Davinder Singh Rana
ShareChat
click to see wallet page
@rana_g
rana_g
Davinder Singh Rana
@rana_g
आई लव शेयरचैट
*शिव का डमरू* 🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱 एक बार की बात है, देवताओं के राजा इंद्र ने किसानों से किसी कारण से नाराज होकर बारह वर्षों तक बारिश न करने का निर्णय लेकर किसानों से कहा-" अब आप लोग बारह वर्षों तक फसल नही ले सकेंगे।" सारे किसानों ने चिंतातुर होकर एक साथ इंद्रदेव से वर्षा करवाने हेतु प्रार्थना की। इंद्र ने कहा -" यदि भगवान शंकर अपना डमरू बजा देंगे तो वर्षा हो सकती है।" इंद्र ने किसानों को ये उपाय तो बताया लेकिन साथ में गुप्तवार्ता कर भगवान शिव से ये आग्रह कर दिया कि आप किसानों से सहमत न होना। जब किसान भगवान शंकर के पास पहुँचे तो भगवान ने उन्हें कहा -" डमरू तो बारह वर्ष बाद ही बजेगा।" किसानों ने निराश होकर बारह वर्षों तक खेती न करने का निर्णय लिया। उनमें से एक किसान था जिसने खेत में अपना काम करना नहीं छोड़ा। वो नियमति रूप से खेत जोतना, निंदाई, गुड़ाई, बीज बोने का काम कर रहा था। ये माजरा देख कर गाँव के किसान उसका मज़ाक उड़ाने लगे। कुछ वर्षों बाद गाँव वाले इस परिश्रमी किसान से पूछने लगे -" जब तुम्हे पता है कि बारह वर्षों तक वर्षा नही होने वाली तो अपना समय और ऊर्जा क्यों नष्ट कर रहे हो?" उस किसान ने उत्तर दिया- *मैं,भी जानता हूँ कि बारह वर्ष फसल नही आने वाली लेकिन मैं, ये काम अपने अभ्यास के लिए कर रहा हूँ।* क्योंकि बारह साल कुछ न करके मैं, खेती किसानी का काम भूल जाऊँगा, मेरे शरीर की श्रम करने की आदत छूट जाएगी। इसीलिए ये काम मैं, नियमित कर रहा हूँ ताकि जब बारह साल बाद वर्षा हो तब मुझे अपना काम करने के लिए कोई कठिनाई न हो। ये तार्किक चर्चा माता पार्वती भी बड़े कौतूहल के साथ सुन रही थी। बात सुनने के बाद माता, भगवान शिव से सहज बोली - *"प्रभु, आप भी बारह वर्षों के बाद डमरू बजाना भूल सकते हैं।"* *माता पार्वती की बात सुन कर भोले बाबा चिंतित हो गए।अपना डमरू बज रहा या नही ये देखने के लिए उन्होंने डमरू उठाया और बजाने का प्रयत्न करने लगे।* जैसे ही डमरू बजा बारिश शुरू हो गई....जो किसान अपने खेत में नियमित रूप से काम कर रहा था उसके खेत में भरपूर फसल आयी। बाकी के किसान पश्चात्ताप के सिवाय कुछ न कर सके। हर हर महादेव राणा जी खेड़ांवाली🚩 #🕉️सनातन धर्म🚩 #हर हर महादेव
*वाल्मीकि रामायण में ऋषि विश्वामित्र ने राम जी को गंगा जन्म की कथा सुनाई है |* 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 ऋषि विश्वामित्र ने कहा, "वत्स राम! तुम्हारी ही अयोध्यापुरी में सगर नाम के एक राजा थे। वे पुत्रहीन थे। सगर की पटरानी का नाम केशिनी था जो कि विदर्भ प्रान्त के राजा की पुत्री थी। केशिनी रूपवती, धर्मात्मा और सत्यपरायण थी। सगर की दूसरी रानी का नाम सुमति था जो राजा अरिष्टनेमि की कन्या थी। महाराज सगर ने अपनी दोनों रानियों के साथ तपस्या करके महर्षि भृगु को प्रसन्न किया जिन्होंने वर दिया कि तुम्हें अनेक पुत्रों की प्राप्ति होगी। दोनों रानियों में से एक का केवल एक ही पुत्र होगा जो कि वंश को बढ़ायेगा और दूसरी के साठ हजार पुत्र होंगे। कौन सी रानी कितने पुत्र चाहती है इसका निर्णय वे स्वयं आपस में मिलकर कर लें। केशिनी ने वंश को बढ़ाने वाले एक पुत्र की कामना की और गरुड़ की भगिनी सुमति ने साठ हजार बलवान पुत्रों की। कुछ काल के पश्चात् रानी केशिनी ने असमञ्ज नामक पुत्र को जन्म दिया। रानी सुमति के गर्भ से एक तूंबा निकला जिसे फोड़ने पर छोटे छोटे साठ हजार पुत्र निकले। उन सबका पालन पोषण घी के घड़ों में रखकर किया गया। कालचक्र व्यतीत होते गया और सभी राजकुमार युवा हो गये। सगर का ज्येष्ठ पुत्र असमञ्ज बड़ा दुराचारी था और उसे नगर के बालकों को सरयू नदी में फेंक कर उन्हें डूबते हुये देखने में बड़ा आनन्द आता था। इस दुराचारी पुत्र से दुःखी होकर सगर ने उसे अपने राज्य से निर्वासित कर दिया। असमञ्ज के अंशुमान नाम का एक पुत्र था। अंशुमान अत्यंत सदाचारी और पराक्रमी था। एक दिन राजा सगर के मन में अश्वमेघ यज्ञ करने का विचार आया। शीघ्र ही उन्होंने अपने इस विचार को कार्यरूप में परिणित कर दिया। राम ने ऋषि विश्वामित्र से कहा, "गुरुदेव! मेरी रुचि अपने पूर्वज सगर की यज्ञ गाथा को विस्तारपूर्वक सुनने में है। अतः कृपा करके इस वृतान्त को पूरा पूरा सुनाइये।" राम के इस प्रकार से जिज्ञासा व्यक्त करने पर ऋषि विश्वामित्र प्रसन्न होकर कहने लगे, " राजा सगर ने हिमालय एवं विन्ध्याचल के बीच की हरीतिमायुक्त भूमि पर एक विशाल यज्ञ मण्डप का निर्माण करवाया। फिर अश्वमेघ यज्ञ के लिये श्यामकर्ण घोड़ा छोड़कर उसकी रक्षा के लिये पराक्रमी अंशुमान को सेना के साथ उसके पीछे पीछे भेज दिया। यज्ञ की सम्भावित सफलता के परिणाम की आशंका से भयभीत होकर इन्द्र ने एक राक्षस का रूप धारण किया और उस घोड़े को चुरा लिया। घोड़े की चोरी की सूचना पाकर सगर ने अपने साठ हजार पुत्रों को आज्ञा दी कि घोड़ा चुराने वाले को पकड़कर या मारकर घोड़ा वापस लाओ। पूरी पृथ्वी में खोजने पर भी जब घोड़ा नहीं मिला तो, इस आशंका से कि किसीने घोड़े को तहखाने में न छुपा रखा हो, सगर के पुत्रों ने सम्पूर्ण पृथ्वी को खोदना आरम्भ कर दिया। उनके इस कार्य से असंख्य भूमितल निवासी प्राणी मारे गये। खोदते खोदते वे पाताल तक जा पहुँचे। उनके इस नृशंस कृत्य के विषय में देवताओं ने ब्रह्मा जी को बताया तो ब्रह्मा जी ने कहा कि ये राजकुमार क्रोध एवं मद में अन्धे होकर ऐसा कर रहे हैं। पृथ्वी की रक्षा कर दायित्व कपिल ऋषि पर है इसलिये वे इस विषय में अवश्य ही कुछ न कुछ करेंगे। पूरी पृथ्वी को खोदने के बाद भी जब घोड़ा और उसको चुराने वाला चोर नहीं मिला तो निराश होकर राजकुमारों ने इसकी सूचना अपने पिता को दी। क्रुद्ध सगर ने आदेश दिया कि घोड़े को पाताल में जाकर ढूंढो। पाताल में घोड़े को खोजते खोजते वे कपिल मुनि के आश्रम में पहुँच गये। उन्होंने देखा कपिलदेव तपस्या में लीन हैं और उन्हीं के पास यज्ञ का वह घोड़ा बँधा हुआ है। उन्होंने कपिल मुनि को घोड़े का चोर समझकर उनके लिये अनेक दुर्वचन कहे और उन्हें मारने के लिये दौड़े। सगर के इन कुकृत्यों से कपिल मुनि की समाधि भंग हो गई। उन्होंने क्रुद्ध होकर सगर के उन सब पुत्रों को भस्म कर दिया।" ऋषि विश्वामित्र ने आगे कहा, "बहुत दिनों तक अपने पुत्रों की सूचना नहीं मिलने पर महाराज सगर ने अपने तेजस्वी पौत्र अंशुमान को अपने पुत्रों तथा घोड़े का पता लगाने के लिये आदेश दिया। वीर अंशुमान शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित होकर अपने चाचाओं के द्वारा बनाए गए मार्ग से पाताल की ओर चल पड़ा। मार्ग में मिलने वाले पूजनीय ऋषि मुनियों का यथोचित सम्मान करके अपने लक्ष्य के विषय में पूछता हुआ उस स्थान तक पहुँच गया जहाँ पर उसके चाचाओं के भस्मीभूत शरीरों की राख पड़ी थी और पास ही यज्ञ का घोड़ा चर रहा था। अपने