shiv Prakash soni
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#दशहरा *दशहरा बीत चुका था, दीपावली समीप थी, तभी एक दिन कुछ युवक-युवतियों की NGO टाइप टोली एक कॉलेज में आई!* *उन्होंने छात्रों से कुछ प्रश्न पूछे; किन्तु एक प्रश्न पर कॉलेज में सन्नाटा छा गया!* *उन्होंने पूछा, "जब दीपावली भगवान राम के १४ वर्षो के वनवास से अयोध्या लौटने के उतसाह में मनाई जाती है, तो दीपावली पर "लक्ष्मी पूजन" क्यों होता है ? श्री राम की पूजा क्यों नही?"* *प्रश्न पर सन्नाटा छा गया, क्यों कि उस समय कोई सोशियल मीडिया तो था नहीं, स्मार्ट फोन भी नहीं थे! किसी को कुछ नहीं पता! तब, सन्नाटा चीरते हुए, एक हाथ, प्रश्न का उत्तर देने हेतु ऊपर उठा!* *उसने बताया कि "दीपावली उत्सव दो युग "सतयुग" और "त्रेता युग" से जुड़ा हुआ है!"* *"सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी! इसलिए "लक्ष्मी पूजन" होता है!* *भगवान श्री राम भी त्रेता युग मे इसी दिन अयोध्या लौटे थे! तो अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था! इसलिए इसका नाम दीपावली है!* *इसलिए इस पर्व के दो नाम हैं, "लक्ष्मी पूजन" जो सतयुग से जुड़ा है, और दूजा "दीपावली" जो त्रेता युग, प्रभु श्री राम और दीपो से जुड़ा है!* *हमारे उत्तर के बाद थोड़ी देर तक सन्नाटा छाया रहा, क्यों कि किसी को भी उत्तर नहीं पता था! यहां तक कि प्रश्न पूछ रही टोली को भी नहीं!* *खैर कुछ देर बाद सभी ने खूब तालियां बजाई!* *उसके बाद, एक समाचारपत्र ने उस उत्तर देने वाले विद्यार्थी का साक्षात्कार (इंटरव्यू) भी किया!* *उस समय समाचारपत्र का साक्षात्कार होना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी!* *बाद में पता चला, कि वो टोली आज की शब्दावली अनुसार "लिबरर्ल्स" (वामपंथियों) की थी, जो हर कॉलेज में जाकर युवाओं के मस्तिष्क में यह बात डाल रही थी, कि "लक्ष्मी पूजन" का औचित्य क्या है, जब दीपावली श्री राम से जुड़ी है?" कुल मिलाकर वह छात्रों का ब्रेनवॉश कर रही थी!* *लेकिन उस उत्तर के बाद, वह टोली गायब हो गई!* *एक और प्रश्न भी था, कि लक्ष्मी और। श्री गणेश का आपस में क्या रिश्ता है?* *और दीपावली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है?* *सही उत्तर है 😗 *लक्ष्मी जी जब सागर मन्थन में मिलीं, और भगवान विष्णु से विवाह किया, तो उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया! तो उन्होंने धन को बाँटने के लिए मैनेजर कुबेर को बनाया!* *कुबेर कुछ कंजूस वृति के थे! वे धन बाँटते नहीं थे, सवयं धन के भंडारी बन कर बैठ गए!* *माता लक्ष्मी परेशान हो गई! उनकी सन्तान को कृपा नहीं मिल रही थी!* *उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई! भगवान विष्णु ने उन्हें कहा, कि "तुम मैनेजर बदल लो!"* *माँ लक्ष्मी बोली, "यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं! उन्हें बुरा लगेगा!"* *तब भगवान विष्णु ने उन्हें श्री गणेश जी की दीर्घ और विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी!* *माँ लक्ष्मी ने श्री गणेश जी को "धन का डिस्ट्रीब्यूटर" बनने को कहा!* *श्री गणेश जी ठहरे महा बुद्धिमान! वे बोले, "माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊंगा, उस पर आप कृपा कर देना! कोई किंतु, परन्तु नहीं! माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी!* *अब श्री गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न/रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे!* *कुबेर भंडारी ही बनकर रह गए! श्री गणेश जी पैसा वितरण करवाने वाले बन गए!* *गणेश जी की दरियादिली देख, माँ लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्री गणेश को आशीर्वाद दिया, कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें!* *दीपावली आती है कार्तिक अमावस्या को! भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं! वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद, देव उठावनी एकादशी को!* *माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिनों में, तो वे सँग ले आती हैं श्री गणेश जी को! इसलिए दीपावली को लक्ष्मी-गणेश की पूजा होती है!* 🙏🌹🙏 (यह कैसी विडंबना है, कि देश और हिंदुओ के सबसे बड़े त्यौहार का पाठ्यक्रम में कोई विस्तृत वर्णन नहीं है? औऱ जो वर्णन है, वह अधूरा है!) *इस लेख को पढ़ कर स्वयं भी लाभान्वित हों, अपनी अगली पीढी को बतायें और दूसरों के साथ साझा करना ना भूलें !*
