Manjula Kushwaha
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#✍ आदर्श कोट्स
✍ आदर्श कोट्स - 6 Oct 2025 ಡ೩ @lindi Quote आज की प्रेरणा जीवन में सब कुछ पा लेने से संतोष नहीं मिलता लेकिन सदा संतुष्ट  रहने से सब कुछ मिल जाता है । किसी भी प्राप्ति के लिये चिंता या तनाव में होना जरूरी नहीं बल्कि शांत और एकाग्र होना अनिवार्य होता है । Follow Us On Instagram @Hindi Quote There is no safisfacfion in geffing everything in life Buf by being always safisfied, everything is achieved If is nof necessory fo be in worry or sfress for any affainmenf Rother if is necessory fo be colm ond focused. { @Hindi Motivational Quotes 6 Oct 2025 ಡ೩ @lindi Quote आज की प्रेरणा जीवन में सब कुछ पा लेने से संतोष नहीं मिलता लेकिन सदा संतुष्ट  रहने से सब कुछ मिल जाता है । किसी भी प्राप्ति के लिये चिंता या तनाव में होना जरूरी नहीं बल्कि शांत और एकाग्र होना अनिवार्य होता है । Follow Us On Instagram @Hindi Quote There is no safisfacfion in geffing everything in life Buf by being always safisfied, everything is achieved If is nof necessory fo be in worry or sfress for any affainmenf Rother if is necessory fo be colm ond focused. { @Hindi Motivational Quotes - ShareChat
मधु और कैटभ: नकारात्मक विचारों का द्वंद्व सागर की गहराइयों में शांति थी।वह शांति जो दिखने में शांत लगती है पर भीतर कहीं अनगिनत उथल-पुथल छिपाए रहती है। यही वह अनंत जल था जिसमें नारायण विष्णु शेषनाग पर निद्रामग्न थे। उनकी सांसें इतनी गहरी और लंबी थीं कि लगता था स्वयं समय उनके साथ सो रहा है। कमल की डंडी पर बैठे ब्रह्मा सृष्टि-रचना में लीन थे। वे ब्रह्मांड की धड़कन को सुन रहे थे।कैसे विचार रूप लेते हैं, कैसे एक संकेत से जीवन पनपता है। पर तभी उस शांति में दरार पड़ी। जल से दो भयंकर असुर प्रकट हुए-मधु और कैटभ। उनकी गर्जना समुद्र की लहरों से भी तेज़ थी। उनकी आँखें तप्त कोयले-सी, और देह से निकलता धुआँ। वे सीधे ब्रह्मा की ओर बढ़े। ब्रह्मा भयभीत हो उठे। उन्होंने विष्णु की ओर देखा पर वे तो योगनिद्रा में थे। “अब मेरी रक्षा कौन करेगा?” ब्रह्मा बुदबुदाए। वे जानते थे कि इन असुरों से अकेले टकराना संभव नहीं। और यही क्षण वह है जिसे हम अक्सर “मानव स्थिति” कहते हैं-जब आपके विचार, आपकी रचनात्मकता, आपके सारे साधन विफल लगते हैं और आपके भीतर के राक्षस आप पर चढ़ बैठते हैं। ब्रह्मा ने अपनी आँखें बंद कीं और महामाया को पुकारा। “हे आदिशक्ति! हे निद्रा की अधिष्ठात्री! अब विष्णु को जगाओ। यदि वह न जागे तो यह ब्रह्मांड अराजकता में डूब जाएगा।” तभी एक अदृश्य आभा लहरों के ऊपर तैरने लगी। देवी ने विष्णु की पलकों से योगनिद्रा खींच ली। उनकी आँखें खुलीं,समुद्र गरज उठा, जैसे स्वयं ब्रह्मांड किसी लंबे मौन के बाद सांस भर रहा हो। विष्णु ने तुरंत परस्थिति समझ ली। उन्होंने अपने चक्र का आह्वान किया और दोनों असुरों को चुनौती दी। मधु और कैटभ हँसते हुए बोले,“कितने समय तक सोए थे, विष्णु? अब तुम्हें अपनी ही सृष्टि से जन्मे राक्षसों का सामना करना है। क्या तुम तैयार हो?” विष्णु ने उत्तर दिया,”तुम सृष्टि के विकृत विचार हो। जितना अधिक तुम फैलोगे, उतना ही अधिक व्यवस्था (Order) खतरे में पड़ेगी। तुम्हारा अंत निश्चित है।” युद्ध आरंभ हुआ। समुद्र की लहरें उठीं और चक्र की गति के साथ ताल मिलाने लगीं। असुरों की गदा और विष्णु का चक्र टकराते,चमक से अंधकार फटता। कभी लगता कि विष्णु दब रहे हैं, कभी असुर। युद्ध कालातीत था, जैसे यह केवल उस समय का नहीं बल्कि हर मनुष्य के भीतर हर दिन होने वाला युद्ध हो। मधु और कैटभ केवल पौराणिक राक्षस नहीं हैं। वे मानव मन के दो चेहरे हैं। मधु है मीठी ज़ुबान से आने वाले नकारात्मक विचार। वे आपको समझाते हैं कि सब व्यर्थ है, कि प्रयास का कोई अर्थ नहीं। वे कोमल लगते हैं, पर भीतर से विनाशकारी।कैटभ है खुला और आक्रामक नकारात्मकता। क्रोध, हिंसा, ईर्ष्या-जो सीधे आक्रमण करती है। जब व्यक्ति अवचेतन रूप से निष्क्रिय (विष्णु की निद्रा) हो जाता है, तो यही दो शक्तियाँ उस पर हावी हो जाती हैं।आपके भीतर का ब्रह्मा (Creative Mind) तब असहाय महसूस करता है। आप कुछ रच नहीं पाते, कुछ बना नहीं पाते,क्योंकि दो दानव आपके विचारों को जकड़ चुके हैं। यहीं आती है महामाया-चेतना की देवी। वह हमें याद दिलाती हैं कि “तुम्हारे भीतर अभी भी शक्ति है, बस तुम सोए हुए हो।” यही है आत्म-जागरूकता (सेल्फ -अवेयरनेस )। पहला कदम है यह स्वीकार करना कि आप अंधकार में हैं। जब तक आप यह मानते नहीं कि आप सो रहे हैं, तब तक आप जाग नहीं सकते। इस कथा में विष्णु का जागना यही है। जब आप अपने भीतर की शक्ति को याद करते हैं, तभी आप मधु और कैटभ से लड़ सकते हैं। विष्णु और मधु-कैटभ का युद्ध हजारों वर्षों तक चला। यह भी एक गहरा प्रतीक है। नकारात्मक विचारों से लड़ाई कभी एक रात में खत्म नहीं होती। वे बार-बार आते हैं, नए रूप में आते हैं, और हर बार आपको फिर से सजग होना पड़ता है। आपके भीतर के दानव कभी मरते नहीं, वे केवल नियंत्रित होते हैं। यदि आप लापरवाह हो गए तो वे फिर लौट आएंगे। अंततः विष्णु ने अपनी माया का प्रयोग किया। उन्होंने मधु और कैटभ को भ्रमित किया और उनका वध कर दिया। यही है वह क्षण जब व्यक्ति अपने विचारों पर नियंत्रण पा लेता है। वह पहचान लेता है कि कौन सा विचार उपयोगी है और कौन सा विनाशकारी। वह तय करता है कि किन विचारों को पोषण देना है और किन्हें काट फेंकना है। आज का मनुष्य भी रोज़ “मधु और कैटभ” से जूझ रहा है।कभी “मैं बेकार हूँ” जैसे विचार आते हैं (मधु)।कभी “सब गलत हैं, सबसे बदला लेना है” जैसी भावना उठती है (कैटभ)।यदि हम सोए रहते हैं,बिना सजगता, बिना अनुशासन,तो ये दोनों मिलकर हमारी रचनात्मकता और शांति को नष्ट कर देते हैं।