एस्ट्रो मनोज कौशिक बहल यंत्र मंत्र तंत्र विशेषज्ञ
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#🔯ज्योतिष #🔯वास्तु दोष उपाय #🔯नक्षत्रों के प्रभाव✨ #✡️सितारों की चाल🌠 #🔯दैनिक वास्तु टिप्स✅
🔯ज्योतिष - शादी में टेंट वाले 1लाख कैटरिंग वाले २लाख डीजे वाला २०हजार पूरे दिन पेट तुम्हारी शादी कराने 9 1100,2100 = वाला ब्राह्मण अगर जाये तो लोग कहते है अरे पंडित जी ন নী লুৎ লিমা गजब है भाई गजब शादी में टेंट वाले 1लाख कैटरिंग वाले २लाख डीजे वाला २०हजार पूरे दिन पेट तुम्हारी शादी कराने 9 1100,2100 = वाला ब्राह्मण अगर जाये तो लोग कहते है अरे पंडित जी ন নী লুৎ লিমা गजब है भाई गजब - ShareChat
#📕लाल किताब उपाय🔯 #🔯ग्रह दोष एवं उपाय🪔 #🐍कालसर्प दोष परिहार #🌟देखिए खास ज्योतिष उपाय #✡️ज्योतिष समाधान 🌟
📕लाल किताब उपाय🔯 - शादी में टेंट वाले 1लाख कैटरिंग वाले २लाख डीजे वाला २०हजार पूरे दिन पेट तुम्हारी शादी कराने 9 1100,2100 = वाला ब्राह्मण अगर जाये तो लोग कहते है अरे पंडित जी ন নী লুৎ লিমা गजब है भाई गजब शादी में टेंट वाले 1लाख कैटरिंग वाले २लाख डीजे वाला २०हजार पूरे दिन पेट तुम्हारी शादी कराने 9 1100,2100 = वाला ब्राह्मण अगर जाये तो लोग कहते है अरे पंडित जी ন নী লুৎ লিমা गजब है भाई गजब - ShareChat
#🔯ज्योतिष #🔯वास्तु दोष उपाय #✡️सितारों की चाल🌠 #🔯नक्षत्रों के प्रभाव✨ #🔯दैनिक वास्तु टिप्स✅ प्रेत बाधा निवारण पूजा – क्या होता है प्रेत बाधा दोष और कैसे होती है इसकी पूजा संसार में सकारात्‍मक शक्‍तियां हैं तो नकारात्‍मक भी मौजूद हैं। आप मानें या ना मानें लेकिन हमारे आसपास भूत-प्रेत भी मौजूद होते हैं और ये कई बार मनुष्‍य के शरीर पर कब्‍जा कर लेते हैं। इसके पीछे उस आत्मा की कुछ अतृप्त इच्छाएं भी हो सकती हैं, इसके अलावा अकाल मृत्यु भी एक वजह है, जिसकी वजह से आत्मा नया जन्म नहीं ले पाती और मृत्यु लोक में ही भटकती रह जाती है। प्रेत बाधा निवारण पूजा अगर आपकी कुंडली में प्रेत बाधा दोष है तो आपके शरीर पर किसी प्रेत का साया हो सकता है। जब किसी व्यक्ति पर बुरी आत्मा का साया होता है तो उसे काफी प्रताड़ना और दुःख सहना पड़ता है। भूत प्रेत की बाधा से बचने के लिए प्रेत बाधा दोष निवारण पूजा ही एकमात्र उपाय हैं, विधिपूर्वक पूजा करने पर भूत-प्रेत और ऊपरी बाधा से जल्दी ही मुक्ति मिलती है। विश्व के लगभग सभी धर्म अच्छी और बुरी आत्माएं होने की बात को स्वीकार करते हैं। हिन्दू धर्म तथा ज्योतिषी विज्ञान के अनुसार बुरी आत्माएं जब शरीर में प्रवेश करती हैं तो वह जीव को काफी प्रताड़ना देती हैं, इसलिए ऊपरी बाधा के लक्षण जानने के बाद उसके निवारण हेतु प्रेत बाधा निवारण पूजा अवश्य करवानी चाहिए। कुंडली के आधारपर प्रेत बाधा की कैसे करें पहचान – कुंडली में प्रथम भाव में चन्द्र के साथ राहु की युति होने पर एवं पंचम और नवम भाव में कोई क्रूर ग्रह स्थित हो तो उस जातक पर भूत-प्रेत, पिशाच या बुरी आत्माओं का प्रभाव रहता है। इसके अलावा गोचर के दौरान भी यही स्थिति रहने पर प्रेत बाधा से पीडित होना निश्‍चित है। – यदि किसी कुण्डली में शनि, राहु, केतु या मंगल में से कोई भी ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसे लोग भी भूत-प्रेत बाधा या पिशाच या ऊपरी हवा आदि से परेशान रहते हैं। – यदि किसी की कुण्डली में शनि-मंगल-राहु की युति हो तो उसे भी ऊपरी बाधा, प्रेत, पिशाच या भूत बाधा तंग करती है। – ज्योतिष के अनुसार राहु की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा हो और चंद्र दशापति राहु से 6, 8 या 12 वें भाव में बलहीन हो, तो व्यक्ति प्रेत बाधा दोष से पीड़ित होता है। अन्य लक्षण स्वभाव में बदलाव – जो जातक प्रेत-बाधा से पीड़ित है वह अव्यवहारिक, मूर्खतापूर्ण बातें करने लगता है तथा उसके स्वभाव में भी पल पल में परिवर्तन देखने को मिलता है। जब तक इस दोष के निवारण हेतु पूजा न की जाए व्यक्ति को इस बाधा से छुटकारा नहीं मिल सकता। आँखों से बातें – भूत-प्रेत बाधा से पीड़ित जातक ज्यादातर आँखों से ही बाते करता है और उसकी आँखे सुर्ख लाल हो जाती है, जिसका प्रभाव दूसरों पर भी पड़ता है, ऐसे व्यक्तियों को देखकर अन्य लोगों के बीच भी डर की भावना उत्पन्न होती है। शारीरिक दुर्घटना – प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति जोर-जोर से सांसे लेने लगता है, बार बार वह अपने ही शरीर को हानि पहुँचाने का प्रयास करता है, जिसके कारण कई बार वह चोटिल भी होता है, इस बाधा के प्रकोप से जातक काफी कमज़ोर हो जाता है और उसे गन्दा रहना अच्छा लगता है, उसके शरीर से दुर्गन्ध आने लगती है