#bahu *कर्ज वाली लक्ष्मी* एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है अभी जीजा जी ने फोन पर बताया। दीदी मतलब उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी। दीनदयाल जी पहले से ही उदास बैठे थे धीरे से बोले... हां बेटा.. उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में दहेज की बात करने आ रहे हैं.. बोले... दहेज के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है.. बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था.. कल को उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी नही कर पाया तो ?” कहते कहते उनकी आँखें भर आयीं.. घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी...लड़की भी उदास हो गयी। खैर.. अगले दिन समधी समधिन आए.. उनकी खूब आवभगत की गयी.. कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा" दीनदयाल जी अब काम की बात हो जाए.. दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गयी.. बोले.. हां हां.. समधी जी.. जो आप हुकुम करें.. लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनदयाल जी और खिसकाई ओर धीरे से उनके कान में बोले. दीनदयाल जी मुझे दहेज के बारे बात करनी है!...दीनदयाल जी हाथ जोड़ते हुये आँखों में पानी लिए हुए बोले बताईए समधी जी....जो आप को उचित लगे.. मैं पूरी कोशिश करूंगा.. समधी जी ने धीरे से दीनदयाल जी का हाथ अपने हाथों से दबाते हुये बस इतना ही कहा..... आप कन्यादान में कुछ भी देगें या ना भी देंगे... थोड़ा देंगे या ज़्यादा देंगे.. मुझे सब स्वीकार है... पर कर्ज लेकर आप एक रुपया भी दहेज मत देना.. वो मुझे स्वीकार नहीं.. क्योकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी "कर्ज वाली लक्ष्मी" मुझे स्वीकार नही...मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए.. जो मेरे यहाँ आकर मेरी सम्पति को दो गुना कर देगी.. दीनदयाल जी हैरान हो गए.. उनसे गले मिलकर बोले.. समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा.. *शिक्षा- कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें न ही कोई स्वीकार करें।* *सभी वैवाहिक बायोडेटा देख रहे परिवारों को समर्पित*
*शुभ सोमवार -शुभ नवरात्र सप्तमी/अष्टमी* 🕉️ *एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।* *लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥* *वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।* *वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥* 🕉️ *करालवन्दना घोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।* *कालरात्रिम् करालिंका दिव्याम् विद्युतमाला विभूषिताम्॥* *दिव्यम् लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।* *अभयम् वरदाम् चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम्॥* *महामेघ प्रभाम् श्यामाम् तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।* *घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥* *सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।* *एवम् सचियन्तयेत् कालरात्रिम् सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥* 🕉️ *ह्रीं कालरात्रि श्रीं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।* *कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥* *कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।* *कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥* *क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।