Kanchan Kumar Ray
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💡 प्रश्न 1: श्रीराम ने बाली पर पीछे से वार क्यों किया? 🏹 यह एक ऐसा प्रश्न है जिस पर अक्सर बहस होती है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने बाली जैसे वीर योद्धा का वध छुपकर क्यों किया? गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में इसका उत्तर दिया है। बाली ने अपने छोटे भाई सुग्रीव की पत्नी को बलपूर्वक अपने पास रखा था। श्रीराम के अनुसार, छोटे भाई की पत्नी, बहन, पुत्र की पत्नी और बेटी, ये चारों समान हैं। इन पर बुरी दृष्टि डालने वाले का वध करने में कोई पाप नहीं है। बाली अधर्मी था और उसे दंड देना आवश्यक था। इसलिए श्रीराम ने बाली का वध किया। प्रश्न 2: सीता ने स्वयंवर के जरिए ही राम को क्यों चुना? 👸 स्वयंवर का अर्थ है कन्या द्वारा स्वयं अपना वर चुनना। प्राचीन भारत में यह प्रथा प्रचलित थी। सीता का स्वयंवर भी इसी प्रथा का एक उदाहरण है। राजा जनक ने सीता के लिए एक शर्त रखी थी कि जो कोई भी भगवान शिव के धनुष को उठा सकेगा, वही सीता से विवाह करेगा। श्रीराम ने यह शर्त पूरी की और सीता ने उन्हें अपना पति चुना। यह स्वयंवर तत्कालीन समाज में स्त्री के सम्मान और स्वतंत्रता का प्रतीक था। प्रश्न 3: भरत राजगद्दी पर क्यों नहीं बैठे? 👑 भरत का त्याग रामायण का एक अत्यंत प्रेरणादायक प्रसंग है। कैकेयी के वरदान के कारण श्रीराम को वनवास जाना पड़ा और भरत को राजगद्दी मिली। लेकिन भरत ने राज्य स्वीकार नहीं किया। उन्होंने श्रीराम की खड़ाऊं को राजगद्दी पर रखकर राज्य चलाया और स्वयं नंदीग्राम में तपस्वी का जीवन व्यतीत किया। भरत का यह त्याग भातृ प्रेम का अद्वितीय उदाहरण है। प्रश्न 4: मंथरा का श्रीराम से क्या बैर था? 😠 मंथरा कैकेयी की दासी थी। उसने ही कैकेयी को भड़काया था जिसके कारण श्रीराम को वनवास जाना पड़ा। मंथरा का श्रीराम से कोई व्यक्तिगत बैर नहीं था। गोस्वामी तुलसीदासजी के अनुसार, देवताओं ने मंथरा की मति फेर दी थी ताकि श्रीराम वन जाएं और राक्षसों का वध कर सकें। प्रश्न 5: श्रवण कुमार की कथा का क्या महत्व है? 👨‍👩‍👦 श्रवण कुमार मातृ-पितृ भक्ति का एक आदर्श उदाहरण है। वह अपने नेत्रहीन माता-पिता को कावड़ में बैठाकर तीर्थ यात्रा पर ले गया था। एक दिन जब वह नदी से पानी भर रहा था, तो राजा दशरथ ने भूलवश उसे हिरण समझकर तीर मार दिया। श्रवण कुमार की मृत्यु से दुखी होकर उसके माता-पिता ने राजा दशरथ को श्राप दिया कि उनकी मृत्यु भी पुत्र वियोग में ही होगी। यह कथा हमें माता-पिता की सेवा का महत्व सिखाती है। प्रश्न 6: राम सेतु निर्माण में पत्थर कैसे तैर गए? 🌊 राम सेतु का निर्माण रामायण का एक चमत्कारिक प्रसंग है। नल और नील नामक दो वानरों को एक ऋषि का आशीर्वाद प्राप्त था कि उनके स्पर्श से पत्थर पानी में तैरने लगेंगे। इसी आशीर्वाद के कारण राम सेतु का निर्माण संभव हो सका। प्रश्न 7: रावण के दस सिर क्यों थे? 👹 रावण के दस सिर उसके दस विकारों के प्रतीक थे - काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, अविद्या, मन और बुद्धि। रावण अत्यंत ज्ञानी और बलशाली था, लेकिन इन विकारों के कारण उसका पतन हुआ। प्रश्न 8: लव-कुश और हनुमान के बीच युद्ध क्यों हुआ? ⚔️ लव और कुश श्रीराम और सीता के पुत्र थे। उन्होंने अनजाने में श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा पकड़ लिया था। घोड़े की रक्षा के लिए हनुमान सहित पूरी राम सेना लव-कुश से लड़ने आई। लव-कुश अत्यंत बलशाली थे और उन्होंने हनुमान सहित सभी योद्धाओं को परास्त कर दिया। निष्कर्ष: रामायण न केवल एक महाकाव्य है, बल्कि यह जीवन जीने की कला भी सिखाता है। इसके पात्र और घटनाएँ हमें धर्म, अधर्म, प्रेम, त्याग और कर्तव्य का पाठ पढ़ाती हैं। जय श्री राम! 🙏 #🙏भक्ती सुविचार📝 #bhakti #🚩रामायण टीव्ही व्हिडीओ😍 #🔴🚩 सनातन हिंदू धर्म.