लेकिन यदि हम जागते हैं, जिम्मेदारी लेते हैं, और अपने भीतर की शक्ति को सक्रिय करते हैं तो ये विचार कमजोर पड़ते हैं। मधु और कैटभ की कथा हमें यह सिखाती है कि नकारात्मक विचार दो रूपों में आते हैं: मीठे धोखे वाले और खुलकर विनाशकारी।उन्हें हराने के लिए सजगता (अवेयरनेस ) और अनुशासन (डिसिप्लिन ) जरूरी है।यह युद्ध लंबा चलता है, पर यदि हम जागे रहें तो जीत संभव है। —- महिषासुर: बदलते मुखौटे वाला अहंकार हिमालय की ऊँचाइयों पर हवा गूँज रही थी। देवता भयभीत होकर एक-दूसरे की ओर देख रहे थे। उनके स्वर्ग लोक पर कब्ज़ा हो चुका था। असुरराज महिषासुर ने इन्द्रासन छीन लिया था। सूर्य, चन्द्र, अग्नि, वायु,सभी देवता बेघर यात्रियों की तरह भटक रहे थे। “अब हम कहाँ जाएँ? यह तो अपमान की पराकाष्ठा है,” इन्द्र बोले। वरुण ने आह भरी,”हमारे पास शक्ति तो है, पर संगठित रूप नहीं। वह दैत्य हर रूप में बदल जाता है।” विष्णु और शिव की आँखों में भी चिंता थी। तभी सबने मिलकर स्तुति की। उस स्तुति से एक अद्भुत प्रकाश फूटा-हर देवता का तेज़ मिलकर एक भव्य नारी रूप में ढल गया। वह थीं दुर्गा-तेजस्विनी, दिव्य, और सिंह पर आरूढ़। उनके हाथों में सब देवताओं के अस्त्र चमक रहे थे। इन्द्र का वज्र, विष्णु का चक्र, शिव का त्रिशूल, अग्नि की शक्ति। उनका सौंदर्य और उनका क्रोध दोनों एक साथ थे। महिषासुर ने सुना कि कोई देवी सिंह पर सवार होकर उसे ललकार रही है। वह पहले हँसा-“एक स्त्री? और युद्ध? यह मेरे लिए खिलवाड़ होगा।” उसने अपनी सेना भेजी। लाखों असुर, हाथी, घोड़े, रथ। पर जैसे ही देवी ने धनुष उठाया, उनके बाणों की वर्षा ने सेना को चीर डाला। देवी का सिंह गर्जा। धरती काँप उठी। असुरों ने भागना शुरू किया।महिषासुर ने देखा कि उसकी सेना छिन्न-भिन्न हो रही है। वह स्वयं युद्धभूमि में आया। महिषासुर की सबसे बड़ी शक्ति थी-उसका रूप बदलना।कभी वह विशाल भैंसा बनता, सींगों से धरती खोद डालता। कभी सिंह बनकर छलाँग लगाता।कभी हाथी बनकर आकाश को ढक लेता।कभी साधारण मनुष्य बनकर तलवार उठाता। हर बार दुर्गा उसके नए रूप को पहचान लेतीं और उसी के अनुसार वार करतीं। यह प्रसंग मानव अंहकार की एक गहरी सच्चाई दिखाता है।महिषासुर अहंकार का प्रतीक है । अहंकार की यही चाल है,वह बार-बार रूप बदलता है।कभी “मैं सबसे श्रेष्ठ हूँ” बनकर आता है।कभी “मैं बेचारा हूँ, सब मेरे खिलाफ़ हैं” बनकर आता है।कभी “मैं सही हूँ, बाक़ी सब गलत” का मुखौटा पहनता है।कभी “मैं पीड़ित हूँ, इसलिए मुझे कुछ भी करने का अधिकार है” बन जाता है। यह वही रणनीति है जिसे मनोविज्ञान की भाषा में कहते हैं—सेल्फ डिसेप्शन(आत्म-छल)।आप अपने अहंकार को पहचानते हैं, तो वह नया रूप ले लेता है। और यदि आप सजग न हों तो आप फँस जाते हैं। दुर्गा की शक्ति यही है-अवेयरनेस और डिसिप्लिन ।वे हर रूप में महिषासुर को देख लेती हैं। यदि आप अपने भीतर के दानव को पहचान नहीं पाए, तो आप उसके गुलाम बन जाएंगे। आपको उसे बार-बार पहचानना होगा, क्योंकि वह हर बार नया चेहरा पहनता है। युद्ध की यही तस्वीर है। महिषासुर कोई बाहरी भैंसा नहीं, वह मनुष्य का भीतर का अहंकार है।