* *कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥* 🕉️ *ऊँ क्लीं मे हृदयम् पातु पादौ श्रीकालरात्रि।* *ललाटे सततम् पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥* *रसनाम् पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।* *कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशङ्करभामिनी॥* *वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।* *तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥* 🕉️ *।ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ।।* 🕉 *एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः ।* *स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः ।।"* अर्थात -इस देश में उत्पन्न हुए विद्वानों (अग्रजन्मनः बस) के पास से पृथ्वी के सभी मनुष्य अपने-अपने चरित्र और आचरण की शिक्षा ग्रहण करें, अर्थात् भारत के ज्ञान-विज्ञान और चरित्र का प्रभाव विश्व के अन्य देशों पर भी पड़ना चाहिए। 🕉️ *आपको और समस्त स्वजनों को आश्विन शुक्ल सप्तमी/अष्टमी विक्रम संवत २०८२ तद्नुसार दिनांक 29 सितंबर 2025 ईस्वी - सोमवार नवरात्रि सप्तमी महापर्व की अनन्त शुभकामनाएं और कोटि-कोटि अभिनन्दन* #navratri *आपके दिवस वर्ष मंगलमय हों!* *सादर सुप्रभात वन्दनम्* 🙏🏻🕉️🌺🌅🚩🌹🛕🌺🕉️🙏🏻
#Navratri 2025 chaitra navratri 🙏🥀🌺🌹 *🌹कन्या पूजन क्यों है व्रत समापन का सबसे खास हिस्सा? जानिए इसके अद्भुत लाभ🌹* *⭕नवरात्री कन्या पूजन २०२५: हिंदू धर्म में नवरात्रि का बहुत महत्व माना जाता है। नौ दिनों तक देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करने के बाद कन्या पूजन के साथ व्रत का समापन किया जाता है।* *इसे कन्या भोज भी कहा जाता है। नवरात्रि व्रत का समापन कन्या पूजन के साथ होता है, जिसका गहरा धार्मिक, आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व है। कई लगो अष्टमी को भी कन्या पूजन करते हैं। आइए इस दौरान कन्या पूजन के महत्व और इसे क्यों किया जाता है, इसे समझते हैं।* *🪔कन्या पूजन का धार्मिक महत्व* * शास्त्रों में कहा गया है कि कन्याएं देवी का साक्षात स्वरूप हैं। * देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए, २ से १० वर्ष की कन्याओं को देवी मानकर उनकी पूजा करना और उन्हें भोजन कराना शुभ माना जाता है। * कन्या पूजन देवी सिद्धिदात्री की पूजा से जुड़ा है, जिनकी पूजा नवरात्रि के अंतिम दिन की जाती है। *🪔कन्या पूजन की पौराणिक मान्यता* देवी भागवत पुराण के अनुसार, जब देवताओं ने देवी दुर्गा से राक्षसों का नाश करने का अनुरोध किया, तो देवी ने कहा कि कन्याओं के रूप में उनकी पूजा करने से ही शक्ति प्राप्त होती है। महिषासुर के वध के बाद, देवताओं ने कन्याओं की पूजा करके देवी दुर्गा का आभार व्यक्त किया। तब से, कन्या पूजन के साथ नवरात्रि व्रत के समापन की परंपरा चली आ रही है। *🪔आध्यात्मिक दृष्टिकोण* * कन्या पूजन नारी शक्ति का सम्मान है। * कन्याओं को भोजन, वस्त्र और उपहार देकर यह संदेश दिया जाता है कि महिलाएं ब्रह्मांड की माता और पालनहार हैं। * यह कार्य बच्चों के लिए सुख-समृद्धि, परिवार में शांति और घर में सकारात्मक ऊर्जा लाता है। *🪔कन्या पूजन विधि* * अपने घर में ७, ९ या ११ आमंत्रित कन्याओं को स्नान कराएं और उन्हें आसन पर बैठाएं। * उनके पैर धोएं, आचमन करें और तिलक लगाएं। * उन्हें पूरी, चना और हलवा खिलाएं। * कन्याओं को दक्षिणा, उपहार और लाल चुनरी भेंट करें। * अंत में उनके चरण स्पर्श करें और उनका आशीर्वाद लें। *🪔कन्या पूजन के लाभ* * घर में लक्ष्मी और सरस्वती का वास होता है। * सभी प्रकार के कष्ट और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। * परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है। * नवरात्रि व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। *🚩#जय_माता_की🚩* 🙏🚩🙏