और वह एकांत में रहना पसंद करता है। इसके प्रभाव में आने वाला जातक चीखता-चिल्लाता है, रोने लगता है और इधर-उधर भागने लगता है, इस तरह की दिक्कतों से बचने के लिए जल्द से जल्द प्रेत बाधा निवारण पूजा करवानी चाहिए। सामान्यतः इस बाधा के कारण स्रियाँ प्रभावित हो जाती है, इस प्रेत बाधाओं की शक्ति से प्रभावित स्त्री रोती और चिल्लाती है और कभी-कभी बेहोश भी हो जाती है, पीड़ित स्त्री के शरीर में ज़ोर से दर्द होता है और शरीर कांपने लगता है तथा वह अपना पूरा शरीर छोड़ देती है और दुर्घटनाग्रस्त होती है। दरिद्रता में जीवनयापन – इस दोष से प्रभावित व्‍यक्‍ति को नर्क जैसा जीवन बिताना पड़ता है। ना तो वो कामकाज करने लायक रहता है ना उसकी कही से आमदनी होती है, जिसके कारण धन का अभाव होता है, वह स्वयं तो दरिद्रता में जीवन व्यतीत करता है तथा परिवार के अन्य लोगों का जीवन भी नर्क जैसा बनता है। ऐसे जातक को भूख प्‍यास नहीं लगती और उसका मन अशांत रहता है और वो चैन से सो भी नहीं पाता। इसलिए इस बाधा से मुक्ति चाहते हो तो तुरंत ही प्रेत बाधा निवारण पूजा करवानी चाहिए। दिन-दुनिया से अलग – प्रेत बाधा के प्रभाव से पीड़ित जातक को किसी बात का होश नहीं होता। वह स्वयमं को पीड़ा देते है तथा परिवार के अन्य लोगों का भी जीना दुश्वार कर देते है। हर समय अपनी अनोखी दुनिया में रहते है, कडवे वचन बोलते है, रात को सोते नहीं, कभी भी कहीं पर भी चले जाते है, बहुत ही दर्दनाक जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाते है इसलिए प्रेत बाधा निवारण पूजा कर इनको इन प्रेतात्माओ से जल्दी ही मुक्ति दिलानी चाहिए। पूजा का महत्‍व यह पूजा करवाने से आपको बहुत ही जल्दी भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति मिलती है। इस पूजा के प्रभाव से जातक के जीवन में बदलाव आता है तथा शारीरिक और मानसिक चिंताएं दूर होती हैं। नौकरी, करियर और जीवन में आ रही सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती है। पूजन का समय – पूजा का समय शुभ मुहुर्त देखकर तय किया जाएगा। यजमान द्वारा वांछित जानकारी – नाम एवं गोत्र, पिता का नाम, जन्‍म तारीख, स्‍थान ||
#📕लाल किताब उपाय🔯 #🐍कालसर्प दोष परिहार #🔯ग्रह दोष एवं उपाय🪔 #🌟देखिए खास ज्योतिष उपाय #✡️ज्योतिष समाधान 🌟प्रेत बाधा निवारण पूजा – क्या होता है प्रेत बाधा दोष और कैसे होती है इसकी पूजा संसार में सकारात्‍मक शक्‍तियां हैं तो नकारात्‍मक भी मौजूद हैं। आप मानें या ना मानें लेकिन हमारे आसपास भूत-प्रेत भी मौजूद होते हैं और ये कई बार मनुष्‍य के शरीर पर कब्‍जा कर लेते हैं। इसके पीछे उस आत्मा की कुछ अतृप्त इच्छाएं भी हो सकती हैं, इसके अलावा अकाल मृत्यु भी एक वजह है, जिसकी वजह से आत्मा नया जन्म नहीं ले पाती और मृत्यु लोक में ही भटकती रह जाती है। प्रेत बाधा निवारण पूजा अगर आपकी कुंडली में प्रेत बाधा दोष है तो आपके शरीर पर किसी प्रेत का साया हो सकता है। जब किसी व्यक्ति पर बुरी आत्मा का साया होता है तो उसे काफी प्रताड़ना और दुःख सहना पड़ता है। भूत प्रेत की बाधा से बचने के लिए प्रेत बाधा दोष निवारण पूजा ही एकमात्र उपाय हैं, विधिपूर्वक पूजा करने पर भूत-प्रेत और ऊपरी बाधा से जल्दी ही मुक्ति मिलती है। विश्व के लगभग सभी धर्म अच्छी और बुरी आत्माएं होने की बात को स्वीकार करते हैं। हिन्दू धर्म तथा ज्योतिषी विज्ञान के अनुसार बुरी आत्माएं जब शरीर में प्रवेश करती हैं तो वह जीव को काफी प्रताड़ना देती हैं, इसलिए ऊपरी बाधा के लक्षण जानने के बाद उसके निवारण हेतु प्रेत बाधा निवारण पूजा अवश्य करवानी चाहिए। कुंडली के आधारपर प्रेत बाधा की कैसे करें पहचान – कुंडली में प्रथम भाव में चन्द्र के साथ राहु की युति होने पर एवं पंचम और नवम भाव में कोई क्रूर ग्रह स्थित हो तो उस जातक पर भूत-प्रेत, पिशाच या बुरी आत्माओं का प्रभाव रहता है। इसके अलावा गोचर के दौरान भी यही स्थिति रहने पर प्रेत बाधा से पीडित होना निश्‍चित है। – यदि किसी कुण्डली में शनि, राहु, केतु या मंगल में से कोई भी ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसे लोग भी भूत-प्रेत बाधा या पिशाच या ऊपरी हवा आदि से परेशान रहते हैं। – यदि किसी की कुण्डली में शनि-मंगल-राहु की युति हो तो उसे भी ऊपरी बाधा, प्रेत, पिशाच या भूत बाधा तंग करती है। – ज्योतिष के अनुसार राहु की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा हो और चंद्र दशापति राहु से 6, 8 या 12 वें भाव में बलहीन हो, तो व्यक्ति प्रेत बाधा दोष से पीड़ित होता है। अन्य लक्षण स्वभाव में बदलाव – जो जातक प्रेत-बाधा से पीड़ित है वह