चाचाओं के भस्मीभूत शरीरों को देखकर उसे अत्यन्त क्षोभ हुआ। उसने उनका तर्पण करने के लिये जलाशय की खोज की किन्तु उसे कोई भी जलाशय दृष्टिगत नहीं हुआ। तभी उसकी दृष्टि अपने चाचाओं के मामा गरुड़ पर पड़ी। उन्हें सादर प्रणाम करके अंशुमान ने पूछा कि हे पितामह! मैं अपने चाचाओं का तर्पण करना चाहता हूँ। समीप में यदि कोई सरोवर हो तो कृपा करके उसका पता बताइये। यदि आपको इनकी मृत्यु के विषय में कुछ जानकारी है तो वह भी मुझे बताने की कृपा करें। गरुड़ जी ने बताया कि किस प्रकार से इन्द्र ने घोड़े को चुरा कर कपिल मुनि के पास छोड़ दिया था और उसके चाचाओं ने कपिल मुनि के साथ उद्दण्ड व्यवहार किया था जिसके कारण कपिल मुनि ने उन सबको भस्म कर दिया। इसके पश्चात् गरुड जी ने अंशुमान से कहा कि ये सब अलौकिक शक्ति वाले दिव्य पुरुष के द्वारा भस्म किये गये हैं अतः लौकिक जल से तर्पण करने से इनका उद्धार नहीं होगा, केवल हिमालय की ज्येष्ठ पुत्री गंगा के जल से ही तर्पण करने पर इनका उद्धार सम्भव है। अब तुम घोड़े को लेकर वापस चले जाओ जिससे कि तुम्हारे पितामह का यज्ञ पूर्ण हो सके। गरुड़ जी की आज्ञानुसार अंशुमान वापस अयोध्या पहुँचे और अपने पितामह को सारा वृत्तान्त सुनाया। महाराज सगर ने दुःखी मन से यज्ञ पूरा किया। वे अपने पुत्रों के उद्धार करने के लिये गंगा को पृथ्वी पर लाना चाहते थे पर ऐसा करने के लिये उन्हें कोई भी युक्ति न सूझी।" थोड़ा रुककर ऋषि विश्वामित्र कहा, "महाराज सगर के देहान्त के पश्चात् अंशुमान बड़ी न्यायप्रियता के साथ शासन करने लगे। अंशुमान के परम प्रतापी पुत्र दिलीप हुये। दिलीप के वयस्क हो जाने पर अंशुमान दिलीप को राज्य का भार सौंप कर हिमालय की कन्दराओं में जाकर गंगा को प्रसन्न करने के लिये तपस्या करने लगे किन्तु उन्हें सफलता नहीं प्राप्त हो पाई और वे स्वर्ग सिधार गए। इधर जब राजा दिलीप का धर्मनिष्ठ पुत्र भगीरथ बड़ा हुआ तो उसे राज्य का भार सौंपकर दिलीप भी गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिये तपस्या करने चले गये। पर उन्हें भी सफलता नहीं मिली। भगीरथ बड़े प्रजावत्सल नरेश थे किन्तु उनकी कोई सन्तान नहीं हुई। इस पर वे अपने राज्य का भार मन्त्रियों को सौंपकर स्वयं गंगावतरण के लिये गोकर्ण नामक तीर्थ पर जाकर कठोर तपस्या करने लगे। उनकी अभूतपूर्व तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वर माँगने के लिये कहा। भगीरथ ने ब्रह्मा जी से कहा कि हे प्रभो! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे यह वर दीजिये कि सगर के पुत्रों को मेरे प्रयत्नों से गंगा का जल प्राप्त हो जिससे कि उनका उद्धार हो सके। इसके अतिरिक्त मुझे सन्तान प्राप्ति का भी वर दीजिये ताकि इक्ष्वाकु वंश नष्ट न हो। ब्रह्मा जी ने कहा कि सन्तान का तेरा मनोरथ शीघ्र ही पूर्ण होगा, किन्तु तुम्हारे माँगे गये प्रथम वरदान को देने में कठिनाई यह है कि जब गंगा जी वेग के साथ पृथ्वी पर अवतरित होंगीं तो उनके वेग को पृथ्वी संभाल नहीं सकेगी। गंगा जी के वेग को संभालने की क्षमता महादेव जी के अतिरिक्त किसी में भी नहीं है। इसके लिये तुम्हें महादेव जी को प्रसन्न करना होगा। इतना कह कर ब्रह्मा जी अपने लोक को चले गये। "भगीरथ ने साहस नहीं छोड़ा। वे एक वर्ष तक पैर के अँगूठे के सहारे खड़े होकर महादेव जी की तपस्या करते रहे। केवल वायु के अतिरिक्त उन्होंने किसी अन्य वस्तु का भक्षण नहीं किया। अन्त में इस महान भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव जी ने भगीरथ को दर्शन देकर कहा कि हे भक्तश्रेष्ठ! हम तेरी मनोकामना पूरी करने के लिये गंगा जी को अपने मस्तक पर धारण करेंगे। इसकी सूचना पाकर विवश होकर गंगा जी को सुरलोक का परित्याग करना पड़ा। उस समय वे सुरलोक से कहीं जाना नहीं चाहती थीं, इसलिये वे यह विचार करके कि मैं अपने प्रचण्ड वेग से शिव जी को बहा कर पाताल लोक ले जाऊँगी वे भयानक वेग से शिव जी के सिर पर अवतरित हुईं। गंगा का यह अहंकार महादेव जी से छुपा न रहा। महादेव जी ने गंगा की वेगवती धाराओं को अपने जटाजूट में उलझा लिया। गंगा जी अपने समस्त प्रयत्नों के बाद भी महादेव जी के जटाओं से बाहर न निकल सकीं। गंगा जी को इस प्रकार शिव जी की जटाओं में विलीन होते देख भगीरथ ने फिर शंकर जी की तपस्या की। भगीरथ के इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने गंगा जी को हिमालय पर्वत पर स्थित बिन्दुसर में छोड़ा। छूटते ही गंगा जी सात धाराओं में बँट गईं। गंगा जी की तीन धाराएँ ह्लादिनी, पावनी और नलिनी पूर्व की ओर प्रवाहित हुईं। सुचक्षु, सीता और सिन्धु नाम की तीन धाराएँ पश्चिम की ओर बहीं और सातवीं धारा महाराज भगीरथ के पीछे पीछे चली। जिधर जिधर भगीरथ जाते थे, उधर उधर ही गंगा जी जाती थीं। स्थान स्थान पर देव, यक्ष, किन्नर, ऋषि-मुनि आदि उनके स्वागत के लिये एकत्रित हो रहे थे। जो भी उस जल का स्पर्श करता था, भव-बाधाओं से मुक्त हो जाता था। चलते चलते गंगा जी उस स्थान पर पहुँचीं जहाँ ऋषि जह्नु यज्ञ कर रहे थे। गंगा जी अपने वेग से उनके यज्ञशाला की सम्पूर्ण सामग्री को साथ बहाकर ले जाने लगीं। इससे ऋषि को बहुत क्रोध आया और उन्होंने क्रुद्ध होकर गंगा का सारा जल पी लिया। यह देख कर समस्त ऋषि मुनियों को बड़ा विस्मय हुआ और वे गंगा जी को मुक्त करने के लिये उनकी स्तुति करने लगे। उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर जह्नु ऋषि ने गंगा जी को अपने कानों से निकाल दिया और उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार कर लिया। तब से गंगा जाह्नवी कहलाने लगीँ। इसके पश्चात् वे भगीरथ के पीछे चलते चलते समुद्र तक पहुँच गईं और वहाँ से सगर के पुत्रों का उद्धार करने के लिये रसातल में चली गईं। उनके जल के स्पर्श से भस्मीभूत हुये सगर के पुत्र निष्पाप होकर स्वर्ग गये। उस दिन से गंगा के तीन नाम हुये, त्रिपथगा, जाह्नवी और भागीरथी। "हे रामचन्द्र! कपिल आश्रम में गंगा जी के पहुँचने के पश्चात् ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर भगीरथ को वरदान दिया कि तेरे पुण्य के प्रताप से प्राप्त इस गंगाजल से जो भी मनुष्य स्नान करेगा या इसका पान करेगा, वह सब प्रकार के दुःखो से रहित होकर अन्त में स्वर्ग को प्रस्थान करेगा। जब तक पृथ्वी मण्डल में गंगा जी प्रवाहित होती रहेंगी तब तक उसका नाम भागीरथी कहलायेगा और सम्पूर्ण भूमण्डल में तेरी कीर्ति अक्षुण्ण रूप से फैलती रहेगी। सभी लोग श्रद्धा के साथ तेरा स्मरण करेंगे। यह कह कर ब्रह्मा जी अपने लोक को लौट गये। भगीरथ ने पुनः अपने पितरों को जलांजलि दी।" जय माँ गंगे हर हर गंगे राणा जी खेड़ांवाली #🕉️सनातन धर्म🚩 #🙏रामायण🕉 #🎶जय श्री राम🚩