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🔥 तर्कों के बाण और बलदेव की ढाल: जब गौड़ीय वेदांत ने राजसभा को स्तब्ध कर दिया 🔥 एक बार जयपुर की राजसभा में एक प्रख्यात नैयायिक (तर्कशास्त्री) पंडित ने खड़े होकर चुनौती दी: "हे नवीन संन्यासी! आपने वेदों के श्लोक तो सुना दिए, लेकिन केवल वेदों से काम नहीं चलेगा। महर्षि कपिल (सांख्य दर्शन) और महर्षि गौतम (न्याय दर्शन) ने ईश्वर को स्वीकार नहीं किया या प्रकृति को ही सब कुछ माना। क्या इन ऋषियों की बातें झूठी हैं? आपके सिद्धांत तो महाजनों के वाक्यों से 'विरोध' (Conflict) कर रहे हैं!" श्रील बलदेव विद्याभूषण जी ने मंद मुस्कान के साथ गोविंद जी का ध्यान किया और वेदांत सूत्र के दूसरे अध्याय का भाष्य आरंभ किया। 🛡️ 1. शुष्क तर्क की निर्थकता (तर्कप्रतिष्ठानात्) बलदेव जी बोले, "हे पंडितगण! आप मनुष्यों द्वारा बनाए गए 'लॉजिक' या सूखे तर्कों पर भरोसा कर रहे हैं? तर्क तो नदी के किनारे जैसा अस्थिर है—आज है, कल नहीं।" उन्होंने वेदांत सूत्र का वह प्रसिद्ध सूत्र फेंका जिसने तर्कवादियों को स्तब्ध कर दिया: 📜 "तर्कप्रतिष्ठानात् अपि अन्यथानुमेयरिति चेत् एवमप्यनिर्मोक्षप्रसंगः" (२/१/११) (तर्क की कोई प्रतिष्ठा या स्थायित्व नहीं है। एक तार्किक जो स्थापित करता है, दूसरा उसका खंडन कर देता है। इसलिए केवल तर्क से परम सत्य को नहीं जाना जा सकता।) उदाहरण: आज आप जिस तर्क से सिद्ध कर रहे हैं कि ईश्वर नहीं है, कल आपसे बड़ा कोई पंडित आकर सिद्ध कर देगा कि आपका तर्क गलत है। मनुष्य की बुद्धि सीमित (Finite) है, और ईश्वर असीमित (Infinite)। सीमित बुद्धि से असीमित को नहीं मापा जा सकता। इसलिए 'शब्द प्रमाण' या शास्त्र ही अंतिम सत्य है। ✨ 2. क्या जगत मिथ्या (Illusion) है? (मायावाद खंडन) अब अद्वैतवादी पंडित क्रोधित हो उठे। उन्होंने अपना ब्रह्मास्त्र चलाया: "यदि ईश्वर ने जगत बनाया और वह स्वयं जगत बन गया, तो वह टूटकर बिखर जाएगा! जैसे दूध दही बन जाने पर फिर दूध नहीं रहता, वैसे ही ब्रह्म यदि जगत बना तो ब्रह्म नष्ट हो जाएगा! इसलिए यह जगत 'माया' या मिथ्या है।" सभा में सन्नाटा छा गया। बलदेव विद्याभूषण ने तब अपने दर्शन का सबसे शक्तिशाली सिद्धांत 'शक्ति-परिणामवाद' प्रस्तुत किया। 📜 सूत्र: "श्रुतेस्तु शब्दमूलत्वात्" (२/१/२७) (शास्त्रों में कहा गया है कि ब्रह्म में अचिंत्य शक्ति है, इसलिए वह बिना विकृत हुए परिणाम या सृष्टि कर सकता है।) 