#bhagawan मंदिर में दर्शन का महत्त्व ओर प्रयोजन हम लोग हवेली में या मंदिर में दर्शन करने जाते हैं,। दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पैड़ी पर या ओटले पर थोड़ी देर बैठते हैं। इस परंपरा का कारण क्या है ? अभी तो लोग वहां बैठकर अपने घर की, व्यापार की, राजनीति की चर्चा करते हैं। परंतु यह परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई है। वास्तव में वहां मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के और एक श्लोक बोलना चाहिए ।यह श्लोक हम भूल गए हैं। इस श्लोक को सुने और याद करें ।और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बता कर जाएं । श्लोक इस प्रकार है अनायासेन मरणम ,बिना दैन्येन जीवनम । देहान्ते तव सानिध्यम ,देहिमे परमेश्वरम।। जब हम मंदिर में दर्शन करने जाएं तो खुली आंखों से ठाकुर जी का दर्शन करें । कुछ लोग वहां नेत्र बंद करके खड़े रहते हैं ।आंखें बंद क्यों करना ।हम तो दर्शन करने आए हैं ।ठाकुर जी के स्वरूप का ,श्री चरणों, का मुखारविंद का ,श्रंगार का संपूर्ण आनंद लें । आंखों में भर लें इस स्वरूप को । दर्शन करें और दर्शन करने के बाद जब बाहर आकर बैठें तब नेत्र बंद करके ,जो दर्शन किए हैं, उस स्वरूप का ध्यान करें ।मंदिर में नैत्र नहीं बंद करना, बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें, और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं । यह प्रार्थना है याचना नहीं है। याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है, घर ,व्यापार ,नौकरी ,पुत्र पुत्री, दुकान ,सांसारिक सुख या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है, वह याचना है ।वह भीख है । हम प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना का विशेष अर्थ है । प्र अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ ।अर्थना अर्थात निवेदन ।ठाकुर जी से प्रार्थना करें ,और प्रार्थना क्या करना है ,यह श्लोक बोलना है । श्लोक का अर्थ है "अनायासेना मरणम" अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो, बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु नहीं चाहिए ।चलते चलते ही श्री जी शरण हो जाएं। " बिना दैन्येन जीवनम " अर्थात परवशता का जीवन न हो। किसी के सहारे न रहना पड़े ,।जैसे लकवा हो जाता है ,और व्यक्ति पर आश्रित हो जाता है ।वैसे परवश, बेबस न हों। ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख मांगे जीवन बसर हो सके। " देहान्ते तव सानिध्यम " अर्थात जब मृत्यु हो तब ठाकुर जी सन्मुख खड़े हो। जब प्राण तन से निकले , आप सामने खड़े हों। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए । उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले। यह प्रार्थना करें । गाड़ी ,लाड़ी ,लड़का, लड़की पति, पत्नी ,घर ,धन यह मांगना नहीं ।यह तो ठाकुर जी आपकी पात्रता के हिसाब से खुद आपको दे देते हैं ।तो दर्शन करने के बाद बाहर बैठकर यह प्रार्थना अवश्य पढ़ें ।
#माता पिता के लिये पुत्री प्रेम छः साल की बच्ची अपने पिता से बात कर रही थी..!! . बेटी -: पापा मेरी मैडम ने मुझसे पूछा कि तुम्हारे पापा क्या करते हैं..??. पिता -: तो आपने क्या कहा..??. . बेटी -: मैने कहा कि मेरे पापा चॉकलेट की फैक्ट्री में काम करते हैं और मेरे लिये खूब सारी चॉकलेट्स लाते हैं ... . और पापा आइसक्रीम पॉर्लर में भी काम करते हैं और मेरी फेवरेट वनीला आइसक्रीम लाते हैं .... . वह खिलौनों की शॉप पर भी काम करते हैं और मेरे लिये क्यूट क्यूट टैडी बियर लेकर आते हैं कभी कभी वह टीचर भी बन जाते हैं क्योंकि वह मेरा होमवर्क कराने में मदद करते हैं ....। . वह बहुत सारा काम करते हैं ... मैने ठीक कहा ना पापा...!!. . #पिता -: हाँ हाँ बिल्कुल सही कहा , उसके बाद टीचर ने आपसे क्या कहा...??. #बेटी -: टीचर ने पूछा कि आपके पापा इतना सारा काम करके थकते नहीं हैं...??. . क्यों पापा आप थकते नहीं..?? पिता -: बेटा ! जब मैं आपको देखता हूँ ना , तो आपकी प्यारी सी #मुस्कान से मेरी सारी थकान दूर हो जाती है आई लव यू बेटा...!!!. . बेटी -: आई लव यू टू पापा...!!