वह बार-बार आपको भ्रमित करता है कि “अब तो तुम जीत गए हो, अब तुम्हें किसी नियम की ज़रूरत नहीं। लेकिन यदि आप नियम छोड़ देते हैं, तो वह फिर आपको हराता है। महिषासुर ने अंत में फिर से भैंसे का रूप धरा। उसने अपनी सींगों से देवी के सिंह को घायल किया।देवताओं की सांसें अटक गईं।पर देवी शांत रहीं। उन्होंने त्रिशूल उठाया और कहा-“तुम चाहे कितने ही मुखौटे पहन लो, सत्य से बच नहीं सकते।”एक ही प्रहार में त्रिशूल उसकी छाती में धँस गया। देवी ने तलवार से उसका सिर काट गिराया। पूरा आकाश पुष्पवृष्टि से भर गया। देवताओं ने कहा-“जय महिषासुरमर्दिनी!” हमारे भीतर भी “महिषासुर” बार-बार जागता है। कभी अहंकार कहता है,”मैं दूसरों से श्रेष्ठ हूँ।” कभी वह विक्टिमहुड में छिप जाता है,“दुनिया मेरे खिलाफ़ है।” कभी क्रोध का रूप ले लेता है,“मुझे सब पर हमला करना है।” और यह केवल व्यक्तिगत जीवन तक सीमित नहीं। राष्ट्र, समाज, और संस्थाएँ भी महिषासुर बन सकती हैं,जहाँ शक्ति अहंकार में बदल जाती है और हर नियम तोड़ देती है।इसलिए दुर्गा का संदेश है,हर रूप में अहंकार को पहचानो। और हर बार अनुशासन, साहस और सत्य से उसका सामना करो। जीवन का अर्थ है अपने भीतर के महिषासुर से लड़ना। वह हमेशा नया मुखौटा पहनकर लौटेगा। कभी वह सफलता बनकर आएगा, कभी पीड़ा बनकर, कभी प्रतिशोध बनकर। आप उसे पहचानते रहेंगे, तभी आप स्वतंत्र रहेंगे। और याद रखिए, जीत एक प्रहार से नहीं होती, बल्कि हर दिन होती है,हर सुबह जब आप अनुशासन से उठते हैं, हर बार जब आप सत्य चुनते हैं। यही दुर्गा की विजय है।” —- शुम्भ और निशुम्भ: स्वार्थ और लोभ के जुड़वाँ भाई । देवताओं का दरबार सूना पड़ा था। इन्द्र का सिंहासन खाली था, सूर्य और चन्द्र का प्रकाश मंद पड़ चुका था। स्वर्गलोक में अब दो असुर भाइयों का शासन था,शुम्भ और निशुम्भ। शुम्भ ने घोषणा की,“अब सब कुछ हमारा है। आकाश के रत्न, समुद्र की संपदा, देवताओं के अस्त्र,सब।” निशुम्भ ने हँसकर कहा,”भाई, हमें संतोष क्यों? जितना है, उससे अधिक चाहिए। क्योंकि यदि हम ठहर गए, तो हम हार जाएंगे।” ये दोनों केवल शक्ति से नहीं, बल्कि इच्छा से चलते थे। शुम्भ का मन कहता-“हर सुंदर वस्तु, हर दिव्य सत्ता मेरी होनी चाहिए।” और निशुम्भ फुसफुसाता-“जो मिला है, वह काफी नहीं, और चाहिए।” पराजित देवता फिर हिमालय की शरण में पहुँचे। उन्होंने दुर्गा को याद किया। स्तुति की आवाज़ आकाश में गूँजी, और तभी एक अद्भुत रूप प्रकट हुआ,कौशिकी देवी। उनका चेहरा चमकदार, उनकी मुस्कान दृढ़। देवताओं ने कहा,”हे माता, शुम्भ और निशुम्भ ने हमें बेघर कर दिया है। वे लोभ और स्वार्थ से भरे हैं। उनकी छाया में हम सांस नहीं ले पा रहे।” देवी ने शांति से उत्तर दिया,”जो लोभ और स्वार्थ मनुष्य के भीतर आते हैं, वे बाहर भी साम्राज्य बनाते हैं। इन्हें तोड़ने के लिए पहले तुम्हें सत्य स्वीकारना होगा।” उधर शुम्भ और निशुम्भ ने देवी के सौंदर्य का वर्णन सुना। शुम्भ ने कहा,“इतनी सुंदरता भी हमारी होनी चाहिए। उसे यहीं लाओ।” उन्होंने अपना दूत भेजा।