अव्यवहारिक, मूर्खतापूर्ण बातें करने लगता है तथा उसके स्वभाव में भी पल पल में परिवर्तन देखने को मिलता है। जब तक इस दोष के निवारण हेतु पूजा न की जाए व्यक्ति को इस बाधा से छुटकारा नहीं मिल सकता। आँखों से बातें – भूत-प्रेत बाधा से पीड़ित जातक ज्यादातर आँखों से ही बाते करता है और उसकी आँखे सुर्ख लाल हो जाती है, जिसका प्रभाव दूसरों पर भी पड़ता है, ऐसे व्यक्तियों को देखकर अन्य लोगों के बीच भी डर की भावना उत्पन्न होती है। शारीरिक दुर्घटना – प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति जोर-जोर से सांसे लेने लगता है, बार बार वह अपने ही शरीर को हानि पहुँचाने का प्रयास करता है, जिसके कारण कई बार वह चोटिल भी होता है, इस बाधा के प्रकोप से जातक काफी कमज़ोर हो जाता है और उसे गन्दा रहना अच्छा लगता है, उसके शरीर से दुर्गन्ध आने लगती है और वह एकांत में रहना पसंद करता है। इसके प्रभाव में आने वाला जातक चीखता-चिल्लाता है, रोने लगता है और इधर-उधर भागने लगता है, इस तरह की दिक्कतों से बचने के लिए जल्द से जल्द प्रेत बाधा निवारण पूजा करवानी चाहिए। सामान्यतः इस बाधा के कारण स्रियाँ प्रभावित हो जाती है, इस प्रेत बाधाओं की शक्ति से प्रभावित स्त्री रोती और चिल्लाती है और कभी-कभी बेहोश भी हो जाती है, पीड़ित स्त्री के शरीर में ज़ोर से दर्द होता है और शरीर कांपने लगता है तथा वह अपना पूरा शरीर छोड़ देती है और दुर्घटनाग्रस्त होती है। दरिद्रता में जीवनयापन – इस दोष से प्रभावित व्‍यक्‍ति को नर्क जैसा जीवन बिताना पड़ता है। ना तो वो कामकाज करने लायक रहता है ना उसकी कही से आमदनी होती है, जिसके कारण धन का अभाव होता है, वह स्वयं तो दरिद्रता में जीवन व्यतीत करता है तथा परिवार के अन्य लोगों का जीवन भी नर्क जैसा बनता है। ऐसे जातक को भूख प्‍यास नहीं लगती और उसका मन अशांत रहता है और वो चैन से सो भी नहीं पाता। इसलिए इस बाधा से मुक्ति चाहते हो तो तुरंत ही प्रेत बाधा निवारण पूजा करवानी चाहिए। दिन-दुनिया से अलग – प्रेत बाधा के प्रभाव से पीड़ित जातक को किसी बात का होश नहीं होता। वह स्वयमं को पीड़ा देते है तथा परिवार के अन्य लोगों का भी जीना दुश्वार कर देते है। हर समय अपनी अनोखी दुनिया में रहते है, कडवे वचन बोलते है, रात को सोते नहीं, कभी भी कहीं पर भी चले जाते है, बहुत ही दर्दनाक जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाते है इसलिए प्रेत बाधा निवारण पूजा कर इनको इन प्रेतात्माओ से जल्दी ही मुक्ति दिलानी चाहिए। पूजा का महत्‍व यह पूजा करवाने से आपको बहुत ही जल्दी भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति मिलती है। इस पूजा के प्रभाव से जातक के जीवन में बदलाव आता है तथा शारीरिक और मानसिक चिंताएं दूर होती हैं। नौकरी, करियर और जीवन में आ रही सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती है। पूजन का समय – पूजा का समय शुभ मुहुर्त देखकर तय किया जाएगा। यजमान द्वारा वांछित जानकारी – नाम एवं गोत्र, पिता का नाम, जन्‍म तारीख, स्‍थान || #📕लाल किताब उपाय🔯
#🔯ज्योतिष #🔯वास्तु दोष उपाय #🔯नक्षत्रों के प्रभाव✨ #✡️सितारों की चाल🌠 #🔯दैनिक वास्तु टिप्स✅ पितरों का वर्गीकरण: पितर चौरासी लाख योनियों में से एक योनि है। साधारणत: हम अपने पूर्वजों को पितर मानते हैं। वस्तुत: यह पितर की संकुचित परिभाषा है। पितर विभिन्न लोगों में रहने वाली वह दिव्यात्माएं एवं सामान्य जीवात्माएं हैं, जिनसे देवता मनुष्य आदि की उत्पत्ति हुई है। यह अत्यंत शक्तिशाली होते हैं। तुष्ट होने पर मनुष्यों को दीर्घायु ,,संतति, धन ,यश एवं सभी प्रकार के सुख प्रदान करते हैं। दूसरी और असंतुष्ट या रुष्ट होने पर भी मनुष्य की आयु संतति धन सभी प्रकार के सुखों को हर लेते हैं और मृत्यु के पश्चात उन्हें नरकलोक प्रदान करते हैं। _______________ पितरों का वर्गीकरण :---- --------------------------- मनुस्मृति, मत्स्यपुराण ,पद्मपुराण आदि में पितरों की अनेक श्रेणियां बताई गई हैं। सामान्यत: हम पितरों को दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं:--- 1. दिव्य पितर , 2. पूर्वज पितर ____________ 1.