#Navratri 2025 chaitra navratri 🙏🥀🌺🌹 *तीसरा नवरात्र* *नवरात्रि का तीसरा दिन माता का तीसरा स्वरूप:-* 🙏🌹 "माँ चंद्रघण्टा"🌹🙏 माँ चन्द्रघण्टा भक्तों की भय पीड़ा व दुःखों को मिटाने वाली हैं। भक्त जनों के मनोरथ को पूर्ण करने वाली हैं। देवी के इस रूप की उत्पत्ति नवरात्रि के तीसरे दिन होती है। यह रूप सभी प्रकार की अनूठी वस्तुओं को देने वाला तथा कई प्रकार की विचित्र दिव्य ध्वनियों को प्रसारित व नियंत्रित करने वाला होता है। इनकी कृपा से व्यक्ति की घ्रांण शक्ति और दिव्य होती है। वह कई तरह की खुशबुओं का एक साथ आनन्द लेने में सक्ष्म हो जाता है। माँ दैत्यों का वध करके देव, दनुज, मनुजों के हितों की रक्षा करने वाली है। जिनके घण्टा में आह्ललादकारी चंद्रमा स्थिति हो उन्हें चन्द्रघण्टा कहा जाता है। अर्थात् जिनके माथे पर अर्द्ध चंद्र शोभित हो रहा है। जिनकी कांति सुवर्ण रंग की है ऐसी नव दुर्गा के इस तृतीय प्रतिमा को चन्द्रघण्टा के नाम से ख्याति प्राप्त हुई हैं। यह दैत्यों का संहार भयानक घण्टे की नाद से करती हैं। यह माता दस भुजा धारी हैं। जिनके दाहिने हाथ में ऊपर से पद्म, वाण, धनुष, माला आदि शोभित हो रहे हैं। जिनके बायं हाथ में त्रिशूल, गदा, तलवार, कमण्डल तथा युद्ध की मुद्रा शोभित हो रही है। माता सिंह में सवार होकर जगत के कल्याण हेतु दुष्ट दैत्यों को मारती हैं। माँ का यह रूप शत्रुओं को मारने हेतु सदैव तत्पर रहता है। माँ चंद्रघण्टा की कथा माँ चन्द्रघण्टा असुरों के विनाश हेतु माँ दुर्गा के तृतीय रूप में अवतरित होती हैं। जो भयंकर दैत्य सेनाओं का संहार करके देवताओं को उनका भाग दिलाती हैं। भक्तों को वांछित फल दिलाने वाली हैं। आप सम्पूर्ण जगत की पीड़ा का नाश करने वाली हैं। जिससे समस्त शात्रों का ज्ञान होता है, वह मेधा शक्ति आप ही हैं। दुर्गा भव सागर से उतारने वाली भी आप ही है। आपका मुख मंद मुस्कान से सुशोभित, निर्मल, पूर्ण चन्द्रमा के बिम्ब का अनुकरण करने वाला और उत्तम सुवर्ण की मनोहर कान्ति से कमनीय है, तो भी उसे देखकर महिषासुर को क्रोध हुआ और सहसा उसने उस पर प्रहार कर दिया, यह बड़े आश्चर्य की बात है। कि जब देवी का वही मुख क्रोध से युक्त होने पर उदयकाल के चन्द्रमा की भांति लाल और तनी हुई भौहों के कारण विकराल हो उठा, तब उसे देखकर जो महिषासुर के प्राण तुरंत निकल गये, यह उससे भी बढ़कर आश्चर्य की बात है, क्योंकि क्रोध में भरे हुए यमराज को देखकर भला कौन जीवित रह सकता है। देवि! आप प्रसन्न हों। परमात्मस्वरूपा आपके प्रसन्न होने पर जगत् का अभ्युदय होता है और क्रोध में भर जाने पर आप तत्काल ही कितने कुलों का सर्वनाश कर डालती हैं, यह बात अभी अनुभव में आयी है, क्योंकि महिषासुर की यह विशाल सेना क्षण भर में आपके कोप से नष्ट हो गयी है। कहते है कि देवी चन्द्रघण्टा ने राक्षस समूहों का संहार करने के लिए जैसे ही धनुष की टंकार को धरा व गगन में गुजा दिया वैसे ही माँ के वाहन सिंह ने भी दहाड़ना आरम्भ कर दिया और माता फिर घण्टे के शब्द से उस ध्वनि को और बढ़ा दिया, जिससे धनुष की टंकार, सिंह की दहाड़ और घण्टे की ध्वनि से सम्पूर्ण दिशाएं गूँज उठी। उस भयंकर शब्द व अपने प्रताप से वह दैत्य समूहों का संहार कर विजय हुई। मंत्र पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यां चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥ ---------:::×:::--------- 🙏🌹"जय माता दी"🌹🙏 🙏🚩🙏