दूत ने देवी के चरणों में संदेश रखा,”मेरे स्वामी शुम्भ और निशुम्भ तुम्हें अपनी महारानी बनाना चाहते हैं। उनके पास आओ, और वैभव तुम्हारे पैरों में होगा।” देवी ने मुस्कराकर कहा,”मैंने प्रतिज्ञा की है। मैं उसी से विवाह करूँगी जो मुझे युद्ध में पराजित कर सके।” दूत ने यह उत्तर सुनाया। शुम्भ और निशुम्भ के चेहरे क्रोध से लाल हो गए। “वह एक स्त्री हमें चुनौती देती है?” शुम्भ गरजा।निशुम्भ ने कहा-“उसे सबक सिखाना होगा।” उन्होंने अपनी विशाल सेना भेजी धूम्रलोचन, चंड, मुंड और अनगिनत दैत्य युद्धभूमि में उमड़े।देवी सिंह पर आरूढ़ होकर गर्जीं। उनका स्वर पर्वतों से टकराकर गूँज उठा। धूम्रलोचन उनकी दृष्टि से ही भस्म हो गया। चंड और मुंड को उनकी भौं से प्रकट हुई काली ने मार डाला।अब शुम्भ और निशुम्भ स्वयं युद्धभूमि में उतरे। शुम्भ–निशुम्भ का मनोवैज्ञानिक अर्थ शुम्भ और निशुम्भ केवल दो दानव नहीं हैं, बल्कि मनुष्य के भीतर के दो गहरे पैटर्न हैं।शुम्भ है स्वार्थ (Possessiveness)वह कहता है-“हर सुंदरता मेरी होनी चाहिए। हर सफलता मेरी होनी चाहिए।”यह वह आवाज़ है जो दूसरों को वस्तु बना देती है।निशुम्भ है लोभ (Insatiable Desire)वह कहता है-“जो मिला है, वह पर्याप्त नहीं। और चाहिए। और चाहिए।”यह वह शक्ति है जो कभी संतोष नहीं होने देती। यदि आप इन दोनों को अनियंत्रित छोड़ देंगे तो वे आपके भीतर का स्वर्ग छीन लेंगे। आप कभी संतोष का अनुभव नहीं करेंगे, और न ही कोई संबंध पवित्र रहेगा। हर चीज़ लालच की वस्तु बन जाएगी।” देवी का कहना,“मैं तभी स्वीकार करूँगी जब तुम मुझे युद्ध में जीतोगे” यही मनोवैज्ञानिक अनुशासन है। जीवन में स्वार्थ और लोभ को हराना आसान शब्दों में नहीं होता। इसके लिए सीधा संघर्ष चाहिए। मनुष्य को अपने लोभ और स्वार्थ को सीधे चुनौती देनी होती है। आप कहानियाँ गढ़कर उन्हें सही नहीं ठहरा सकते। आपको मैदान में उतरना पड़ता है और खुद को अनुशासित करना पड़ता है। युद्ध भीषण था। शुम्भ ने हजारों अस्त्र चलाए, निशुम्भ ने पर्वतों जैसी गदा। देवी ने शांति से हर वार को रोका। उनका त्रिशूल, चक्र और बाण आसमान में चमकते।पहले निशुम्भ मारा गया। वह गिरते समय चिल्लाया—“भाई, हमें और चाहिए था… और…” उसकी आवाज़ हवा में विलीन हो गई।फिर शुम्भ अकेला रह गया। उसने कहा-“तुम अकेली नहीं हो, तुम्हारे साथ तुम्हारी शक्तियाँ हैं। यह असमान युद्ध है।” देवी ने उत्तर दिया-“ये सब मेरी ही शक्तियाँ हैं। मैं ही चंडी हूँ, मैं ही काली, मैं ही कौशिकी।” सभी शक्तियाँ उनमें लीन हो गईं। अब वे अकेली थीं। युद्ध पुनः आरंभ हुआ। आकाश काँप उठा। अंततः देवी ने शुम्भ को धराशायी किया। शुम्भ और निशुम्भ की कहानी हमें आज भी सिखाती है।जब स्वार्थ कहता है “सब कुछ मेरा होना चाहिए,” तब संबंध टूटते हैं।