दिव्य पितर :-- -------------------- दिव्य पितर वे पितर हैं जिनसे देवता मनुष्य आदि उत्पन्न हुए। इन पितरों की उत्पत्ति ब्रह्मा के पुत्र मनु के विभिन्न ऋषि पुत्रों से हुई है। दिव्य पितरों के सात गण माने गए हैं। यह निम्न अनुसार हैं :------ (१) अग्निष्वात्त:----इनकी उत्पत्ति मनु के पुत्र महर्षि मरीचि से हुई है अग्निष्वात देवताओं के पितर हैं। ये "सोम" नामक लोकों में निवास करते हैं। इन पितरों का देवता भी सम्मान करते हैं। (२) बर्हिर्षद :--इनकी उत्पत्ति महर्षि अत्रि से हुई है यह देव, दानव, यक्ष,गंधर्व, सर्प,राक्षस, सुपर्ण एवं किन्नरों के पितर हैं। यह स्वर्ग में स्थित "विभ्राज लोक "में रहते हैं। जो इस लोक में निवास करने वाले पितरों के लिए श्राद्ध करते हैं, उन्हें भी इस लोक की प्राप्ति होती है। (३) सोमसद:---सोमसद महर्षि विराट् के पुत्र हैं यह साध्यों के पितर हैं। (४) सोमपा :--सोमपा महर्षि भृगु के पुत्र हैं ये ब्राह्मणों के पितर हैं। ये " सुमानस लोक "में रहते हैं। यह लोग 'ब्रह्मलोक' के ऊपर स्थित है। (५) हविर्भुज या हविष्यमान :-महर्षि अंगिरा के पुत्र हविर्भुज हैं। ये क्षत्रियों के पितर हैं। ये"'मार्तण्ड मण्डल लोक" में रहते हैं ।यह स्वर्ग और मोक्ष फल प्रदान करने वाले हैं ।तीर्थों में श्राद्ध करने वाले श्रेष्ठ क्षत्रिय इन्हीं के लोग में जाते हैं। (६) आज्यपा ;--आज्यपा वेश्यों के पितर हैं ।इनके पिता महर्षि पुलस्त्य हैं । ये 'कामदुध लोक' में रहते हैं। इन पितरों का श्राद्ध करने वाले व्यक्ति इस लोक में पहुंचते हैं। (७) सुकालि :-- सुकालि महर्षि वशिष्ठ के पुत्र हैं ये शूद्रों के पितर माने गए हैं। प्रथम तीन मूर्तिरहित और शेष चार मूर्तिमान पितर कहे गए हैं। उक्त सात प्रमुख पितृ गण के अलावा और भी दिव्य पितर हैं। उदाहरण के लिए अनग्निदग्ध, काव्य, सौम्य , आदि। --------------------- 2. पूर्वज पितर :--- ---------------------- इनमें वे पितर सम्मिलित होते हैं, जो कि किसी कुल या व्यक्ति के पूर्वज हैं ।इनका ही एकोदिष्ट आदि श्राद्ध होता है । इन्हें दो वर्गों में विभक्त किया जाता है:- (१) सपिण्ड पितर :-मृत पिता, पितामह एवं प्रपितामह के तीन पीढ़ी के पूर्वज सपिण्ड पितर कहलाते हैं यह पिण्डभागी होते हैं। (२) लेपभागभोजी पितर :--- सपिण्ड पितरों से ऊपर तीन पीढ़ी तक के पितर लेपभागभोजी पितर कहलाते हैं।ये पितर चंद्रलोक के ऊपर स्थित" पितृलोक" में रहते हैं। उक्त समस्त पितरों को संतुष्टि के आधार पर संतुष्ट एवं असंतुष्ट पितर में भी वर्गीकृत किया जाता है ।
#📕लाल किताब उपाय🔯 #🔯ग्रह दोष एवं उपाय🪔 #🐍कालसर्प दोष परिहार #🌟देखिए खास ज्योतिष उपाय #✡️ज्योतिष समाधान 🌟 पितरों का वर्गीकरण: पितर चौरासी लाख योनियों में से एक योनि है। साधारणत: हम अपने पूर्वजों को पितर मानते हैं। वस्तुत: यह पितर की संकुचित परिभाषा है। पितर विभिन्न लोगों में रहने वाली वह दिव्यात्माएं एवं सामान्य जीवात्माएं हैं, जिनसे देवता मनुष्य आदि की उत्पत्ति हुई है। यह अत्यंत शक्तिशाली होते हैं। तुष्ट होने पर मनुष्यों को दीर्घायु ,,संतति, धन ,यश एवं सभी प्रकार के सुख प्रदान करते हैं। दूसरी और असंतुष्ट या रुष्ट होने पर भी मनुष्य की आयु संतति धन सभी प्रकार के सुखों को हर लेते हैं और मृत्यु के पश्चात उन्हें नरकलोक प्रदान करते हैं। _______________ पितरों का वर्गीकरण :---- --------------------------- मनुस्मृति, मत्स्यपुराण ,पद्मपुराण आदि में पितरों की अनेक श्रेणियां बताई गई हैं। सामान्यत: हम पितरों को दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं:--- 1. दिव्य पितर , 2. पूर्वज पितर ____________ 1.दिव्य पितर :-- -------------------- दिव्य पितर वे पितर हैं जिनसे देवता मनुष्य आदि उत्पन्न हुए। इन पितरों की उत्पत्ति ब्रह्मा के पुत्र मनु के विभिन्न ऋषि पुत्रों से हुई है। दिव्य पितरों के सात गण माने गए हैं। यह निम्न अनुसार हैं :------ (१) अग्निष्वात्त:----इनकी उत्पत्ति मनु के पुत्र महर्षि मरीचि से हुई है अग्निष्वात देवताओं के पितर हैं। ये "सोम" नामक लोकों में निवास करते हैं। इन पितरों का देवता भी सम्मान करते हैं। (२) बर्हिर्षद :--इनकी उत्पत्ति महर्षि अत्रि से हुई है यह देव, दानव, यक्ष,गंधर्व, सर्प,राक्षस, सुपर्ण एवं किन्नरों के पितर हैं। यह स्वर्ग में स्थित "विभ्राज लोक "में रहते हैं। जो इस लोक में निवास करने वाले पितरों के लिए श्राद्ध करते हैं, उन्हें भी इस लोक की प्राप्ति होती है। (३) सोमसद:---सोमसद महर्षि विराट् के पुत्र हैं यह साध्यों के पितर हैं। (४) सोमपा :--सोमपा महर्षि भृगु के पुत्र हैं ये ब्राह्मणों के पितर हैं। ये " सुमानस लोक "में रहते हैं। यह लोग 'ब्रह्मलोक' के ऊपर स्थित है। (५) हविर्भुज या हविष्यमान :-महर्षि अंगिरा के पुत्र हविर्भुज हैं। ये क्षत्रियों के पितर हैं। ये"'मार्तण्ड मण्डल लोक" में रहते हैं ।यह स्वर्ग और मोक्ष फल प्रदान करने वाले हैं ।तीर्थों में श्राद्ध करने वाले श्रेष्ठ क्षत्रिय इन्हीं के लोग में जाते हैं। (६) आज्यपा ;--आज्यपा वेश्यों के पितर हैं ।