*अस्त ग्रह और उनके अनुभव आधारित फल* 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 ज्योतिष शास्त्र में अस्त ग्रह के परिणामों की बहुत लंबी व्याख्या मिलती है। अस्तग्रहों के बारे में यह कहा जाता है : “त्रीभि अस्तै भवे ज़डवत”,अर्थात् किसी जन्मपत्रिका में तीन ग्रहों के अस्त हो जाने पर व्यक्ति ज़ड पदार्थ के समान हो जाता है। ज़ड से तात्पर्य यहां व्यक्ति की निष्क्रियता और आलसीपन से है अर्थात् ऎसा व्यक्ति स्थिर बना रहना चाहता है, उसके शरीर, मन और वचन सभी में शिथिलता आ जाती है। कहा जाता है कि ग्रहों के निर्बल होने में उनकी अस्तंगतता सबसे ब़डा दोष होता है। अस्त ग्रह अपने नैसर्गिक गुणों को खो देते हैं, बलहीन हो जाते हैं और यदि वह मूल त्रिकोण या उच्चा राशि में भी हों तो भी अच्छे परिणम देने में असमर्थ रहते हैं। ज्योतिष शास्त्र में एक अस्त ग्रह की वही स्थिति बन जाती है जो एक बीमार, बलहीन और अस्वस्थ राजा की होती है। यदि कोई अस्त ग्रह नीच राशि, दु:स्थान, बालत्व दोष या वृद्ध दोष, शत्रु राशि या अशुभ ग्रह के प्रभाव में हो तो ऎसा अस्त ग्रह, ग्रह कोढ़ में खाज का काम करने लगता है। उसके फल और भी निकृष्ट मिलने लगते हैं अत: किसी कुण्डली के फल निरूपण में अस्तग्रह का विश्लेषण अवश्य कर लेना चाहिए। अस्त ग्रह की दशान्तर्दशा में कोई गंभीर दुर्घटना, दु:ख या बीमारी आदि हो जाती है। जब किसी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में कोई शुभ ग्रह यथा बृहस्पति, शुक्र, चंद्र, बुध आदि अस्त होते हैं तो अस्तंगतता के परिणाम और भी गंभीर रूप से मिलने लगते हैं। कई कुण्डलियों में तो देखने को मिलता है कि किसी एक शुभ ग्रह के पूर्ण अस्त हो जाने मात्र से व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ही अभावग्रस्त हो जाता है और परिणाम किसी भी रूप में आ सकते हैं जैसे किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाना, किसी पैतृक संपत्ति का नष्ट हो जाना, शरीर का कोई अंग-भंग हो जाना या किसी परियोजना में भारी हानि होने के कारण भारी धनाभाव हो जाना आदि। यह भी देखा जाता है कि यदि कोई ग्रह अस्त हो परंतु वह शुभ भाव में स्थित हो जाए अथवा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो अस्तग्रह के दुष्परिणामों में कमी आ जाती है। यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में लग्नेश अस्त हो और इस अस्त ग्रह पर से कोई पाप ग्रह संचार करे तो फल अत्यंत प्रतिकूल मिलते हैं। यदि कोई ग्रह अस्त हो और वह पाप प्रभाव में भी हो तो ऎसे ग्रह के दुष्परिणामों से बचने के लिए दान करना श्रेष्ठ उपाय होता है। किसी ग्रह के अस्त होने पर ऎसे ग्रह की दशा-अन्तर्दशा में अनावश्यक विलंब, किसी कार्य को करने से मना करना अथवा अन्य प्रकार के दु:खों का सामना करना प़डता है। यदि व्यक्ति की कुण्डली में कोई ग्रह सूर्य के निकटतम होकर अस्त हो जाता है तो ऎसा ग्रह बलहीन हो जाता है। उदाहरण के लिए विवाह का कारक ग्रह यदि अस्त हो जाए और नवांश लग्नेश भी अस्त हो तो ऎसा व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब, सुंदर हो या कुरूप, ल़डका हो या ल़डकी निस्संदेह विवाह में विलंब कराता है। यदि इन ग्रहों की दशा या अन्तर्दशा आ जाए तो व्यक्ति जीवन के यौवनकाल के चरम पर विवाह में देरी कर देता है और वैवाहिक सुखों (दांपत्य सुख) से वंचित हो जाता है जिसके कारण उसे समय पर संतान सुख भी नहीं मिल पाता और वैवाहिक जीवन नष्ट सा हो जाता है। अब हम ग्रहों के अस्त होने पर उनके सामान्य फलों पर विचार करते हैं कि किसी ग्रह विशेष के अस्त हो जाने पर उनकी अंतर्दशा में कैसे परिणाम आते हैं : चंद्रमा 〰️〰️ किसी व्यक्ति की कुण्डली में चंद्रमा के अस्त होने पर मानसिक अशांति, माँ का अस्वस्थ होना, पैतृक संपत्ति का नष्ट होना, जन सहयोग का अभाव, व्यक्ति का अशांत हो जाना, दौरे आना, मिर्गी होना, फेफ़डों में रोग होना आदि घटनाएं होती है। यदि अस्त चंद्रमा अष्टमेश के पाप प्रभाव में हों तो व्यक्ति दीर्घकाल तक अवसादग्रस्त रहता है, इसी प्रकार द्वादशेश के प्रभाव में आने पर व्यक्ति नशे का आदि हो जाता है अथवा किसी बीमारी की निरंतर दवा खाता है। मंगल 〰️〰️ किसी व्यक्ति की कुण्डली में मंगल के अस्त होने पर उसकी अंतर्दशा में व्यक्ति क्रोधी, नसों में दर्द, रक्त का दूषित हो जाना, उच्चा अवसादग्रस्तता आदि कष्ट हो जाते हैं। यदि अस्त मंगल पर राहु/केतु का प्रभाव हो तो व्यक्ति दुर्घटना, मुकदमेंबाजी या कैंसर का शिकार हो जाता है। यदि मंगल षष्ठेश के पाप प्रभाव में हो तो अस्वस्थ्य, दूषित रक्त, कैंसर या विवाद में चोटग्रस्त हो जाता है। इसी प्रकार अष्टमेश के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति घोटालेबाज हो जाता है, भष्टाचार में लिप्त रहता है। द्वादशेश के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति किसी नशीले पदार्थ का सेवन करने लगता है। बुध 〰️〰️ अस्त बुध की अंतर्दशा में व्यक्ति भ्रमित, संवेदनशील, निर्णय लेने में विलंब करता है। अति विश्वास या न्यून विश्वास का शिकार होकर तनावग्रस्त हो जाता है, अशांत रहता है। उसके शरीर में लकवा, ऎंठन, श्वास रोग अथवा चर्म रोग हो जाते हैं। यदि अस्त बुध षष्ठेश के पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति तनाव, चर्म रोग या लकवाग्रस्त होकर अस्वस्थ रहता है। यदि बुध अष्टमेश के पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति दमा रोग से ग्रसित, मानसिक अवसाद अथवा किसी प्रियजन की मृत्यु का शोक भोगता है। यदि बुध द्वादशेश के पाप प्रभाव में हों तो व्यक्ति किसी नशे का शिकार या रोगग्रस्त रहता है। बृहस्पति 〰️〰️〰️ यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में बृहस्पति अस्त हों और बृहस्पति की अंतर्दशा आ जाए तो व्यक्ति लीवर की बीमारी और ज्वर से ग्रसित रहता है। वह अध्ययन से कट जाता है। उसकी आध्यात्मिक रूचि क्षीण हो जाती है, वह स्वार्थी हो जाता है। यदि अस्त बृहस्पति पर अन्य दूषित प्रभाव हों तो वह पुरूष संतान से वंचित हो सकता है। बृहस्पति के षष्ठेश के पाप प्रभाव में होने पर उच्चा ज्वर, टायफाइड, मधुमेह तथा मुकदमों में फँसना, अष्टमेश के पाप प्रभाव में होने पर प्रतिष्ठा में हानि, किसी प्रियजन का वियोग अथवा किसी बुजुर्ग की मृत्यु हो जाना, इसी प्रकार द्वादशेश के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति के विवाहेत्तर संबंध बन जाते हैं और वह किसी व्यसन से ग्रसित हो जाता है। शुक्र 〰️〰️ जब किसी कुण्डली में शुक्र अस्त हो और उसकी अंतर्दशा आ जाए तो व्यक्ति की पत्नी रोगग्रस्त हो जाती है अथवा उसके गर्भाशय या बच्चोदानी में समस्या हो जाती है। व्यक्ति नेत्र रोग, चर्म रोग से भी ग्रसित हो जाता है। अस्त शुक्र के राहु-केतु के प्रभाव में आने पर व्यक्ति की प्रतिष्ठा नष्ट होती है, वह किडनी विकार या मधुमेह का शिकार हो जाता है। यदि अस्त शुक्र षष्ठेश के दुष्प्रभाव में हों तो मूत्राशय रोग, यौनांगों में विकार अथवा चर्म रोग से ग्रसित होता है, अष्टमेश के दुष्प्रभाव में होने पर दांपत्य जीवन में कटुता, किसी प्रियजन की मृत्यु का दु:ख तथा द्वादशेश के दुष्प्रभाव में होने पर व्यक्ति यौन संक्रमण रोग और नशे का आदि हो जाता