#मां ब्रह्मचारिणी *दूसरा नवरात्र*           *नवरात्रि का दूसरा दिन माता का दूसरा स्वरूप*:-                               *"माँ ब्रह्मचारिणी"*            नवरात्र के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा होती है। इस रूप में देवी को समस्त विद्याओं का ज्ञाता माना गया है। देवी ब्रह्मचारिणी भवानी माँ जगदम्बा का दूसरा स्वरुप है। ब्रह्मचारिणी ब्रह्माण्ड की रचना करने वाली। ब्रह्माण्ड को जन्म देने के कारण ही देवी के दूसरे स्वरुप का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। देवी के ब्रह्मचारिणी रूप में ब्रह्मा जी की शक्ति समाई हुई है। माना जाता है कि सृष्टी कि उत्पत्ति के समय ब्रह्मा जी ने मनुष्यों को जन्म दिया। समय बीतता रहा , लेकिन सृष्टी का विस्तार नहीं हो सका। ब्रह्मा जी भी अचम्भे में पड़ गए। देवताओं के सभी प्रयास व्यर्थ होने लगे। सारे देवता निराश हो उठें तब ब्रह्मा जी ने भगवान शंकर से पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है। भोले शंकर बोले कि बिना देवी शक्ति के सृष्टी का विस्तार संभव नहीं है। सृष्टी का विस्तार हो सके इसके लिए माँ जगदम्बा का आशीर्वाद लेना होगा, उन्हें प्रसन्न करना होगा। देवता माँ भवानी के शरण में गए। तब देवी ने सृष्टी का विस्तार किया। उसके बाद से ही नारी शक्ति को माँ का स्थान मिला और गर्भ धारण करके शिशु जन्म कि नीव पड़ी। हर बच्चे में १६ गुण होते हैं और माता पिता के ४२ गुण होते हैं। जिसमें से ३६ गुण माता के माने जातें हैं।            देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय है। माँ दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली माँ ब्रह्मचारिणी। यह देवी शांत और निमग्न होकर तप में लीन हैं। मुख पर कठोर तपस्या के कारण अद्भुत तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर कर रहा है। देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला है और बायें हाथ में कमण्डल होता है। देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप हैं। इस देवी के कई अन्य नाम हैं जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित साधक माँ ब्रह्मचारिणी जी की कृपा और भक्ति को प्राप्त करता है। #ब्रह्मचारिणी : ब्रह्मचारिणी अर्थात् जब उन्होंने तपश्चर्या द्वारा शिव को पाया था। एक हाथ में रुद्राक्ष की माला और दुसरे हाथ में कमंडल धारण करने वाली देवी का यह ब्रह्मचारिणी स्वरुप कल्याण और मोक्ष प्रदान करने वाला है। देवी के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की आराधना का विशेष महत्व है। माँ के इस रूप की उपासना से घर में सुख सम्पति और समृद्धि का आगमन होता है।                            देवी ब्रह्मचारिणी कथा           माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और मैना की पुत्री हैं। इन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की ऐसी कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया। जिसके फलस्वरूप यह देवी भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी। जो व्यक्ति अध्यात्म और आत्मिक आनंद की कामना रखते हैं उन्हें इस देवी की पूजा से सहज यह सब प्राप्त होता है। देवी का दूसरा स्वरूप योग साधक को साधना के केन्द्र के उस सूक्ष्मतम अंश से साक्षात्कार करा देता है जिसके पश्चात व्यक्ति की ऐन्द्रियां अपने नियंत्रण में रहती और साधक मोक्ष का भागी बनता है। इस देवी की प्रतिमा की पंचोपचार सहित पूजा करके जो साधक स्वाधिष्ठान चक्र में मन को स्थापित करता है उसकी साधना सफल हो जाती है और व्यक्ति की कुण्डलनी शक्ति जागृत हो जाती है। जो व्यक्ति भक्ति भाव एवं श्रद्धादुर्गा पूजा के दूसरे दिन मॉ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं उन्हें सुख, आरोग्य की प्राप्ति होती है और प्रसन्न रहता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता है।                                पूजा विधि           नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधान है। देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों एवं सिद्धों को अमोघ फल देने वाला है। देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का नाश होता है। देवी ब्रह्मचारिणी जी की पूजा का विधान इस प्रकार है, सर्वप्रथम आपने जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमत्रित किया है, उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान करायें व देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करें. प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें। कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करें। इनकी पूजा के पश्चात माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें-                 “दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू.                   देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा”।            इसके पश्चात् देवी को पंचामृत स्नान करायें और फिर भाँति-भाँति से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें देवी को अरूहूल का फूल (लाल रंग का एक विशेष फूल) व कमल काफी पसन्द है। उनकी माला पहनायें. प्रसाद और आचमन के पश्चात् पान सुपारी भेंट कर प्रदक्षिणा करें और घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें। अंत में क्षमा प्रार्थना करें               “आवाहनं न जानामि न जानामि वसर्जनं,                पूजां चैव न जानामि  क्षमस्व परमेश्वरी"।                            ब्रह्मचारिणी मंत्र या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।        नमस्तस्यै    नमस्तस्यै     नमस्तस्यै    नमो    नम:॥ दधाना   कर   पद्माभ्याम    अक्षमाला   कमण्डलू।        देवी       प्रसीदतु        मई       ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥                               "जय माता दी 🙏🚩🙏
#bhojan mantra दक्षिण दिशा में भोजन करना मृत्यु कारक- दक्षिण दिशा में मुंह करके खाना खाना, आपको अकाल मृत्यु की ओर ले जाता है.. वास्तव, माना जाता है कि ये दिशा मरे हुए लोगों की है और इस दिशा में ऐसी ही ऊर्जा रहती है। जब आप इस दिशा में खाना खाते हैं तो ये नकारात्मक ऊर्जा आपके खाने में मिल जाती है या फिर आपके खाने का एक भाग इन्हें भी जाने लगता है। फिर लगातार ये काम करना इनके साथ संपर्क बढ़ाता है और मृत्यु की दिशा क्रियाशील हो जाती है और आप या आपका कोई विशेष अचानक से अकाल मृत्यु की ओर जाता है। खाने की सही दिशा क्या है- खाने की सही दिशा है पूर्व। वास्तव में, इस दिशा में खाना मानसिक तनाव को दूर करता है और आपके पाचन क्रिया को सही करता है।इसके अलावा इस दिशा में खाना खाने से आप स्वस्थ्य रहते हैं। इतना ही नहीं इस दिशा में खाना खाने से आपके माता-पिता का भी स्वास्थ्य उत्तम रहता है। भोजन करने के नियम सनातन धर्म के अनुसार- खाने से पूर्व अन्नपूर्णा माता की स्तुति करके उनका धन्यवाद देते हुये, तथा सभी भूखों को भोजन प्राप्त हो इर्श्वर से ऐसी प्रार्थना करके भोजन करना चाहिये.. गृहस्थ के लिये प्रातः और सायं (दो समय) ही भोजन का विधान है। दोनों हाथ, दोनों पैर और मुख, इन पाँच अंगों को धोकर भोजन करने वाला दीर्घजीवी होता है। भींगे पैर खाने से आयु की वृद्धि होती है। सूखे पैर, जुते पहने हुये, खड़े होकर, सोते हुये, चलते फिरते, बिछावन पर बैठकर, गोद मे रखकर, हाथ मे लेकर, फुटे हुये बर्तन में, बायें हाथ से, मन्दिर मे, संध्या के समय, मध्य रात्रि या अंधेरे में भोजन नहीं करना चाहिये। रात्रि में भरपेट भोजन नहीं करना चाहिये। रात्रि के समय दही, सत्तु एव तिल का सेवन नहीं करना चाहिये। हँसते हुये, रोते हुये, बोलते हुये, बिना इच्छा के, सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन नहीं करना चाहिये। पूर्व की ओर मुख करके खाना खाने से आयु बढ़ती है। उत्तर की ओर मुख करके भोजन करने से आयु तथा धन की प्राप्ति होती है। दक्षिण की ओर मुख करके भोजन करने से प्रेतत्व की प्राप्ति होती है। पश्चिम की ओर मुख करके भोजन करने से व्यक्ति रोगी होता है। भोजन सदा एकान्त मे ही करना चाहिये। यदि पत्नि भोजन कर रही हो, तो उसे नहीं देखना चाहिये। बालक और वृद्ध को भोजन करने के बाद स्वंय भोजन ग्रहण करें। बिना स्नान, पूजन, हवन किये बिना भोजन न करें। बिना स्नान ईख, जल, दूध, फल एवं औषध का सेवन कर सकते हैं। किसी के साथ एक बर्तन मे भोजन न करें। (पत्नि के साथ कदापि नहीं) अपना जूठा किसी को ना दें, ना स्वंय किसी का जुठा खायें। काँसे के