💎 चिंतामणि का उदाहरण: बलदेव जी बोले, "हे मायावादियों! आप दूध-दही का उदाहरण क्यों देते हैं? चिंतामणि (Touchstone) को देखिए। वह लोहे को छूकर सोना बना देती है, ढेर सारा सोना पैदा करती है, लेकिन अपने वजन या रूप में जरा भी नहीं बदलती। भगवान श्रीकृष्ण उसी चिंतामणि के समान हैं। उनकी 'अचिंत्य शक्ति' से उन्होंने यह जगत बनाया है। जगत सत्य है, लेकिन वे स्वयं उसमें विकारग्रस्त नहीं हुए। वे जैसे थे, वैसे ही हैं।" घोषणा: "जगत माया नहीं, जगत हरि की शक्ति है।" अणु 3. क्या जीव ही ब्रह्म है? (अंशो नानाव्यपदेशात्) विपक्ष ने अंतिम तर्क दिया: "ठीक है, जगत सत्य है। लेकिन जीवात्मा (हम) और परमात्मा (ईश्वर) तो एक ही हैं। जैसे घड़े का आकाश और बाहर का आकाश एक है, शरीर टूटते ही हम सब ब्रह्म हो जाएंगे।" बलदेव जी ने तीव्र प्रतिवाद किया और सिद्ध किया कि जीव कभी भगवान नहीं हो सकता। 📜 सूत्र: "अंशो नानाव्यपदेशात्..." (२/३/४३) (जीव भगवान का नित्य 'अंश' है। अंश कभी भी पूर्ण के बराबर नहीं हो सकता।) उदाहरण: "क्या सूर्य और सूर्य की किरण एक हैं? किरण सूर्य का अंश है, लेकिन किरण कभी सूर्य नहीं हो सकती। जीव भगवान का दास है, वह अणु (Atomic) है, और भगवान विभु (Infinite) हैं। जीव नित्य भिन्न है, और नित्य भगवान से जुड़ा हुआ भी है। यही 'अचिंत्यभेदाभेद' तत्त्व है।" 🏆 विजय और सिद्धांत बलदेव विद्याभूषण जी ने सिद्ध कर दिया कि: ✅ शुष्क तर्क से ईश्वर नहीं मिलते। ✅ जगत झूठी माया नहीं, भगवान की सत्य सृष्टि है। ✅ भगवान जगत बनाकर भी अपने स्वरूप में अटल हैं। महाराज जयसिंह मुग्ध होकर बोले, "हे आचार्य! आपने आज सारे विरोध मिटा दिए। आज सिद्ध हुआ कि गौड़ीय वैष्णव दर्शन केवल भावनाओं का विषय नहीं, सुदृढ़ तर्कों पर स्थापित है।" बलदेव जी ने गोविंद जी को इसका श्रेय देते हुए कहा: "जिन्होंने सभी विरोधों को समाप्त कर परम तत्त्व का निर्णय कराया, उन अद्भुतकर्मा श्री गोविंद की मैं वंदना करता हूँ।" इस प्रकार 'अविरोध अध्याय' में श्रील बलदेव विद्याभूषण जी ने दार्शनिक बाधाओं के पहाड़ को चूर्ण कर भक्ति का राजपथ प्रशस्त किया। जय श्रीराधे-गोविंद! जय गौड़ीय वेदांत! 🙏🌸 #sharechart #story #🙏 प्रेरणादायक बॅनर #🙏भक्ती सुविचार📝
sharechart - तर्कों के बाण और बलदेव की ढाल गौड़ीय वेदांत की विजय - अचिंत्यभेदाभेद तत्त्व अचिंत्य शक्ति तर्कों के बाण और बलदेव की ढाल गौड़ीय वेदांत की विजय - अचिंत्यभेदाभेद तत्त्व अचिंत्य शक्ति - ShareChat
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रामायन - शिव धनुष भंगः एक दैवीय रहस्य { @ಖnuಖne महादेव की इच्छा, श्रीराम के हाथों पूर्ण हुई। शिव धनुष भंगः एक दैवीय रहस्य { @ಖnuಖne महादेव की इच्छा, श्रीराम के हाथों पूर्ण हुई। - ShareChat
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🙏 प्रेरणादायक बॅनर - ईश्वर का प्रणद है दुःख दुःख तो ईश्वर का बुलावा है। ईश्वर का प्रणद है दुःख दुःख तो ईश्वर का बुलावा है। - ShareChat