दुर्गा भाभी (दुर्गावती देवी) भारत की स्वतंत्रता संग्राम की एक निडर क्रांतिकारी थीं।
वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) की सक्रिय सदस्य थीं और सशस्त्र क्रांति में भाग लेने वाली कुछ महिला क्रांतिकारियों में से एक थीं।
उनके बारे में मुख्य बातें:
असली नाम: दुर्गावती देवी।
प्रसिद्धि का कारण: उनके पति, भगवती चरण वोहरा, HSRA के सदस्य थे, इसलिए संगठन के अन्य सदस्य उन्हें 'भाभी' कहकर पुकारते थे, और वह दुर्गा भाभी के नाम से मशहूर हो गईं।
महत्वपूर्ण भूमिकाएँ:
वह भगत सिंह को जॉन पी. सॉन्डर्स की हत्या के बाद लाहौर से भेष बदलकर, उनकी पत्नी बनकर, सकुशल कलकत्ता भागने में मदद करने के लिए सबसे ज्यादा जानी जाती हैं।
उन्होंने चंद्रशेखर आजाद और अन्य क्रांतिकारियों को हथियार, धन और गुप्त सूचनाएं पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने 1930 में पंजाब के पूर्व गवर्नर लॉर्ड हेली की हत्या का प्रयास भी किया था।
वह जेल में बंद क्रांतिकारियों के परिवारों का भी समर्थन करती थीं।
उपनाम: उन्हें 'द अग्नि ऑफ इंडिया' (The Agni of India) भी कहा जाता था।
स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने राजनीतिक जीवन से दूरी बना ली और गाजियाबाद में एक सामान्य नागरिक की तरह जीवन बिताया, जहाँ उन्होंने गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल भी खोला। उनका निधन 15 अक्टूबर 1999 को 92 वर्ष की आयु में हुआ। #दुर्गा भाभी जी #aaj ki taaja khabar #🗞breaking news🗞 #🗞️🗞️Latest Hindi News🗞️🗞️
श्री महाराजा अजमीढ़ देव जी (Ajmeedh Dev Ji) मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदि पुरुष (पितृ-पुरुष) और आराध्य माने जाते हैं।
उनके बारे में कुछ मुख्य जानकारी इस प्रकार है:
वंश और काल: वे चंद्रवंश की 28वीं पीढ़ी में त्रेतायुग के अंत में जन्मे थे। उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का समकालीन और मित्र भी बताया जाता है।
पूर्वज: उनके दादा महाराजा श्रीहस्ति थे, जिन्होंने प्रसिद्ध हस्तिनापुर की स्थापना की थी, और उनके पिता महाराजा विकुंठन थे।
कला और व्यवसाय: महाराजा अजमीढ़ एक महान क्षत्रिय राजा होने के साथ-साथ उच्च कोटि के कलाकार भी थे। उन्हें सोने-चांदी के आभूषण, खिलौने और बर्तन बनाने का शौक था। यही शौक बाद में उनकी पीढ़ियों द्वारा स्वर्णकार (सुनार) व्यवसाय के रूप में अपनाया गया।
नगर की स्थापना: ऐसा माना जाता है कि उन्होंने ही अजमेर (प्राचीन नाम अजयमेरू) नगर की नींव रखी थी और मेवाड़ की स्थापना की थी।
जयंती: उनकी जयंती प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा के दिन मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज द्वारा पूरे देश में बड़े उत्साह और धार्मिक भावनाओं के साथ मनाई जाती है।
महाराजा अजमीढ़ देव जी को धर्म-कर्म में विश्वास रखने वाले, पराक्रमी राजा और एक ऐसी परंपरा को जन्म देने वाले व्यक्तित्व के रूप में याद किया जाता है जिसने कला और कारीगरी को एक गौरवशाली व्यवसाय में बदल दिया।
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विश्व कपास दिवस (World Cotton Day) हर साल 7 अक्टूबर को मनाया जाता है।
महत्व और उद्देश्य:
यह दिवस कपास क्षेत्र की दृश्यता बढ़ाने और आर्थिक विकास, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और गरीबी उन्मूलन में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है।
कपास एक वैश्विक वस्तु है जो लाखों लोगों की आजीविका का साधन है, विशेषकर कम विकसित देशों में।