है। शनि 〰️〰️ यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में शनि अस्त हो और उनकी दशा-अन्तर्दशा आ जावे तो वह अस्थि भंग होने, टांगों या पैरों में दर्द, रीढ़ की हड्डी में दर्द आदि से पीडित रहता है। उसे कठोर परिश्रम करना प़डता है, उसका कार्य व्यवहार नीच प्रकृति के लोगों से रहता है। उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा समाप्त होने लगती है। शनि के राहु-केतु से प्रभावित होने पर जो़डो में दर्द रहने लगता है। अस्त शनि के षष्ठेश के पाप प्रभाव में होने पर रीढ़ की हड्डी में दर्द, जो़डों में दर्द, शरीर में जक़डन रहने लगता है, मुकदमों का सामना करना प़डता है। अस्त शनि के अष्टमेश के पाप प्रभाव में होने पर अस्थि टूट जाने, रोजगार में समस्या अथवा किसी प्रियजन का अभाव हो जाना होता है। शनि के द्वादशेश के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति किसी बीमारी से ग्रस्त रहने लगता है अथवा व्यसन में डूब जाता है। राणा जी खेड़ांवाली🚩 #🕉️सनातन धर्म🚩 #श्री हरि
*मित्रो ये प्रस्तुति श्रीमद्भागवत का सार है, इतने विशाल ग्रंथ का सार एक प्रस्तुति में करना संभव नही था इसलिए हमने इस कथा के सार को एक क्रम दिया है, जो कि सात प्रस्तुतियों में है, पढ़े छठवीं प्रस्तुति,,,,,* 🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂 मित्रो, यह प्रसंग बहुत गौर से पढने योग्य है- भगवान् कपिल व्यास गद्दी पर विराजमान है, कपिल की नौ बहनें बैठी हैं, सबसे आगे देवहूति माता बैठी है, कपिल से प्रश्न करती है- हे प्रभु! मेरी परिस्थिति बड़ी खराब हो रही है, ये जो दस इन्द्रियां है, पांच ज्ञानेन्द्रियां और पांच कर्मेन्द्रियां सब मुझे अपनी-अपनी ओर खींच रही है, मेरी समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूं? निर्विण्णा नितरां भूमन्नसदिन्द्रिय तर्षणात्। येन् सम्भाव्यमानेन नप्रपन्नान्धं तमः प्रभोः।। आँखे कहती है सुन्दर रूप देखो, कान कहते है मधुर संगीत सुनो, नासिका कहती है मीठी सुगन्ध को सूंघो, रसना जो खतरनाक इन्द्रिय है जो कहती है स्वादिष्ट पदार्थ का सेवन करो, इन्द्रियों को वश में कैसे करूँ? यह मेरा पहला प्रश्न है, मेरा दूसरा प्रश्न यह है कि बंधन किसका होता है? बंधन मन का होता है, शरीर का होता है या आत्मा का होता है? मन को वश में करने का उपाय क्या है? प्रभु कपिलदेव ने कहा- माँ, आप तो स्वयं ज्ञानी हैं, विदुषी है, परम साध्वी है, आपसे मैं क्या कहूँगा, फिर भी जो मैंने जाना हैं उसे जरूर कहुँगा, इन्द्रियों को तो वश में करना ही चाहिये, उन्हें वश में करने का तरीका है संयम, संयम साधन के द्वारा इन्द्रियों को वश में किया जा सकता है, फिर भी यदि वश में नहीं होती हो तो, प्रत्येक इन्द्रिय का मुख परमात्मा की ओर मोड़ दो। हमारे मन में स्वादिष्ट और ज्यादा पकवान खाने की इच्छा है, तो उन पकवानों को गोविन्द के भोग लगाकर पाओ, जीभ की वस्तु उसे मिली, पर परमात्मा से संबंध जोड़कर मिली, इसलिये उसका दोष नहीं रहा, दूसरी बात- माता! जहां तक बंधन का कारण है तो आत्मा का कभी बंधन नहीं होता, इसलिये आत्मा की मुक्ति का सोचना भी अपराध है, जिसका बंधन नहीं उसकी कैसी मुक्ति? आत्मा की कोई मुक्ति नहीं होती, बंधन और मुक्ति तो केवल मन की होती है, मन ही बन्धन में डालता है, मन ही बंधन से मुक्त करता है, यदि विषयों के प्रति मन आसक्त है तो हम बँधे हुये है, और मन विषयों से हट गया तो समझो हमारी मुक्ति हो गयी, इसलिये मन को विषयों से अनासक्त बनाओ, मन से ही बंधन है और मन से ही मुक्ति। आप समझिये जिस प्रकार जितना बड़ा प्लाॅट होता है उतना बड़ा मकान नहीं बनता, मकान प्लाॅट से छोटा होता है, और जितना बड़ा मकान होता है उतना बड़ा उसका दरवाजा नहीं होता, दरवाजा मकान से छोटा होता है, और जितना बड़ा दरवाजा होता है उतना बड़ा उसका ताला नहीं होता, ताला दरवाजे से छोटा होता है, और जितना बड़ा ताला होता है उतनी बड़ी उसकी चाबी नहीं होती। चाबी बिल्कुल छोटी होती है पर उस पूरे मकान को बंद करना है और खोलना है तो वह छोटी सी चाबी ही काम आती है, उसे यूँ घुमा दीजिये तो मकान बन्द हो जायेगा, और यूँ घुमा दीजिये तो मकान खुल जायेगा, उसी प्रकार इस पूरे शरीर रूपी मकान की चाबी है हमारा 'मन' इस मन को अगर आप संसार में लगा देंगे, विषय-वासना में लगा देंगे तो बंधन हो जायेगा। और इसी मन को अगर आप गोविन्द के चरणों में लगा देंगे तो आपकी मुक्ति हो जायेगी, इसी मन से बंधन है और इसी मन से मुक्ति, इस मन को वश में करना बहुत जरूरी है, अभी हम मन के वश में है इसलिये मन हमें बहुत भटकाता है, लेकिन मन जिस दिन आपके वश में हो जायेगा यह भटकना बंद कर देगा, आदरणीय संत श्री कबीरदासजी लिखते हैं! मन के हारे हार है मन के जीते जीत मन ही लेजावे नर्क में, मन ही करावे फजीत। मन के मारे बन गये, बन तज बस्ती माय कहे कबीर क्या कीजिए, यह मन ठहरे नाय। मन बड़ा है लालची, समझे नांहि गंवार भजन करन में आलसी, खाने में होशियार। यह तो गति है अटपटी, झटपट लखै न कोय जब मन खट-पट मिटै तो, झटपट दरशन होय। तो जब मन की खटपट मिटेगी तो झटपट प्रभु के दर्शन होंगे, इसलिये मन को अनासक्त बनाओ, मन को अनासक्त बनाने का पहला तरीका है सत्संग, महापुरुषों के सामने बैठकर सत्संग करें, परमात्मा की दिव्य लीलाओं का रसास्वादन करें, क्योंकि भगवान् के बारे में जब-तब जानकारी नहीं होगी तो मन उनमें लगेगा कैसे? जाने बिनु होई परतीति। बिन परतीति होइ नहीं प्रीति।। बिना जानकारी के परमात्मा को समझेंगे कैसे? इसलिये सत्संग में जरूर जाना चाहिये, सत्संग का समय जरूर निकाले, सत् यानी अविनाशी परमात्मा, संग यानी साथ, जो परमात्मा का साथ करवा दे, या परमात्मा का संग करवा दे, उसी का नाम है सत्संग, आप सत्य संग बोलें, चाहे सत् संग बोलें, एक ही बात है, सत्संग करें धीरे-धीरे मन कृष्ण चरणों में लगेगा। मन को वश में करने का दूसरा तरीका है, अष्टांग योग, योग के आठ अंग - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि, मन को वश में करना है तो हम अहिंसक बनें, शाकाहारी बनें, सात्विक बने, हिंसा करने वाला, मांस भक्षण करने वाला व्यक्ति एकाग्र मन वाला नहीं हो सकता। अहिंसा सत्यमस्तेयं यावदर्थपरिसग्रहः। ब्रह्मचर्य तपः शौचं स्वाध्यायः पुरूषाच॔नम्।। मौनं सदाऽऽसनजयः स्थैय॔ प्राणजयः शनेः। प्रत्याहारश्चैन्द्रियाणां विषयान्मनसा ह्रदि।। आपको जानकर आश्चर्य होगा- अमेरिका जैसा देश, जहां के लोग हर जीव का मांस भक्षण करते है, वहां अभी तीस प्रतिशत से ज्यादा व्यक्ति शुद्ध शाकाहारी बन गये हैं, दिनों-दिन वहाँ शाकाहार की प्रवृत्ति बढ़ रही है, लेकिन हम लोगों के यहां दिनों-दिन लोग गिरते जा रहे है, डाक्टरों ने अध्ययन करके जानकारी हासिल की है कि कैंसर के मरीज नब्बे प्रतिशत मांसाहारी होते है। हमे किसी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिये, हम अहिंसक बनें, जैन पंथ में तो अहिंसा मूल मंत्र है, कई जगह देवी के या भोमियाजी व भेरूजी के बली चढ़ाते लोग कहते है कि बली चढ़ाने से देव प्रसन्न हो जायेंगे, अरे भले आदमी हिंसा से कोई देव प्रसन्न नहीं होता, ये सब तो जीभ के स्वाद के कारण कितना पाप कर रहे हैं। मित्रो आगे का प्रसंग हम आपको सातवीं औऱ अंतिम पोस्ट में बतायेगें। क्रमशः जय श्री कृष्ण! ओऊम् नमो भगवते वासुदेवाय् राणा जी खेड़ांवाली🚩 #🌸 जय श्री कृष्ण😇 #🕉️सनातन धर्म🚩