बर्तन में भोजन करने से (रविवार छोड़कर) आयु, बुद्धि, यश और बल की वृद्धि होती है। परोसे हुये अन्न की निन्दा न करें, वह जैसा भी हो, प्रेम से भोजन कर लेना चाहिये। सत्कारपूर्वक खाये गये अन्न से बल और तेज की वृद्धि होती है। ईर्ष्या, भय, क्रोध, लोभ, राग और द्वेष के समय किया गया भोजन शरीर मे विकार उत्पन्न कर रोग को आमन्त्रित करता है। भोजन में पहले मीठा, बीच मे नमकीन एवं खट्टी तथा अन्त में कड़वे पदार्थ ग्रहण करें। कोई भी मिष्ठान्न पदार्थ जैसे हलवा, खीर, मालपूआ इत्यादि देवताओ एवं पितरों को अर्पण करके ही खाना चाहिये। जल, शहद, दूध, दही, घी, खीर और सत्तु को छोड़कर कोई भी पदार्थ सम्पुर्ण रूप से नहीं खाना चाहिये। (अर्थात् बिल्कुल थोड़ा सा थाली मे छोड़ देना चाहिये)। जिससे प्रेम न हो उसके यहाँ भोजन कदापि न करें। मल मूत्र का वेग होने पर, कलह के माहौल में, अधिक शोर में, पीपल, वट वृक्ष के नीचे, भोजन नहीं करना चाहिये। आधा खाया हुआ फल, मिठाइयाँ आदि पुनः नहीं खानी चाहिये। खाना छोड़ कर उठ जाने पर दोबारा भोजन नहीं करना चाहिये। गृहस्थ को ३२ ग्रास से अधिक नहीं खाना चाहिये। थोडा खाने वाले को आरोग्य, आयु, बल, सुख, सुन्दर सन्तान, और सौन्दर्य प्राप्त होता है। जिसने ढिंढोरा पीट कर खिलाया हो वहाँ कभी न खायें। कुत्ते का छुआ, श्राद्ध का निकाला, बासी, मुँह से फूंक मारकर ठण्डा किया, बाल गिरा हुआ भोजन, अनादर युक्त, अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करें। कंजूस का, राजा का, चरित्रहीन के हाथ का, शराब बेचने वाले का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिये। भोजन बनाने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से, मन्त्र जप करते हुये ही रसोयी में भोजन बनायें और सबसे पहले ३ रोटियाँ अलग निकाल कर (गाय, कुत्ता, और कौवे हेतु) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालों को खिलायें। भीष्म पितामह ने अर्जुन को 4 प्रकार का भोजन न करने की सलाह दी थी- 1. जिस थाली को क़ोई व्यक्ति लांघ कर गया हो वह भोजन नाली में पड़े कीचड़ के समान है! वह भोजन योग्य नहीं है! 2. जिस थाली को ठोकर लग गई या पांव लग गया वह भोजन भिष्टा के समान है! वह भोजन योग्य नहीं है! 3. जिस भोजन की थाली में या भोजन में बाल (केश) पड़ा हो वह दरिद्रता के समान है! भोजन योग्य नहीं है! 4. जिस थाली में पति पत्नी एक साथ भोजन कर रहे हों वह भोजन भी योग्य नहीं है! लेकिन पत्नी अगर अपने पति की झूठी थाली या पति का झूंठा खाती है तो उसे चारों धाम का पुण्य फल मिलता है! हे अर्जुन, बेटी अगर कुमारी हो और पिता के साथ एक ही थाली में भोजन करती है, तो उस पिता की कभी अकाल मृत्यु नहीं हो सकती क्योंकि बेटी पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती है....... 🙏🚩🙏
#hindi diwas *🙏🏻हिंदी दिवस-* अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अ: क ख ग घ ड च छ ज झ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ भ ब म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ. 👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻 हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है, और कोई भी अक्षर वैसा क्यों है उसके पीछे कुछ कारण हैं। ___________________ क, ख, ग, घ, ङ- *कंठव्य* कहे गए हैं, क्योंकि इनके उच्चारण के समय *ध्वनि कंठ से निकलती* है। एक बार बोल कर देखिये। च, छ, ज, झ,ञ- *तालव्य* कहे गए हैं, क्योंकि इनके उच्चारण के समय *जीभ तालू से लगती* है। एक बार बोल कर देखिये। ट, ठ, ड, ढ, ण- *मूर्धन्य* कहे गए हैं, क्योंकि इनका उच्चारण *जीभ के मूर्धा से लगने* पर ही सम्भव है। एक बार बोल कर देखिये। त, थ, द, ध, न- *दंतीय* कहे गए हैं, क्योंकि इनके उच्चारण के समय *जीभ दांतों से लगती* है। एक बार बोल कर देखिये। प, फ, ब, भ, म,- *ओष्ठ्य* कहे गए हैं, क्योंकि इनका उच्चारण *ओठों के मिलने* पर ही होता है। एक बार बोल कर देखिये। *इतनी वैज्ञानिक दुनिया की कोई भाषा नही है।।*