यह दिन कपास किसानों और कपास उद्योग से जुड़े सभी हितधारकों (जैसे, प्रोसेसर, शोधकर्ता और व्यवसायों) के योगदान को पहचानने का अवसर प्रदान करता है।
इसका उद्देश्य कपास के टिकाऊ उत्पादन (sustainable production) और कपास मूल्य श्रृंखला (value chain) के समक्ष आने वाली चुनौतियों के प्रति जागरूकता बढ़ाना भी है।
इतिहास:
पहला विश्व कपास दिवस 7 अक्टूबर 2019 को जिनेवा में विश्व व्यापार संगठन (WTO) द्वारा आयोजित किया गया था।
इसकी पहल बेनिन, बुर्किना फासो, चाड और माली (Cotton-4 देश) ने की थी, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में आधिकारिक प्रस्ताव रखा था।
अगस्त 2021 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने आधिकारिक तौर पर हर साल 7 अक्टूबर को विश्व कपास दिवस के रूप में घोषित किया। #विश्व कपास दिवस की हार्दिक शुभकामनाए #विश्व कपास दिवस #aaj ki taaja khabar #🗞breaking news🗞 #🗞️🗞️Latest Hindi News🗞️🗞️
मीराबाई जी भारतीय इतिहास की एक अत्यंत प्रसिद्ध कृष्ण भक्त कवयित्री और संत थीं। उनका जीवन और उनकी भक्ति आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है।
यहाँ उनके बारे में कुछ मुख्य जानकारी दी गई है:
मीराबाई जी का परिचय
समय: मीराबाई 16वीं शताब्दी (लगभग 1498-1547 ई.) की थीं।
जन्म और परिवार: उनका जन्म राजस्थान के मेड़ता के पास कुड़की गाँव में एक राजपूत राजपरिवार में हुआ था। उनके पिता रतन सिंह थे और वह राव दूदा जी की पोती थीं।
विवाह: उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज से हुआ था, जो महाराणा सांगा के पुत्र थे।
गुरु: संत रैदास (रविदास) को उनका गुरु माना जाता है।
भक्ति: मीराबाई श्री कृष्ण की अनन्य भक्त थीं। वह कृष्ण को अपना पति, प्रियतम और आराध्य मानती थीं और उनके प्रति उनका प्रेम माधुर्य भाव का था।
जीवन और संघर्ष
वैधव्य: विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति भोजराज का देहांत हो गया।
राजसी जीवन का त्याग: पति की मृत्यु के बाद, राजपरिवार के रीति-रिवाजों और सामाजिक बंधनों के बावजूद, मीरा की कृष्ण भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। उन्होंने राजमहल के सुख-सुविधाओं का त्याग कर दिया और अपना अधिकांश समय कृष्ण के मंदिर में भजन-कीर्तन में बिताने लगीं।
विरोध: उनके इस व्यवहार को राजपरिवार और समाज ने स्वीकार नहीं किया, और उन्हें अपने ससुराल पक्ष से बहुत विरोध और उत्पीड़न झेलना पड़ा।
लोकप्रिय किंवदंतियाँ: उनकी भक्ति की परीक्षा लेने और उन्हें रोकने के कई प्रयास किए गए। किंवदंतियों के अनुसार, उन्हें विष का प्याला भेजा गया, जिसे उन्होंने कृष्ण का नाम लेकर पी लिया और वह अमृत बन गया।
साहित्यिक योगदान और विरासत
रचनाएँ: मीराबाई ने पद और भजन के रूप में अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। उनके पद उनके गहन विरह (जुदाई) और प्रेम को दर्शाते हैं।
भाषा: उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग मिलता है।
भक्ति आंदोलन: वह मध्यकालीन भारत के भक्ति आंदोलन की एक महत्वपूर्ण संत-कवयित्री थीं, जिन्होंने प्रेम और भक्ति को ईश्वर से जुड़ने का मार्ग बताया।
अंतिम समय: माना जाता है कि अपने जीवन के अंतिम वर्षों में वह वृंदावन और फिर द्वारका चली गईं, जहाँ वह कृष्ण की भक्ति में लीन रहीं। कुछ मान्यताओं के अनुसार, वह द्वारका में कृष्ण की मूर्ति में विलीन हो गईं।
मीराबाई का जीवन अटूट प्रेम, साहस और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। उनकी रचनाएँ आज भी भारतीय संगीत और साहित्य का एक अमूल्य हिस्सा हैं। #मीराबाई जी #मीराबाई जी #🗞️🗞️Latest Hindi News🗞️🗞️ #🗞breaking news🗞 #aaj ki taaja khabar
गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के दसवें और अंतिम गुरु थे। वे एक महान आध्यात्मिक गुरु, निडर योद्धा, दार्शनिक और कवि थे।
यहाँ उनके बारे में कुछ मुख्य बातें दी गई हैं:
जन्म: उनका जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना, बिहार में हुआ था।
पिता और माता: उनके पिता सिखों के नौवें गुरु, श्री गुरु तेग बहादुर जी और माता का नाम माता गूजरी था।
बचपन का नाम: उनके बचपन का नाम गोबिंद राय था।
गुरु पद: उन्हें अपने पिता की शहादत के बाद 11 नवंबर 1675 को दसवां गुरु बनाया गया।
खालसा पंथ की स्थापना: सन् 1699 में बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की। उन्होंने "पंच प्यारे" (पाँच प्रिय) को अमृत चखाकर उन्हें दीक्षित किया और फिर स्वयं भी अमृत छक कर गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह बन गए।
पंच ककार: उन्होंने खालसा सिखों के लिए पाँच प्रतीकों को अनिवार्य किया, जिन्हें पंच ककार कहा जाता है:
केश (बिना कटे बाल)
कंघा (लकड़ी का कंघा)
कड़ा (लोहे का कंगन)
कृपाण (एक छोटी तलवार)
कच्छा (घुटने तक का वस्त्र)
योगदान: वे एक उत्कृष्ट लेखक और विद्वान भी थे। उन्हें 'संत सिपाही' (Saint Soldier) के रूप में जाना जाता है क्योंकि उन्होंने अन्याय और अत्याचार के खिलाफ संघर्ष किया।
अंतिम गुरु: उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का अंतिम और शाश्वत गुरु घोषित किया।
निधन: उनका निधन 7 अक्टूबर 1708 को नांदेड़, महाराष्ट्र में हुआ। #गुरु गोबिंद सिंह जी #गुरु गोबिंद सिंह जी #aaj ki taaja khabar #🗞️🗞️Latest Hindi News🗞️🗞️ #🗞breaking news🗞
गुरु गोबिंद सिंह जी ने धर्म की रक्षा और समाज में समानता लाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
महर्षि वाल्मीकि भारतीय इतिहास और साहित्य में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उन्हें आदिकवि (प्रथम कवि) के रूप में जाना जाता है।
उनके बारे में कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं:
रामायण के रचयिता: महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में रामायण महाकाव्य की रचना की थी। यह हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख और पूजनीय ग्रंथों में से एक है, जिसमें भगवान श्री राम के जीवन चरित्र का वर्णन है।
आदिकवि: संस्कृत साहित्य में उन्हें आदिकवि की उपाधि प्राप्त है, क्योंकि माना जाता है कि उन्होंने ही संस्कृत के प्रथम श्लोक की रचना की थी।
डाकू रत्नाकर से महर्षि: प्रचलित कथाओं के अनुसार, महर्षि बनने से पहले उनका नाम रत्नाकर था और वे डाकू थे। देवर्षि नारद से मिलने के बाद, उनका हृदय परिवर्तन हुआ और उन्होंने कठोर तपस्या की।
वाल्मीकि नाम का अर्थ: कहा जाता है कि उनकी तपस्या के दौरान, उनके शरीर के चारों ओर दीमकों ने अपनी बांबी (दीमक का टीला) बना ली थी। संस्कृत में बांबी को वाल्मीक कहते हैं, और इसी कारण उन्हें वाल्मीकि के नाम से जाना जाने लगा।
राम-सीता से संबंध: वनवास के दौरान माता सीता ने अपना अंतिम समय महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में व्यतीत किया था। भगवान राम के दोनों पुत्रों लव और कुश का जन्म वहीं हुआ था और महर्षि वाल्मीकि ही उनके गुरु थे।
क्या आप उनके जीवन के किसी खास पहलू या रामायण के बारे में और जानना चाहेंगे? #महर्षि वाल्मीकि जी #महर्षि वाल्मीकि जी #🗞breaking news🗞 #🗞️🗞️Latest Hindi News🗞️🗞️ #aaj ki taaja khabar
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