*॥ नल - दमयन्ती कथा ॥ ( भाग - 2 )* *॥ हंस का दयमंती को नल की कीर्ति कहना ॥* *। राजाओं को दमयन्ती के स्वयंवर में निमन्त्रण ।* 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀 एक दिन राजा नलने अपने महल के उद्यान में कुछ हंसो को देखा । उन्होंने एक हंस को पकड़ लिया । हंस ने कहा - ' राजन ! आप मुझे छोड़ दीजिये तो हम लोग दमयन्ती के पास जाकर आपके गुणों का ऐसा वर्णन करेंगे कि वह आपको अवश्य - अवश्य वर् लेगी ।' नल ने हंस को छोड़ दिया । वे सब उड़कर विदर्भ देश में गये । दमयन्ती अपने पास हंसो को देखकर बहुत प्रसन्न हुई और हंसो को पकड़ने के लिए उनकी ओर दौड़ने लगी, वह जिस हंस को पकड़ने लिए दौड़ती, वही बोल उठता कि - " अरी दमयन्ती ! निषद देश में एक नल नाम का राजा है वह अश्वनीकुमार के समान सुन्दर है । मनुष्यो में उसके समान सुन्दर कोई नहीं है ; वह मानो मूर्तिवानं कामदेव है, तुम अगर उसकी पत्नी हो जाओ तो तुम्हारा जन्म सफल हो जायँ । हम लोगों ने देवता, गन्धर्व, मनुष्य, सर्प और राक्षसों को घूम घूमकर देखा है, नल के समान के सुंदर पुरुष कहीं देखने को नहीँ आया । जैसे तुम स्त्रियों में रत्न हो, वैसे ही नल पुरुषो में भूषण है । तुम दोनों की जोड़ी बहुत ही सुंदर होगी । " दमयन्ती ने कहा - " हंस ! तुम लोग राजा नल से भी ऐसी ही बात कहना ।" हंस ने निषध देश लौटकर राजा नल से दमयन्ती का संदेश दिया । दमयन्ती हंस के मुँह से राजा नल की कीर्ति सुनकर उनसे प्रेम करने लगी । उसकी आसक्ति इतनी बढ़ गयी कि रात दिन उनका ही ध्यान करती रहती । शरीर धूमिल और दुबला हो गया, वह दीन सी दिखने लगी । सखियो ने दमयन्ती के ह्रदयँ का भाव ताड़कर विदर्भराज से निवेदन किया कि " आपकी पुत्री अस्वस्थ हो गयी है।" राजा भीम ने अपनी पुत्री के सम्बन्ध में बड़ा विचार किया ।" अंत में इस निर्णय पर पहुचे कि मेरी पुत्र विवाह के योग्य हो गयी है, इसलिए इसका "स्वयंवर" कर देना चाहिये । उन्होंने सब राजाओं को 'दमयन्ती के स्वयंवर का निमंत्रण- पत्र भेज दिया और सूचित कर दिया कि राजाओं को दमयंती स्वयंवर में पधारकर लाभ उठाना चाहिये और मेरा मनोरथ पूर्ण करने चाहिये ।' देश - देश के नरपति हाथी, घोड़े और रथों की ध्वनि से पृथ्वी को मुखरित करते हुए सज धजकर विदर्भ देश पहुचने लगे । राजा भीम ने सबके स्वागत की समुचित व्यवस्था की । क्रमशः - जय जय श्रीकृष्ण राणा जी खेड़ांवाली🚩 #🕉️सनातन धर्म🚩
*आयुर्वेदोक्त भोजन विधि: भोजन करने के नियम और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण* 🪵🪵🪵🪵🪵🪵🪵🪵🪵🪵🪵🪵 आयुर्वेद में भोजन विधि (Rules of Eating Food) को स्वास्थ्य का आधार माना गया है। सही तरीके से भोजन करने से न केवल पाचन शक्ति मजबूत होती है बल्कि शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) भी बढ़ती है। आजकल की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में लोग सही भोजन पद्धति पर ध्यान नहीं देते, जिससे Acidity, Constipation, IBS, Fatty Liver जैसी समस्याएँ आम हो गई हैं। आयुर्वेद के अनुसार भोजन केवल पेट भरने के लिए नहीं, बल्कि शरीर और मन को स्वस्थ रखने के लिए है। नीचे दी गई आयुर्वेदिक भोजन विधि आपके स्वास्थ्य और पाचन तंत्र (Digestive System) के लिए लाभकारी हो सकती है। *1. भोजन से पहले अदरक और सेंधा नमक का सेवन* आयुर्वेद कहता है कि भोजन शुरू करने से पहले अदरक का छोटा टुकड़ा और सेंधा नमक (Sendha Namak) खाना चाहिए। यह उपाय आपकी पाचन अग्नि (Digestive Fire) को जागृत करता है, जीभ और गले को साफ करता है और स्वाद इंद्रियों को सक्रिय करता है। इससे भोजन पचाना आसान हो जाता है। *2. भोजन का क्रम – घृत (Ghee), कठोर, नरम और फिर तरल* भोजन की शुरुआत में घृत (Ghee) का प्रयोग करें। पहले कठोर भोजन जैसे रोटी आदि खाएँ। फिर नरम भोजन लें। अंत में छाछ (Buttermilk) जैसे तरल पदार्थ लें। इससे शरीर को ऊर्जा और बल मिलता है और Digestive Problems से बचाव होता है। *3. एकाग्र होकर भोजन करना और स्वाद का क्रम* भोजन हमेशा एकाग्र होकर, शांति से करना चाहिए। सबसे पहले मीठा भोजन (Sweet Taste) लें। बीच में खट्टा (Sour) और नमकीन (Salty) लें। अंत में कड़वा (Bitter), तीखा (Spicy) और कसैला (Astringent) लें। यह क्रम शरीर को संतुलन और रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity Boost) प्रदान करता है। *4. भोजन से पहले फल – पर सही चयन ज़रूरी* भोजन की शुरुआत अनार (Pomegranate) जैसे फलों से करें। लेकिन ध्यान रखें कि भोजन से पहले केला और खीरा न खाएँ। खीरे में अधिक मात्रा में पानी होता है जो पाचन अग्नि को कम कर देता है और Digestion Slow हो जाता है। *5. पेट की क्षमता का सही उपयोग* आयुर्वेद के अनुसार – पेट के दो हिस्से ठोस भोजन से भरें। एक हिस्सा तरल भोजन से भरें। शेष हिस्सा वायु (Air) के लिए खाली छोड़ दें। इससे पाचन तंत्र (Digestive System) पर दबाव नहीं पड़ता और भोजन ठीक से पचता है। निष्कर्ष Ayurvedic Food Habits का पालन करने से न केवल पाचन सुधरता है बल्कि शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं। यदि आप किसी भी तरह की बीमारी जैसे Constipation, Acidity, IBS, Piles, Fatty Liver आदि से परेशान हैं, तो भोजन विधि पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है। राणा जी खेड़ांवाली🚩 #💁🏻‍♀️घरेलू नुस्खे #🌿आयुर्वेद #🕉️सनातन धर्म🚩
*आनन्दरामायणम्* *श्रीसीतापतये नमः* *श्रीवाल्मीकि महामुनि कृत शतकोटि रामचरितान्तर्गतं ('ज्योत्स्ना' हृया भाषा टीकयाऽटीकितम्)* *(सारकाण्डम्)द्वादश सर्गः* 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 *(राम का राज्याभिषेक )...(दिन 106)* 🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹 पन्द्रह वें वर्ष की माघ शुक्ल पञ्चमी को प्रातःकाल ब्राह्म मुहूर्त में भरत ने पुष्पकविमान को आकाश में देखा ॥ ८३ ॥ भरत ने राम के दर्शन करने के साथ ही उनको साष्टांग प्रणाम किया। राम ने भरत को अलिंगन करने के बाद एक साथ अनेक रूप धारण करके एक ही समय सब लोगों के साथ अलग-अलग मिले। किसी के साथ आलिंगन आगे या पीछे नहीं होने पाया ॥ ८४ ॥ ८५ ॥ बहुत से रामों को देखकर लोगों को बड़ा भारी विस्मय हुआ। राम ने भरत को ढाढ़स बंधाया और उनके नेत्रों में जल भर आया ॥ ८६ ॥ पश्चात् उन्होंने माताओं को मस्तक झुकाकर प्रणाम करके गुरुपत्नी अरुनधती को प्रणाम किया। बाद में नाच-गाना तथा बाजों के साथ धीरे-धीरे राम नन्दीग्राम में पधारे ॥ ८७ ॥ वहाँ जाकर राम ने क्षौर कराया और शरीर में चन्दनादि सुगन्धित द्रव्य मला तथा तेल लगाकर अनेक मंगलकारी वस्तुओं से सब बन्धुओं के साथ मंगल स्नान किया ।। ८८ ॥ चारों तरफ नये-नये बाजों के सुन्दर घोष होने लगे। स्त्रियें रत्नमय दीपकों से कौसल्या नन्दन राम की आरती उतारने लगीं ॥ ८६॥ सीता ने भी अपनी सासों को, अरुन्धती को, वसिष्ठ को, ब्राह्मणों को तथा और-और बन्दनीय जनों को यथाक्रम प्रणाम किया ॥ १० ॥ इसके अनन्तर कौसल्या आदि ने सीता को छाती से लगाकर मांगलिक द्रव्यों से स्नान कराया ॥ ६१ ॥ उस समय जनकनन्दिनी नये-नये अलङ्कारों से सजकर बड़ी सुन्दर लगने लगीं। भरत ने राम की पादुका का पूजन करके राम के पाँवों में भक्तिपूर्वक पहिना दी। तदनन्तर अति विनीत भाव से भरत रघुनाथजी से कहने लगे-॥ ९२॥९३॥ हे प्रभो । आपका धरोहर स्वरूप राज्य मैंने आजतक चलाया। है जगन्नाथ! आपके पुण्य-प्रताप से मैंने यहाँ के कोठार, कोश तथा सेना को बढ़ाकर दसगुना कर दिया है। अब आप अपने इस नगर का, देश का तथा राज्य का पालन स्वयं करें। यह सुन और 'तथास्तु' कहकर राम ने भरत को अपने पास बैठा लिया ।। ६४ ।। ६५ ।। तदनन्तर राम और सीता दिव्य वस्त्र धारण करके रथ पर सवार होकर जय-जयकार तथा वाजे गाने के साथ वारांगनाओं का नाच-गान देखते-सुनते हुए अपनी प्रिय अयोध्यापुरी को चले। नगर में प्रवेश करने पर नगर की नारियों ने छतों तथा कोठों पर चढ़कर अनेक प्रकार के पुष्पों की वर्षा की ॥ १६ ॥ ६७।। वे रास्ते में विविध पूजा की सामग्री से राम की आरती उतारने लगीं। राम ने विमान से उत्तरकर सीता को महल में भेज दिया और पुष्पक विमान से कहा कि 'तुम कुवेर के पास जाकर सदा उन्हीं की सेवा करो।' राम की आज्ञा को स्वीकार करके पुष्पक विमान कुवेर के पास चला गया ॥ ९८ ॥ ६६ ॥ अव राम सब कपियों को साथ लेकर सभाभवन में गये । पश्चात् कवियों को निवास करने के लिए उत्तम उत्तम मकान दिये गये ।। १०० ।। तदनन्तर गुरु वसिष्ठ ने शुभमुहूर्त में बड़े धूम-धाम से राम का राज्याभिषेक ठाना ।। १०१ ।। हनुमान् आदि को भेजकर चारों समुद्रों का शुभजल मंगवाया। देश-देशान्तर के राजे-महाराजे बुलाये गये। नाना प्रकार के बाजे बजे। लक्ष्मण ने पीछे खड़े होकर राम के ऊपर छत्र लगाया। राम की पादुका हाथ में लेकर हनुमान् उनके सामने खड़ हो गये। बायीं ओर सुन्दर पंखा लेकर शत्रुष्न खड़े हुए और राम की दाहिनी ओर चमर लेकर भरत खड़े हो गये ।। १०२-१०४ ॥ क्रमशः... जय सिया राम राणा जी खेड़ांवाली🚩 #🙏श्री राम भक्त हनुमान🚩 #🎶जय श्री राम🚩 #🙏रामायण🕉 #🕉️सनातन धर्म🚩
*श्रीमद्वाल्मीकीय–रामायण* *पोस्ट–611* 🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉 *(उत्तरकाण्ड–सर्ग-68)* 🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹 *आज की कथा में:–लवणासुर का आहार के लिये निकलना, शत्रुघ्न का मधुपुरी के द्वार पर डट जाना और लौटे हुए लवणासुर के साथ उनकी रोष भरी बातचीत* इस प्रकार कथा कहते और शुभ विजय की आकांक्षा रखते हुए उन मुनियों की बातें सुनते-सुनते महात्मा शत्रुघ्न की वह रात बात की बात में बीत गयी दनन्तर निर्मल प्रभातकाल होने पर भक्ष्य पदार्थ एवं भोजन के संग्रह की इच्छा से प्रेरित हो वह वीर राक्षस अपने नगर से बाहर निकला। इसी बीच में वीर शत्रुघ्न यमुना नदी को पार करके हाथ में धनुष लिये मधुपुरी के द्वार पर खड़े हो गये। तत्पश्चात् मध्याह्न होने पर वह क्रूरकर्मा राक्षस हजारों प्राणियों का बोझा लिये वहाँ आया। उस समय उसने शत्रुघ्न को अस्त्र-शस्त्र लिये द्वार पर खड़ा देखा। देखकर वह राक्षस उनसे बोला–‘नराधम ! इस हथियार से तू मेरा क्या कर लेगा। तेरे जैसे हजारों अस्त्र-शस्त्रधारी मनुष्यों को मैं रोष पूर्वक खा चुका हूँ। जान पड़ता है काल तेरे सिर पर नाच रहा है। पुरुषाधम! आज का यह मेरा आहार भी पूरा नहीं है। दुर्मते ! तू स्वयं ही मेरे मुँह में कैसे आ पड़ा ? वह राक्षस इस प्रकार की बातें कहता हुआ बारंबार हँस रहा था। यह देख पराक्रमी शत्रुघ्न के नेत्रों से रोष के कारण अश्रुपात होने लगा। रोष के वशीभूत हुए महामनस्वी शत्रुघ्न के सभी अङ्गों से तेजोमयी किरणें छिटकने लगीं। उस समय अत्यन्त कुपित हुए शत्रुघ्न उस निशाचर से बोले– शत्रुघ्न बोले–‘दुर्बुद्धे ! मैं तेरे साथ द्वन्द्वयुद्ध करना चाहता हूँ। मैं महाराज दशरथ का पुत्र और परम बुद्धिमान् राजा श्रीराम का भाई हूँ। मेरा नाम शत्रुघ्न है और मैं काम से भी शत्रुघ्न (शत्रुओं का संहार करने वाला) ही हूँ। इस समय तेरा वध करने के लिये यहाँ आया हूँ। मैं युद्ध करना चाहता हूँ। इसलिये तू मुझे द्वन्द्व युद्ध का अवसर दे। तू सम्पूर्ण प्राणियों का शत्रु है: इसलिये अब मेरे हाथ से जीवित बचकर नहीं जा सकेगा।’ उनके ऐसा कहने पर वह राक्षस उन नरश्रेष्ठ शत्रुघ्न से हँसता हुआ-सा बोला–‘दुर्मते! सौभाग्य की बात है कि आज तू स्वयं ही मुझे मिल गया। खोटी बुद्धि वाले नराधम ! रावण नामक राक्षस मेरी मौसी शूर्पणखा का भाई था, जिसे तेरे भाई राम ने एक स्त्री के लिये मार डाला। इतना ही नहीं, उन्होंने रावण के कुल का संहार कर दिया, तथापि मैंने वह सब कुछ सह लिया। तुम लोगों के द्वारा की गयी अवहेलना को सामने रखकर प्रत्यक्ष देखकर भी तुम सबके प्रति मैंने विशेष रूप से क्षमा-भाव का परिचय दिया। जो नराधम भूतकाल में मेरा सामना करने के लिये आये थे, उन सबको मैंने तिनकों के समान तुच्छ समझकर तिरस्कृत किया और मार डाला। जो भविष्य में आयेंगे, उनकी भी यही दशा होगी और वर्तमान काल में आने वाले तुझ जैसे नराधम भी मेरे हाथ से मरे हुए ही हैं। दुर्मते! तुझे युद्ध की इच्छा है न ? मैं अभी तुझे युद्ध का अवसर दूँगा। तू दो घड़ी ठहर जा। तब तक मैं भी अपना अस्त्र ले आता हूँ। तेरे वध के लिये जैसे अस्त्र का होना मुझे अभीष्ट हैं, वैसे अस्त्र को पहले सुसज्जित कर लूँ; फिर युद्धका अवसर दूँगा।’ यह सुनकर शत्रुघ्न तुरन्त बोल उठे शत्रुघ्न बोले–‘अब तू मेरे हाथ से जीवित बचकर कहाँ जायगा ?। किसी भी बुद्धिमान् पुरुष को अपने सामने आये हुए शत्रु को छोड़ना नहीं चाहिये। जो अपनी घबरायी हुई बुद्धि के कारण शत्रु को निकल जाने का अवसर दे देता है, वह मन्दबुद्धि पुरुष कायर के समान मारा जाता है। अत: राक्षस! अब तू इस जीव जगत् को अच्छी तरह देख लें। मैं नाना प्रकार के तीखे बाणों द्वारा तुझ पापी को अभी यमराज के घर की ओर भेजता हूँ, क्योंकि तू तीनों लोकों का तथा श्रीरघुनाथजी का भी शत्रु है।’ इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदि काव्य के उत्तरकाण्ड में अड़सठवाँ सर्ग पूरा हुआ॥६८॥ राणा जी खेड़ांवाली🚩 ॐश्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः🚩 #🕉️सनातन धर्म🚩 #🙏श्री राम भक्त हनुमान🚩 #🙏रामायण🕉 #🎶जय श्री राम🚩 #श्री हरि
