क्या पति द्वारा अपनी पत्नी (जो गृहिणी थी) के नाम पर खरीदी गई संपत्ति को "व्यक्तिगत संपत्ति" माना जाएगा या "संयुक्त पारिवारिक संपत्ति", और क्या उसमें पहली पत्नी के बच्चों का भी अधिकार होगा?
🔍 कानूनी स्थिति का सारांश:
यदि पत्नी (दूसरी पत्नी) के पास अपनी कोई स्वतंत्र आय नहीं थी और संपत्ति पति द्वारा खरीदी गई थी, तो इसे पति की संपत्ति माना जाएगा, भले ही वह पत्नी के नाम पर क्यों न हो।
इसका अर्थ यह है कि ऐसी संपत्ति, जब तक यह साबित न हो कि पत्नी ने अपनी आय से खरीदी है, पति की मानी जाएगी, और पति के सभी वैध वारिसों को उसमें विरासत का अधिकार होगा — चाहे वे पहली पत्नी से हों या दूसरी से।
⚖️ प्रासंगिक निर्णय के मुख्य बिंदु:
हाई कोर्ट ने माना कि अगर कोई पति अपनी पत्नी (जो गृहिणी है) के नाम पर संपत्ति खरीदता है, तो यह बेनामी लेनदेन नहीं है, बल्कि इसे माना जाएगा कि पति ने अपने स्रोत से संपत्ति खरीदी और पत्नी को दिया।
जब कोई स्वतंत्र आय का स्रोत नहीं है, तो यह साबित करना दूसरी पत्नी की जिम्मेदारी होगी कि संपत्ति उसकी अपनी है।
बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम, 1988 की धारा 2(9)(A)(b) भी इस बात की अनुमति देती है कि पति अपने परिवार के सदस्य के नाम संपत्ति खरीद सकता है, और इसे बेनामी नहीं माना जाएगा।
✅ आपके केस में उत्तर:
चूँकि संपत्ति पति ने अपने पैसे से खरीदी और पत्नी (दूसरी) के नाम रजिस्टर्ड कराई, और अगर यह साबित हो जाए कि दूसरी पत्नी की कोई स्वतंत्र आय नहीं थी, तो वह संपत्ति संयुक्त पारिवारिक संपत्ति मानी जाएगी।
🔹 इसलिए, पहली पत्नी का बेटा (संतान) उस संपत्ति में कानूनी रूप से हिस्सेदार है।
🔹 दूसरी पत्नी केवल अपने बच्चों के नाम पर पूरी संपत्ति नहीं कर सकती।
🔹 यदि दूसरी पत्नी उसे हड़पना चाहती है, तो पहली पत्नी का बेटा कोर्ट में वाद दायर कर सकता है — "विरासत का दावा" करते हुए।
🛑 ध्यान दें:यदि दूसरी पत्नी ने बाद में उस संपत्ति को अपने बच्चों या किसी और के नाम कर दिया है (जैसे उपहार पत्र/गिफ्ट डीड के ज़रिए), तो वह चुनौती के दायरे में आएगा, क्योंकि वह पूर्ण स्वामिनी नहीं थी।
📝 निष्कर्ष:
संपत्ति पति की मानी जाएगी।
सभी वैध संतानों (पहली और दूसरी पत्नी से) को बराबर का हिस्सा मिलेगा।
दूसरी पत्नी की सिर्फ नाम पर मौजूदगी, उसे एकमात्र मालिक नहीं बनाती। #कानून