इनके पिता महर्षि पुलस्त्य हैं । ये 'कामदुध लोक' में रहते हैं। इन पितरों का श्राद्ध करने वाले व्यक्ति इस लोक में पहुंचते हैं। (७) सुकालि :-- सुकालि महर्षि वशिष्ठ के पुत्र हैं ये शूद्रों के पितर माने गए हैं। प्रथम तीन मूर्तिरहित और शेष चार मूर्तिमान पितर कहे गए हैं। उक्त सात प्रमुख पितृ गण के अलावा और भी दिव्य पितर हैं। उदाहरण के लिए अनग्निदग्ध, काव्य, सौम्य , आदि। --------------------- 2. पूर्वज पितर :--- ---------------------- इनमें वे पितर सम्मिलित होते हैं, जो कि किसी कुल या व्यक्ति के पूर्वज हैं ।इनका ही एकोदिष्ट आदि श्राद्ध होता है । इन्हें दो वर्गों में विभक्त किया जाता है:- (१) सपिण्ड पितर :-मृत पिता, पितामह एवं प्रपितामह के तीन पीढ़ी के पूर्वज सपिण्ड पितर कहलाते हैं यह पिण्डभागी होते हैं। (२) लेपभागभोजी पितर :--- सपिण्ड पितरों से ऊपर तीन पीढ़ी तक के पितर लेपभागभोजी पितर कहलाते हैं।ये पितर चंद्रलोक के ऊपर स्थित" पितृलोक" में रहते हैं। उक्त समस्त पितरों को संतुष्टि के आधार पर संतुष्ट एवं असंतुष्ट पितर में भी वर्गीकृत किया जाता है ।
#🔯ज्योतिष #🔯वास्तु दोष उपाय #✡️सितारों की चाल🌠 #🔯नक्षत्रों के प्रभाव✨ #🔯दैनिक वास्तु टिप्स✅ घर में पूजा स्थान से जुड़े जरुरी नियम | घर में पूजा करने का स्थान कैसा होना चाहिए ? पूजा का स्थान घर में कहाँ स्थापित होना चाहिए ? पूजा स्थल में कौन-कौन सी वस्तुएं रखना शुभ है और कौन सी अशुभ ? पूजा करने की विधि आदि के विषय में अधिकांश लोगों को जानकारी नहीं होती | इसीलिए घर में पूजा स्थान पर होने वाली गलतियाँ आपको इससे मिलने वाले फल से वंचित रख सकती है | घर में पूजा स्थान कहाँ होना चाहिए शास्त्रों के अनुसार घर में पूजा करने का स्थान ईशान कोण में होना चाहिए | ईशान कोण – उत्तर दिशा और पूर्व दिशा के बीच का भाग ईशान कोण होता है | ईशान कोण को शुभ कार्यों के लिए सबसे उत्तम दिशा माना गया है | इसलिए इस दिशा में पूजा के मंदिर को स्थापित करें | यदि किसी कारणवश ऐसा न भी कर पायें तो भूलकर भी घर के ईशान कोण में गंदगी जमा न होने दे व घर के इस हिस्से को सदा पवित्र रखे | ईशान कोण के अतिरिक्त पूर्व दिशा भी पूजा स्थान के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है | इसीलिए आप घर में ईशान कोण व पूर्व दिशा दोनों में से जहाँ भी आप सुविधाजनक रूप से पूजा स्थल की स्थापना कर सके, अति उत्तम है | पूजा स्थल में कौन-कौन से वस्तुएं शुभ और अशुभ होती है :- घर में पूजा का स्थान सुनिश्चित करने के पश्चात प्रश्न उठता है कि पूजा स्थल में कौन-कौन से चीज़े रखना शुभ होता है और अशुभ चीज़े क्या है ताकि इन्हें तुरंत पूजा स्थल से हटा दिया जाये | वैसे तो पूजा के स्थान की सजावट व्यक्ति की श्रद्धा और कला पर निर्भर करती है इसमें कोई बाध्यता नहीं है | पूजा स्थल में कौन-कौन से देव व देवी की प्रतिमा लगानी है वह भी व्यक्ति की देवों के प्रति श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है किन्तु पूजा स्थल में कुछ चीजों का होना बहुत जरुरी है, इनके होने से आप पूजा -पाठ का सम्पूर्ण फल प्राप्त करते है | पूजा स्थल में गणेश जी स्थापना अवश्य करें | इसके लिए एक सुपारी या ठोस मिटटी की डली पर लाल धागे(मोली ) को लपेट ले व कुमकुम द्वारा तिलक कर एक कटोरी में थोड़े चावल रखकर स्थापित करें | पूजा स्थल में एक कोने में बंद पात्र में गंगाजल अवश्य रखना चाहिए | एक ताम्बे के छोटे से लौटे में जल को पूजा स्थल में अवश्य रखना चाहिए | प्रतिदिन इस पात्र का जल बदलना चाहिए व पुराने जल को किसी पीपल के पेड़ में या तुलसी के पौधे में डाल सकते है | पूजा के स्थान में एक देव की सिर्फ एक ही प्रतिमा रखे | यदि आपके पास एक देव की एक से अधिक प्रतिमा पूजा स्थल में है तो उन्हें घर में कहीं भी दिवार आदि पर लगा सकते है किन्तु पूजा स्थल में एक देव की एक ही प्रतिमा रखे | घर में पूजा के स्थान पर कभी भी बड़ी मूर्तियाँ न रखें | बड़ी मूर्तियों में प्राण-प्रतिष्ठा होना अनिवार्य हो जाता है | इसीलिए बड़ी मूर्तियां मंदिर के लिए ही उचित है | पूजा स्थल में छोटी मूर्ति रख सकते है अन्यथा प्रतिमा रख सकते है | पूजा करने के स्थान पर भूलकर भी अपने पित्र देव ( अपने स्वर्गीय माता, पिता ) की फोटो न लगाये | उनका स्थान अलग रखे | पूजा स्थल में कूड़ा-करकट एकत्रित न होने दे | प्रतिदिन पूजा घर की सफाई करें | अगर आपने पूजा घर में कोई मूर्ती की स्थापना की हुई है तो ध्यान दे , मूर्ती का कोई भी हिस्सा खंडित नहीं होना चाहिए ( खंडित होने से तात्पर्य मूर्ती का कोई हिस्सा टूटने या उसमें दरार आने से