🌞 *~ श्री गणेशाय नम:`*🌞 🚩 *~ हर हर महादेव~*🚩 🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 🌺 *दिनांक - 05 दिसम्बर 2025* 🌺 *दिन - शुक्रवार* 🌺 *विक्रम संवत 2082* 🌺 *शक संवत -1947* 🌺 *अयन - दक्षिणायन* 🌺 *ऋतु - हेमंत ॠतु* 🌺 *मास - पौष (गुजरात-महाराष्ट्र)मार्गशीर्ष* 🌺 *पक्ष - कृष्ण* 🌺 *तिथि - प्रतिपदा रात्रि 12:55 तक तत्पश्चात द्वितीया* 🌺 *नक्षत्र - रोहिणी सुबह 11:46 तक तत्पश्चात मृगशिरा* 🌺 *योग - सिद्ध सुबह 08:08 तक तत्पश्चात साध्य* 🌺 *राहुकाल - सुबह 11:08 से दोपहर 12:29 तक* 🌺 *सूर्योदय - 07:03* 🌺 *सूर्यास्त - 05:55* 👉 *दिशाशूल - पश्चिम दिशा मे* 🚩 *व्रत पर्व विवरण-* 💥 *विशेष - प्रतिपदा को कूष्माण्ड (कुम्हड़ा पेठा) न खाएं क्योकि यह धन का नाश करने वाला है (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)* 🌞~*वैदिक पंचांग* ~🌞 🌞 *~ राणा जी खेड़ांवाली~*🌞 🌷 *कपूर मिश्रित जल* 🌷 👉🏻 *गो चंदन अगरबत्ती गाय के घी में डुबो के जला देते तो भी गाय के गोबर के कंडे जैसा परिणाम देगा …. कभी मै उस में कपूर भी रख देता…. कभी कभी कपूर मिश्रित जल कमरे में छिटक देना भी हितकारी माना जाता है ….कपूर पानी में डाल के वो पानी कमरे में छिटक दे…..* 🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞 🌷 *बलवर्धक* 🌷 ➡ *२ से ४ ग्राम शतावरी का चूर्ण गर्म दूध के साथ ३ माह तक सेवन करें इससे शरीर में बल आता है, साथ ही नेत्र ज्योति भी बढ़ती है* 🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞 🌷 *सुबह उठते वक्त* 🌷 🌞 *सुबह उठकर जो " ॐ ब्रह्मणे नमः " " ॐ ब्रह्मणे नमः" गुरु साक्षात् ब्रह्म स्वरुप है | गुरु का स्मरण करते हुए " ॐ ब्रह्मणे नमः " ऐसा जो मन में बोलता है, और वंदन करता है वो समस्त तीर्थो में स्नान करने और समस्त यज्ञो में भाग लेने का पुण्य प्राप्त करता है |* 📖 *राणा जी खेड़ांवाली🚩* 🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞 🙏🍀🌷🌻🌺🌸🌹🍁🙏 #🕉️सनातन धर्म🚩 #श्री हरि #आज का राशिफल / पंचाग ☀
🌺🌺🙏🙏🌺🌺🙏🙏🌺🌺 *********|| जय श्री राधे ||********* 🌺🙏 *महर्षि पाराशर पंचांग* 🙏🌺 🙏🌺🙏 *अथ पंचांगम्* 🙏🌺🙏 *********ll जय श्री राधे ll********* 🌺🌺🙏🙏🌺🌺🙏🙏🌺🌺 *दिनाँक:-05/12/2025,शुक्रवार* प्रतिपदा, कृष्ण पक्ष, पौष """"""""""""""""""""""""""""""""""""(समाप्ति काल) तिथि--------- प्रतिपदा 24:55:15. तक पक्ष-------------------------- कृष्ण नक्षत्र---------- रोहिणी 11:45:29 योग-------------- सिद्ध 08:07:20 योग-------------- साध्य 27:48:03 करण----------- बालव 14:47:40 करण----------- कौलव 24:55:15 वार------------------------ शुक्रवार माह--------------------------- पौष चन्द्र राशि----- वृषभ 22:14:39 चन्द्र राशि----------------- मिथुन सूर्य राशि --------------------- वृश्चिक रितु--------------------------- हेमंत आयन------------------ दक्षिणायण संवत्सर--------------------विश्वावसु संवत्सर (उत्तर)‐------------- सिद्धार्थी विक्रम संवत---------------- 2082 गुजराती संवत-------------- 2082 शक संवत------------------ 1947 कलि संवत------------------ 5126 वृन्दावन सूर्योदय---------------- 06:56:40 सूर्यास्त----------------- 17:23:02 दिन काल-------------- 10:26:21 रात्री काल-------------- 13:34:21 चंद्रोदय----------------- 17:36:50 चंद्रास्त----------------- 31:15:53 लग्न ----वृश्चिक 18°56' , 228°56' सूर्य नक्षत्र-------------------- ज्येष्ठा चन्द्र नक्षत्र------------------ रोहिणी नक्षत्र पाया------------‐------ लोहा *🚩💮🚩 पद, चरण 🚩💮🚩* वु---- रोहिणी 11:45:29 वे---- मृगशिरा 16:59:39 वो---- मृगशिरा 22:14:39 का---- मृगशिरा 27:30:40 *💮🚩💮 ग्रह गोचर 💮🚩💮* ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद ============================ सूर्य= वृश्चिक 18°49 , ज्येष्ठा 1 नो चन्द्र= वृषभ 20°30 , रोहिणी 4 वु बुध = तुला 28°52 ' विशाखा 3 ते शु क्र= वृश्चिक 10°05, अनुराधा , 3 नू मंगल= वृश्चिक 28°30 ' ज्येष्ठा 4 यू गुरु= कर्क 00°50 पुनर्वसु, 4 ही शनि=मीन 01°03 ' पूo भा o , 4 दी राहू=(व) कुम्भ 19°25 पू o भा o, 4 सू केतु= (व) सिंह 19°25 पूoफा o 2 टा ============================ *🚩💮🚩 शुभा$शुभ मुहूर्त 🚩💮🚩* राहू काल 10:52 - 12:10 अशुभ यम घंटा 14:46 - 16:05 अशुभ गुली काल 08:15 - 09:33 अशुभ अभिजित 11:49 - 12:31 शुभ दूर मुहूर्त 09:02 - 09:44 अशुभ दूर मुहूर्त 12:31 - 13:12 अशुभ वर्ज्यम 16:39 - 18:03 अशुभ प्रदोष 17:23 - 20:09 शुभ 💮चोघडिया, दिन चर 06:57 - 08:15 शुभ लाभ 08:15-09:33 शुभ अमृत 09:33 10:52 शुभ काल 10:52 12:10 अशुभ शुभ 12:10-13:28 शुभ रोग 13:28 - 14:46 अशुभ उद्वेग 14:46 - 16:05 अशुभ चर 16:05 17:23 शुभ 🚩चोघडिया, रात रोग 17:23 - 19:05 अशुभ काल 19:05 20:47 अशुभ लाभ 20:47 - 22:28 शुभ उद्वेग 22:28 - 24:10* अशुभ शुभ 24:10* -25:52* शुभ अमृत 25:52* - 27:34* शुभ चर 27:34* - 29:16* शुभ रोग 29:16* - 30:57* अशुभ 💮होरा, दिन शुक्र 06:57- 07:49 बुध 07:49 -08:41 चन्द्र 08:41- 09:33 शनि 09:33 -10:25 बृहस्पति 10:25 -11:18 मंगल 11:18 -12:10 सूर्य 12:10- 13:02 शुक्र 13:02- 13:54 बुध 13:54 -14:46 चन्द्र 14:46 -15:39 शनि 15:39- 16:31 बृहस्पति 16:31 -17:23 🚩होरा, रात मंगल 17:23 -18:31 सूर्य 18:31 -19:39 शुक्र 19:39 -20:47 बुध 20:47- 21:54 चन्द्र 21:54 -23:02 शनि 23:02 -24:10 बृहस्पति 24:10-25:18 मंगल 25:18-26:26 सूर्य 26:26-27:34 शुक्र 27:34-28:42 बुध 28:42-29:50 चन्द्र 29:50-30:57 *🚩उदयलग्न प्रवेशकाल 🚩* वृश्चिक > 05:28 से 08:48 तक धनु > 08:48 से 09:58 तक मकर > 09:58 से 11:30 तक कुम्भ > 11:30 से 13:04 तक मीन > 13:04 से 14:40 तक मेष > 14:40 से 16:10 तक वृषभ > 16:10 से 18:04 तक मिथुन > 18:04 से 20:34 तक कर्क > 20:34 से 22:40 तक सिंह > 22:40 से 00:50 तक कन्या > 00:50 से 03:20 तक तुला > 03:20 से 05:22 तक ======================= *🚩विभिन्न शहरों का रेखांतर (समय)संस्कार* (लगभग-वास्तविक समय के समीप) दिल्ली +10मिनट--------- जोधपुर -6 मिनट जयपुर +5 मिनट------ अहमदाबाद-8 मिनट कोटा +5 मिनट------------ मुंबई-7 मिनट लखनऊ +25 मिनट--------बीकानेर-5 मिनट कोलकाता +54-----जैसलमेर -15 मिनट *नोट*-- दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है। चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार । शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥ रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार । अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥ अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें । उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें । शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें । लाभ में व्यापार करें । रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें । काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है । अमृत में सभी शुभ कार्य करें । *💮दिशा शूल ज्ञान------------- पश्चिम* परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा काजू खाके यात्रा कर सकते है l इस मंत्र का उच्चारण करें-: *शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l* *भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll* *🚩 अग्नि वास ज्ञान -:* *यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,* *चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।