताप को नासु री।।
शरद राका रजनी विपिन वृंदा सदन
अनिल तन मंद अति शीतल सुवास री।
सुभग पावन पुलिन भृंग सेवत नलिन
कल्पतरु रुचिर बलबीर कृत रास री।।
सकल मंडली भली तू तो हरि सो मिली
बनिता वर बनी उपमा कहा कहु कासु री।
तु तो कंचन तनी लाल मरकत मणि उभै
कल हंस हरिवंश बलदास री।।
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#🪔शरद पूर्णिमा🌕
जबहिं बन मुरली स्रवन परी।
चकित भईं गोप कन्या सब,
काम-धाम बिसरीं।
कुल मर्जाद बेद की आज्ञा,
नैंकुहूँ नहीं डरीं।
स्याम-सिंधु, सरिता- ललना-गन,
जल की ढरनि ढरीं।
अँग-मरदन करिबे कौं लागीं,
उबटन तेल धरी।
जो जिहिं भाँति चली सो तैसैंहिं,
निसि बन कौं जु खरी।
सुत पति-नेह, भवन-जन-संका,
लज्जा नाहिं करी।
सूरदास-प्रभु मन हरि लीन्हौ,
नागर
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#🪔शरद पूर्णिमा🌕
आज बन बेनु बजावत श्याम।
यह कही चक्रत भई ब्रजनारी सुनत मधुर स्वर ग्राम।
कोउ दधि मथन करत कोउ बैठी कोउ ठाड़ी है धाम।
कोउ जेंवत कोउ पति ही जिमावत कोउ श्रृंगारमें वाम।
मानो चित्र की सी लिख काढ़ि सुनत परस्पर नाम।
सुर सुनत मुरली भई बौरी मदन कियो तन काम।।
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शिवलिंग के सामने 3 बार ताली बजने का रहस्य, रावन ने क्यों बजाई थी ताली?
#शिवलिंग दर्शन #शिवलिंग
सावन महीने में मंदिरों में पूजन के दौरान कुछ लोग शिव जी के सामने तीन बार ताली बजाते हैं। यह भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है। पहली ताली उपस्थिति दूसरी मनोकामना और तीसरी क्षमा याचना दर्शाती है। मान्यता है कि इससे ब्रह्मा विष्णु और महेश का आह्वान होता है आइये जानते है क्यों।
सावन के पवित्र महीने में कई लोग मंदिरों में अभिषेक करने जा रहे हैं। ऐसे में अक्सर देखा होगा कि कुछ लोग पूजा के बाद शिव जी के सामने तीन बार ताली बजाते हैं। यह एक आध्यात्मिक और धार्मिक अभ्यास है, जो भगवान शिव के प्रति श्रद्धा, भक्ति और समर्पण को दर्शाता है और इससे शिव जी कृपा प्राप्त होती है।
शिवलिंग के सामने तीन बार ताली बजाना धार्मिक परंपरा है, जिसका गहरा महत्व है। हर ताली का एक अलग महत्व है हर ताली किसी खास बात का प्रतीक है पहली ताली भक्त की भगवान शिव के प्रति उपस्थिति यानि हाजरी लगाती है। दूसरी ताली मनोकामना पूर्ति और समृद्धि की प्रार्थना का प्रतीक कही जाती है और तीसरी ताली क्षमा याचना और भगवान के चरणों में स्थान पाने की इच्छा को शिव जी समक्ष प्रस्तुत करती है।
*त्रिदेवों का आह्वान होता है?*
तीन ताली को बजाने के पीछे यह मान्यता भी है कि इससे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के आह्वान किया जाता है। तीनों भगवान् को इसके जरिये नमन किया जाता है। यह शिवजी के त्रिगुणात्मक स्वरूप यानी सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण की उपासना का प्रतीक भी हैं। ऐसा करने से इससे साधक को जल्द ही शिव कृपा का अधिकारी बन जाता है।
*यह बताती हैं पौराणिक कथाएं?*
कुछ मान्यताओं के अनुसार, रावण और भगवान राम दोनों ने भी शिव पूजन के बाद तीन बार ताली बजाई थी, जिससे उन्हें सफलता और आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। कहते हैं कि रावण ने शिवजी की पूजा करने के बाद तीन बार ताली बजाई थी जिसके बाद रावण को सोने की लंका मिली थी और शक्ति का प्रसार हुआ था और तब से वह परम शिव भक्त कहलाया था।
वहीं, माता सीता का पता लगाने के बाद जब भगवान श्रीराम को लंका तक जाने के लिए सेतु निर्माण की जरूरत थी। तब उन्होंने रामेश्वरम में भगवान शिव का पूजन किया फिर भोलेनाथ के सामने तीन बार ताली बजाई थी। इसके बाद सेतु का कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हुआ था। और प्रभु श्रीराम युद्ध विजयी हुए थे
*अन्य मान्यताएं*
कुछ लोग मानते हैं कि तीन बार ताली बजाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। दरअसल, ताली बजाने से कंपन पैदा होता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इससे व्यक्ति को मानसिक शांति और संतुष्टि मिलती है।
वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि तीन बार तालियां बजाने से हाथ के एक्यूप्रेशर प्वाइंट्स पर दबाव पड़ता है। इससे शरीर के विभिन्न अंगों में रक्त संचार बढ़ता है और स्वास्थ्य लाभ होता है। हालांकि यह एक वैज्ञानिक कारन भी हो सकता है लेकिन भगवान् के समक्ष ताली का बजना एक धार्मिक कारन माना जाता है।
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