है ) मूर्ति खंडित होने पर तुरंत उसे वहां से हटा दे | खंडित मूर्ति को आप बहते पानी में विसर्जित कर सकते है | पूजा स्थल में चमड़े की कोई वस्तु जैसे पर्स , बेल्ट या चमड़े का बैग आदि कदापि न रखे | पूजा के समय शुद्ध देसी गाय के घी का प्रयोग करें, व भोग लगाने के लिए अग्नि में गाय के गोबर के कंडो(ऊपलों ) का ही प्रयोग करना उत्तम माना गया है | पूजा -पाठ के दौरान दीपक कभी भी भुजना नहीं चाहिए, शास्त्रों में यह एक बड़ा अपशगुन माना गया है | पूजा-पाठ के समय गूग्गल युक्त धुपबत्ती का प्रयोग करें | गूग्गल घर के वातावरण को शुद्ध और घर से नकारात्मक व बुरी चीजों को दूर करती है | रात्रि को सोते समय पूजा स्थल को लाल पर्दे द्वारा ढक दे व सुबह होने पर पर्दे हटा दे | पूजा-पाठ के लिए एक निश्चित समय का चुनाव कर प्रतिदिन उसी समय पर पूजा-पाठ करने का प्रयास करें | यदि संभव हो सके तो अपनी पूजा पाठ का समय सवा के समय जैसे ( 6.15 am , 7.15 am , 8.15 am , 9.15 am ) इस प्रकार रखे | आसन बिछाकर , शांत मन के साथ बैठ जाये | घी का दीपक व दूप प्रज्वल्लित करें | पूजा के समय सर्वप्रथम गणेश जी के स्तुति मंत्र द्वारा गणेश जी का आव्हान करें | गणेश जी के आव्हान के बाद अपने ईष्ट देव के स्तुति मंत्र द्वारा उनका ध्यान करें , तत्पश्चात आप अपने ईष्ट देव के मंत्र जप व पाठ आदि करें | अंत में अपने ईष्ट देव या देवी की आरती करें | अब एक मिनट के लिए परमपिता परमेश्वर का ध्यान करें और जमीन से सिर स्पर्श करते हुए भगवान को प्रणाम करें और खड़े हो जाये | ‌अब अपने घर में स्वर्गीय बुजुर्गो की फोटो के पास जाकर उन्हें प्रणाम करें व अपने माता -पिता के पैर छुए | फिर देखे आपके दिन कितनी जल्दी अछे आने लगे गए ‌
#📕लाल किताब उपाय🔯 #🐍कालसर्प दोष परिहार #🔯ग्रह दोष एवं उपाय🪔 #🌟देखिए खास ज्योतिष उपाय #✡️ज्योतिष समाधान 🌟 घर में पूजा स्थान से जुड़े जरुरी नियम | घर में पूजा करने का स्थान कैसा होना चाहिए ? पूजा का स्थान घर में कहाँ स्थापित होना चाहिए ? पूजा स्थल में कौन-कौन सी वस्तुएं रखना शुभ है और कौन सी अशुभ ? पूजा करने की विधि आदि के विषय में अधिकांश लोगों को जानकारी नहीं होती | इसीलिए घर में पूजा स्थान पर होने वाली गलतियाँ आपको इससे मिलने वाले फल से वंचित रख सकती है | घर में पूजा स्थान कहाँ होना चाहिए शास्त्रों के अनुसार घर में पूजा करने का स्थान ईशान कोण में होना चाहिए | ईशान कोण – उत्तर दिशा और पूर्व दिशा के बीच का भाग ईशान कोण होता है | ईशान कोण को शुभ कार्यों के लिए सबसे उत्तम दिशा माना गया है | इसलिए इस दिशा में पूजा के मंदिर को स्थापित करें | यदि किसी कारणवश ऐसा न भी कर पायें तो भूलकर भी घर के ईशान कोण में गंदगी जमा न होने दे व घर के इस हिस्से को सदा पवित्र रखे | ईशान कोण के अतिरिक्त पूर्व दिशा भी पूजा स्थान के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है | इसीलिए आप घर में ईशान कोण व पूर्व दिशा दोनों में से जहाँ भी आप सुविधाजनक रूप से पूजा स्थल की स्थापना कर सके, अति उत्तम है | पूजा स्थल में कौन-कौन से वस्तुएं शुभ और अशुभ होती है :- घर में पूजा का स्थान सुनिश्चित करने के पश्चात प्रश्न उठता है कि पूजा स्थल में कौन-कौन से चीज़े रखना शुभ होता है और अशुभ चीज़े क्या है ताकि इन्हें तुरंत पूजा स्थल से हटा दिया जाये | वैसे तो पूजा के स्थान की सजावट व्यक्ति की श्रद्धा और कला पर निर्भर करती है इसमें कोई बाध्यता नहीं है | पूजा स्थल में कौन-कौन से देव व देवी की प्रतिमा लगानी है वह भी व्यक्ति की देवों के प्रति श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है किन्तु पूजा स्थल में कुछ चीजों का होना बहुत जरुरी है, इनके होने से आप पूजा -पाठ का सम्पूर्ण फल प्राप्त करते है | पूजा स्थल में गणेश जी स्थापना अवश्य करें | इसके लिए एक सुपारी या ठोस मिटटी की डली पर लाल धागे(मोली ) को लपेट ले व कुमकुम द्वारा तिलक कर एक कटोरी में थोड़े चावल रखकर स्थापित करें | पूजा स्थल में एक कोने में बंद पात्र में गंगाजल अवश्य रखना चाहिए | एक ताम्बे के छोटे से लौटे में जल को पूजा स्थल में अवश्य रखना चाहिए | प्रतिदिन इस पात्र का जल बदलना चाहिए व पुराने जल को किसी पीपल के पेड़ में या तुलसी के पौधे में डाल सकते है | पूजा के स्थान में एक देव की सिर्फ एक ही प्रतिमा रखे | यदि आपके पास एक देव की एक से अधिक प्रतिमा पूजा स्थल में है तो उन्हें घर में कहीं भी दिवार आदि पर लगा सकते है किन्तु पूजा स्थल में एक देव की एक ही प्रतिमा रखे | घर में पूजा के स्थान पर कभी भी बड़ी मूर्तियाँ न रखें | बड़ी मूर्तियों में