* *दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,* *नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।।* *महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्* *नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।* 15 + 1 + 6 + 1 = 23 ÷ 4 = 3 शेष पृथ्वी लोक पर अग्नि वास हवन के लिए शुभ कारक है l *🚩💮 ग्रह मुख आहुति ज्ञान 💮🚩* सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है चन्द्र ग्रह मुखहुति *💮 शिव वास एवं फल -:* 16 + 16 + 5 = 37 ÷ 7 = 2 शेष गौरी सन्निधौ = शुभ कारक *🚩भद्रा वास एवं फल -:* *स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।* *मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।* *💮🚩 विशेष जानकारी 🚩💮* *महर्षि अरविन्द पु.ति. *रसिक माधुरी जयती *महर्षि रमण जयंती *💮🚩💮 शुभ विचार 💮🚩💮* हस्ती स्थूलतनुः सचांकुशवशः कि हस्तिमात्रेकुंशः । दीपे प्रज्वलिते प्रणश्यति तमः किं दीपमात्रं तमः ।। वज्रेणापि हताः पतन्ति गिरयः किं वज्रमात्रन्नगाः । तेजो यस्य विराजते स बलवान्स्थूलेषुकः प्रत्ययः ।। ।।चाo नीo।। हाथी का शरीर कितना विशाल है लेकिन एक छोटे से अंकुश से नियंत्रित हो जाता है. एक दिया घने अन्धकार का नाश करता है, क्या अँधेरे से दिया बड़ा है. एक कड़कती हुई बिजली एक पहाड़ को तोड़ देती है, क्या बिजली पहाड़ जितनी विशाल है. जी नहीं. बिलकुल नहीं. वही बड़ा है जिसकी शक्ति छा जाती है. इससे कोई फरक नहीं पड़ता की आकार कितना है. *🚩💮🚩 सुभाषितानि 🚩💮🚩* गीता -: कर्मयोग अo-3 अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः। यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः॥ कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्‌। तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्‌॥ सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से होती है, वृष्टि यज्ञ से होती है और यज्ञ विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है। कर्मसमुदाय को तू वेद से उत्पन्न और वेद को अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ जान। इससे सिद्ध होता है कि सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित है ॥14-15॥ *💮🚩 दैनिक राशिफल 🚩💮* देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके। नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।। विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे। जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।। 🐏मेष व्यापार-व्यवसाय लाभदायक रहेगा। नौकरी में प्रभाव बढ़ेगा। किसी प्रभावशाली वरिष्ठ व्यक्ति का सहयोग व मार्गदर्शन प्राप्त होगा। शारीरिक कष्ट संभव है। विरोधी सक्रिय रहेंगे। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। प्रसन्नता रहेगी। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकता है। 🐂वृष पार्टी व पिकनिक का कार्यक्रम बन सकता है। यात्रा मनोरंजक रहेगी। बौद्धिक कार्य सफल रहेंगे। कारोबार में वृद्धि होगी। नौकरी में कार्य की प्रशंसा होगी। मनपसंद भोजन का आनंद प्राप्त होगा। शेयर मार्केट व म्युचुअल फंड मनोनुकूल लाभ देंगे। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। ईर्ष्यालु व्यक्तियों से सावधानी आवश्यक है। 👫मिथुन कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। बेवजह चिड़चिड़ापन रह सकता है। धनागम होगा। बकाया वसूली के प्रयास सफल रहेंगे। यात्रा मनोरंजक रहेगी। मित्रों का सहयोग समय पर प्राप्त होगा। प्रसन्नता रहेगी। अज्ञात भय सताएगा। व्यापार ठीक चलेगा। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। प्रमाद न करें। 🦀कर्क कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। वाणी पर नियंत्रण रखें। अप्रत्याशित खर्च सामने आएंगे। कर्ज लेना पड़ सकता है। स्वास्थ्य का पाया कमजोर रहेगा। जल्दबाजी में कोई महत्वपूर्ण निर्णय न लें। व्यापार ठीक चलेगा। मित्रों के साथ समय अच्‍छा व्यतीत होगा। कुसंगति से बचें। धनहानि हो सकती है। 🐅सिंह प्रतिद्वंद्विता में वृद्धि होगी। भूमि व भवन संबंधी योजना बनेगी। स्थायी संपत्ति में वृद्धि के योग हैं। आय में वृद्धि होगी। रोजगार प्राप्ति के प्रयास सफल रहेंगे। भाग्य का साथ मिलेगा। निवेशादि लाभदायक रहेंगे। दुष्टजनों से सावधान रहें। हानि पहुंचा सकते हैं। प्रमाद न करें। 🙎‍♀️कन्या रोजगार प्राप्ति के प्रयास सफल रहेंगे। व्यावसायिक यात्रा लंबी हो सकती है। अप्रत्याशित लाभ के योग हैं। जुए, सट्टे व लॉटरी से दूर रहें। किसी बड़ी समस्या से छुटकारा मिल सकता है। किसी प्रभावशाली व्यक्ति का मार्गदर्शन मिल सकता है। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। ⚖️तुला प्रयास सफल रहेंगे। सामाजिक कार्य करने में रुचि रहेगी। पराक्रम व प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। किसी प्रभावशाली व्यक्ति से परिचय हो सकता है। व्यापार-व्यवसाय लाभदायक रहेगा।। नौकरी में कार्य की प्रशंसा होगी। 🦂वृश्चिक दूर से शुभ समाचार प्राप्त होंगे। पारिवारिक मित्र व संबंधी अतिथियों के रूप में घर आ सकते हैं। वाणी पर नियंत्रण रखें। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। कारोबार ठीक चलेगा। प्रमाद न करें। बुरे लोगों की पहचान जरूरी है। उनसे दूर रहें। 🏹धनु घर-परिवार के किसी सदस्य के स्वास्थ्‍य की चिंता रहेगी। दौड़धूप होगी। विवाद से क्लेश होगा। किसी व्यक्ति के व्यवहार से मन को ठेस पहुंच सकती है। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। आय बनी रहेगी। धनहानि की आशंका बनती है। दूर से दु:खद समाचार प्राप्त होगा, धैर्य रखें। 🐊मकर किसी व्यक्ति के व्यवहार से लगेगा कि अपमान हुआ है। नई योजना बनेगी। कार्यस्‍थल पर परिवर्तन पर विचार हो सकता है। व्यापार ठीक चलेगा। घर-परिवार में सुख-शांति रहेगी। आंखों को चोट व रोग से बचाएं। वाणी में हल्के शब्दों के प्रयोग से बचें। स्वास्थ्‍य कमजोर रह सकता है। 🍯कुम्भ ऐश्वर्य के साधनों पर व्यय होगा। धन प्राप्ति सुगम तरीके से होगी। यात्रा मनोरंजक रहेगी। व्यापार लाभदायक रहेगा। मित्रों का सहयोग प्राप्त होगा। भाइयों से मतभेद दूर होकर स्थिति अनुकूल रहेगी। तीर्थयात्रा की योजना बनेगी। सत्संग का लाभ मिलेगा। चिंता तथा तनाव रहेंगे। 🐟मीन वाहन व मशीनरी के प्रयोग में सावधानी रखें। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। पुराना रोग उभर सकता है। विवाद को बढ़ावा न दें। नकारात्मकता रहेगी। व्यापार ठीक चलेगा। आय में निश्चितता रहेगी। दूसरों पर भरोसा न करें। आशंका-कुशंका के चलते कोई बड़ी गलती हो सकती है। 🙏आपका दिन मंगलमय हो🙏 🌺🌺🌺🌺🙏🌺🌺🌺🌺 #🕉️सनातन धर्म🚩 #श्री हरि #आज का राशिफल / पंचाग ☀