प्राण-प्रतिष्ठा होना अनिवार्य हो जाता है | इसीलिए बड़ी मूर्तियां मंदिर के लिए ही उचित है | पूजा स्थल में छोटी मूर्ति रख सकते है अन्यथा प्रतिमा रख सकते है | पूजा करने के स्थान पर भूलकर भी अपने पित्र देव ( अपने स्वर्गीय माता, पिता ) की फोटो न लगाये | उनका स्थान अलग रखे | पूजा स्थल में कूड़ा-करकट एकत्रित न होने दे | प्रतिदिन पूजा घर की सफाई करें | अगर आपने पूजा घर में कोई मूर्ती की स्थापना की हुई है तो ध्यान दे , मूर्ती का कोई भी हिस्सा खंडित नहीं होना चाहिए ( खंडित होने से तात्पर्य मूर्ती का कोई हिस्सा टूटने या उसमें दरार आने से है ) मूर्ति खंडित होने पर तुरंत उसे वहां से हटा दे | खंडित मूर्ति को आप बहते पानी में विसर्जित कर सकते है | पूजा स्थल में चमड़े की कोई वस्तु जैसे पर्स , बेल्ट या चमड़े का बैग आदि कदापि न रखे | पूजा के समय शुद्ध देसी गाय के घी का प्रयोग करें, व भोग लगाने के लिए अग्नि में गाय के गोबर के कंडो(ऊपलों ) का ही प्रयोग करना उत्तम माना गया है | पूजा -पाठ के दौरान दीपक कभी भी भुजना नहीं चाहिए, शास्त्रों में यह एक बड़ा अपशगुन माना गया है | पूजा-पाठ के समय गूग्गल युक्त धुपबत्ती का प्रयोग करें | गूग्गल घर के वातावरण को शुद्ध और घर से नकारात्मक व बुरी चीजों को दूर करती है | रात्रि को सोते समय पूजा स्थल को लाल पर्दे द्वारा ढक दे व सुबह होने पर पर्दे हटा दे | पूजा-पाठ के लिए एक निश्चित समय का चुनाव कर प्रतिदिन उसी समय पर पूजा-पाठ करने का प्रयास करें | यदि संभव हो सके तो अपनी पूजा पाठ का समय सवा के समय जैसे ( 6.15 am , 7.15 am , 8.15 am , 9.15 am ) इस प्रकार रखे | आसन बिछाकर , शांत मन के साथ बैठ जाये | घी का दीपक व दूप प्रज्वल्लित करें | पूजा के समय सर्वप्रथम गणेश जी के स्तुति मंत्र द्वारा गणेश जी का आव्हान करें | गणेश जी के आव्हान के बाद अपने ईष्ट देव के स्तुति मंत्र द्वारा उनका ध्यान करें , तत्पश्चात आप अपने ईष्ट देव के मंत्र जप व पाठ आदि करें | अंत में अपने ईष्ट देव या देवी की आरती करें | अब एक मिनट के लिए परमपिता परमेश्वर का ध्यान करें और जमीन से सिर स्पर्श करते हुए भगवान को प्रणाम करें और खड़े हो जाये | ‌अब अपने घर में स्वर्गीय बुजुर्गो की फोटो के पास जाकर उन्हें प्रणाम करें व अपने माता -पिता के पैर छुए | फिर देखे आपके दिन कितनी जल्दी अछे आने लगे गए ‌
*भाग्योदय लक्ष्मी साधना* *अभी तक आपने बहोत सी लक्ष्मी साधना ये की हुयी है परंतु परिणाम तो कही ना कही उतनी ही मिली है जितनी आपकी आमदनी है या फिर बढ़ोतरी मिली है या थोड़ी बहुत कही से अप्रत्यक्ष लाभ हुयी हो। अगर यही स्थिति रही लक्ष्मी जी की कृपा की तो आनेवाली समय मे ये महंगाई नाम की ड़ायन हम सभी को खा जायेगी सभी सिद्धों ने एक बात कही है की लक्ष्मी जी चंचला है और येसे लक्ष्मी की कृपा से जीवन जीने की कोई कला प्राप्ति नहीं हो सकती है,जब स्थिर लक्ष्मी जी की कृपा हो जायेगी तो सम्पूर्ण जीवन मे अंधकार दूर होकर जीवन मे गतिमान प्रकाश होगी मतलब सारी सुख और समृद्धि की प्राप्ति होगी.ऐसे जीवन की प्राप्ति सारे दुखो को समाप्त कर देती है।भाग्योदय लक्ष्मी साधना अपने आप मे तीव्र गति से भाग्योदय प्राप्ति की अनुभूतित साधना है,यह प्रयोग कार्तिक माह की पंचमी तिथि से करनी है,इस दिवस को पांडव पंचमी,सौभाग्य पंचमी और भाग्योदय पंचमी भी कहेते है और यह प्रयोग अचूक है,इस प्रयोग को करनेसे घर की सारी धन की प्रति आनेवाली चिंताये समाप्त हो जाती है आश्चर्यजनक रूप से व्यापार वृद्धि ,आर्थिक उन्नति ,प्रमोशन ,भाग्योदय और लाभ प्राप्त होने लगती है वास्तव मे ही यह प्रयोग आज की महेंगाइ मे कल्पवृक्ष की समान है।* *साधना विधि-* *यह साधना तीन दीनों मे सम्पन्न करनी है,साधक रविवार की सुबह ब्रम्ह मुहूर्त मे स्नान करके पीले वस्त्र धारण करके साधना मे बैठ जाये,सामने किसी बाजोठ पे पीले रंग की वस्त्र बिछाये और महालक्ष्मी जी की कोई दिव्य-भव्य चित्र स्थापित करे,अब सामने भोजपत्र पे ऊपर दिये हुये भाग्योदय लक्ष्मी यन्त्र की निर्माण अष्ठगंध से अनार की कलाम से कीजिये, यह यन्त्र अपनी दोनों हाथो मे पकड़कर लक्ष्मी-चैतन्य मंत्र 108 बार बोलिये और यन्त्र किसी स्टील की बड़ी सी प्लेट मे स्थापित कीजिये,अब अनार की कलम से यंत्र की आजू-बाजू मे 108 बार ‘श्रीं’ अक्षर लिखनी है,अब इसी ‘श्रीं’ अक्षर की ऊपर हल्दी+केसर से रंगी हुयी चावल स्थापित करनी है ताकि कोई भी अक्षर हम देख ना सके सिर्फ यन्त्र ही दिखनी चाहिये,अब यंत्र की मानसिक पद्धति से पूजन कीजिये,और सदगुरुजी से प्रार्थना कीजिये की इस साधना मे आपको पूर्ण सफलता ही प्राप्त हो,अब यन्त्र पे एक गोमती चक्र स्थापित कीजिये।* *यह पूर्ण विधि-विधान सिर्फ एक ही दिन करनी है,और तीसरे दिन इस गोमती चक्र को चाँदी की लॉकेट मे बनवाकर लाल धागे मे एक वर्ष तक गले मे धारण करनी है और जो चावल आपने अक्षर पर चढ़ाये हुये है इन्हे किसी भी रंग की पोटली मे बांधकर नदी या सरोवर पर ले जायिये नदी की पानी मे उतरकर यह चावल आपको अपने सिर पे थोड़े-थोड़े करते हुये छिड़कने है परंतु चावल पनि मे ही गिरने चाहिये इस बात की विशेष ध्यान रखनी है।* *लक्ष्मी चैतन्य मंत्र* *! ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं चैतन्यम कुरु जाग्रय जाग्रय श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ फट !!* *भाग्योदय लक्ष्मी साबर मंत्र-* *ॐ लिछमी कील महालछमी किलूं किलूं जगत संसार न किले तो वीर विक्रमादित्य की आण ! ठं ठं ठं* *इस मंत्र की 3 माला जाप 3 दिन तक करनी है,जब साधना पूर्ण हो जाए तब भोज़पत्र पे अंकित यंत्र को साधना कक्ष मे या पूजा स्थान मे स्थापित कर दीजिये और यन्त्र के नीत्य दर्शन कीजिये।* #🔯ज्योतिष #🔯वास्तु दोष उपाय #🔯नक्षत्रों के प्रभाव✨ #✡️सितारों की चाल🌠 #🔯दैनिक वास्तु टिप्स✅
#📕लाल किताब उपाय🔯 #🔯ग्रह दोष एवं उपाय🪔 #🐍कालसर्प दोष परिहार #🌟देखिए खास ज्योतिष उपाय #✡️ज्योतिष समाधान 🌟 *भाग्योदय लक्ष्मी साधना* *अभी तक आपने बहोत सी लक्ष्मी साधना ये की हुयी है परंतु परिणाम तो कही ना कही उतनी ही मिली है जितनी आपकी आमदनी है या फिर बढ़ोतरी मिली है या थोड़ी बहुत कही से अप्रत्यक्ष लाभ हुयी हो। अगर यही स्थिति रही लक्ष्मी जी की कृपा की तो आनेवाली समय मे ये महंगाई नाम की ड़ायन हम सभी को खा जायेगी सभी सिद्धों ने एक बात कही है की लक्ष्मी जी चंचला है और येसे लक्ष्मी की कृपा से जीवन जीने की कोई कला प्राप्ति नहीं हो सकती है,जब स्थिर लक्ष्मी जी की कृपा हो जायेगी तो सम्पूर्ण जीवन मे अंधकार दूर होकर जीवन मे गतिमान प्रकाश होगी मतलब सारी सुख और समृद्धि की प्राप्ति होगी.ऐसे जीवन की प्राप्ति सारे दुखो को समाप्त कर देती है।भाग्योदय लक्ष्मी साधना अपने आप मे तीव्र गति से भाग्योदय प्राप्ति की अनुभूतित साधना है,यह प्रयोग कार्तिक माह की पंचमी तिथि से करनी है,इस दिवस को पांडव पंचमी,सौभाग्य पंचमी और भाग्योदय पंचमी भी कहेते है और यह प्रयोग अचूक है,इस प्रयोग को करनेसे घर की सारी धन की प्रति आनेवाली चिंताये समाप्त हो जाती है आश्चर्यजनक रूप से व्यापार वृद्धि ,आर्थिक उन्नति ,प्रमोशन ,भाग्योदय और लाभ प्राप्त होने लगती है वास्तव मे ही यह प्रयोग आज की महेंगाइ मे कल्पवृक्ष की समान है।* *साधना विधि-* *यह साधना तीन दीनों मे सम्पन्न करनी है,साधक रविवार की सुबह ब्रम्ह मुहूर्त मे स्नान करके पीले वस्त्र धारण करके साधना मे बैठ जाये,सामने किसी बाजोठ पे पीले रंग की वस्त्र बिछाये और महालक्ष्मी जी की कोई दिव्य-भव्य चित्र स्थापित करे,अब सामने भोजपत्र पे ऊपर दिये हुये भाग्योदय लक्ष्मी यन्त्र की निर्माण अष्ठगंध से अनार की कलाम से कीजिये, यह यन्त्र अपनी दोनों हाथो मे पकड़कर लक्ष्मी-चैतन्य मंत्र 108 बार बोलिये और यन्त्र किसी स्टील की बड़ी सी प्लेट मे स्थापित कीजिये,अब अनार की कलम से यंत्र की आजू-बाजू मे 108 बार ‘श्रीं’ अक्षर लिखनी है,अब इसी ‘श्रीं’ अक्षर की ऊपर हल्दी+केसर से रंगी हुयी चावल स्थापित करनी है ताकि कोई भी अक्षर हम देख ना सके सिर्फ यन्त्र ही दिखनी चाहिये,अब यंत्र की मानसिक पद्धति से पूजन कीजिये,और सदगुरुजी से प्रार्थना कीजिये की इस साधना मे आपको पूर्ण सफलता ही प्राप्त हो,अब यन्त्र पे एक गोमती चक्र स्थापित कीजिये।* *यह पूर्ण विधि-विधान सिर्फ एक ही दिन करनी है,और तीसरे दिन इस गोमती चक्र को चाँदी की लॉकेट मे बनवाकर लाल धागे मे एक वर्ष तक गले मे धारण करनी है और जो चावल आपने अक्षर पर चढ़ाये हुये है इन्हे किसी भी रंग की पोटली मे बांधकर नदी या सरोवर पर ले जायिये नदी की पानी मे उतरकर यह चावल आपको अपने सिर पे थोड़े-थोड़े करते हुये छिड़कने है परंतु चावल पनि मे ही गिरने चाहिये इस बात की विशेष ध्यान रखनी है।* *लक्ष्मी चैतन्य मंत्र* *! ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं चैतन्यम कुरु जाग्रय जाग्रय श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ फट !!* *भाग्योदय लक्ष्मी साबर मंत्र-* *ॐ लिछमी कील महालछमी किलूं किलूं जगत संसार न किले तो वीर विक्रमादित्य की आण ! ठं ठं ठं* *इस मंत्र की 3 माला जाप 3 दिन तक करनी है,जब साधना पूर्ण हो जाए तब भोज़पत्र पे अंकित यंत्र को साधना कक्ष मे या पूजा स्थान मे स्थापित कर दीजिये और यन्त्र के नीत्य दर्शन कीजिये।*