जब लोभ कहता है “और चाहिए,” तब शांति खो जाती है।और जब ये दोनों मिलते हैं, तब व्यक्ति अपनी सारी सकारात्मक ऊर्जा खो देता है।इसलिए दुर्गा का उत्तर यही है-तुम्हें लड़ना होगा। तुम्हें अपने स्वार्थ और लोभ का सामना करना होगा। आपके जीवन में शुम्भ और निशुम्भ हमेशा मौजूद रहेंगे। वे आपके कान में कहेंगे कि आपको सब कुछ चाहिए और कभी पर्याप्त नहीं। यदि आप इन्हें पहचानते नहीं, तो आप गुलाम बन जाएंगे। लेकिन यदि आप सजग रहते हैं, अनुशासन से उनका सामना करते हैं, तो आप पाएँगे कि असली सौंदर्य और संतोष बाहर नहीं, बल्कि भीतर है। यही दुर्गा की विजय है।” —- रक्तबीज: नकारात्मकता का पुनरुत्पादन युद्धभूमि धुएँ से भरी थी। चंड-मुंड के वध के बाद असुरराज शुंभ की आँखें लाल हो चुकी थीं। उसने अपने सबसे भयानक योद्धा को बुलाया-रक्तबीज। वह एक विचित्र दैत्य था। उसका वरदान था कि यदि उसकी देह से एक भी रक्त-बूंद गिरे तो वहाँ से एक नया असुर जन्म ले ले। उसकी हँसी गूँज उठी-“देवी, तुम लाख बार मुझे मारो, हर बार मेरी रक्त-बूंदें सेना बना देंगी। तुम्हारा अंत निश्चित है।” देवताओं के चेहरे पर भय छा गया। उन्हें लगा कि यह युद्ध असंभव है। रक्तबीज तलवार लेकर दौड़ा। दुर्गा ने बाण चलाया। बाण उसके कंधे में धँस गया। रक्त की धार फूटी और उसी क्षण सौ असुर वहाँ खड़े हो गए। “देखा?” रक्तबीज हँसा, “तुम मुझे जितना मारोगी, मैं उतना बढ़ूँगा।” दुर्गा ने त्रिशूल चलाया। फिर हजारों असुर खड़े हो गए। युद्धभूमि भर गई। देवता हताश हो उठे। वे सोचने लगे,”यदि यही चलता रहा तो यह युद्ध कभी ख़त्म नहीं होगा।” तभी दुर्गा की भौं से भयानक काली प्रकट हुईं। उनकी जीभ लाल, गला खोपड़ियों से भरा, आँखों से ज्वाला निकल रही थी। वे चिल्लाईं-“अब रक्त की एक भी बूंद धरती पर नहीं गिरेगी!” उन्होंने रक्तबीज को पकड़ा और जैसे ही दुर्गा ने वार किया, काली उसका रक्त पीने लगीं। उसका हर घाव काली की जिह्वा पर गिरता और वहीं नष्ट हो जाता। कोई नया असुर जन्म नहीं ले पाता।अंततः दुर्गा के त्रिशूल ने रक्तबीज की छाती चीर दी। काली ने उसका पूरा रक्त पी लिया। रक्तबीज धराशायी हो गया। रक्तबीज नकारात्मक विचारों और पैटर्न्स का प्रतीक है।आप ग़ुस्से को मारने की कोशिश करते हैं, तो वह और गुस्सैल हो जाता है।आप दुख को दबाते हैं, तो वह और रूपों में बाहर आता है।आप एक नकारात्मक सोच को हटाते हैं, तो उससे और नकारात्मकताएँ पैदा होती हैं।यही है रक्तबीज—नेगेटिव रिकर्शन ।एक विचार से सैकड़ों और विचार। मनुष्य का मन एक ऐसी ज़मीन है जहाँ नकारात्मकता का बीज गिरा तो वह असंख्य रूपों में उगता है। यदि आप केवल काटते रहेंगे, तो वे और बढ़ेंगे। आपको उनकी जड़ तक जाना होगा।” काली का रक्त पीना प्रतीक है—शैडो को कॉन्फ्रंट करना। आपको अपने सबसे अंधेरे हिस्से का सामना करना होगा। केवल दबाने से कुछ नहीं होगा। यदि आप अपने भीतर के ग़ुस्से, दुख और ईर्ष्या को स्वीकार नहीं करते, उन्हें पूरी तरह एब्सॉर्ब नहीं करते, तो वे बार-बार जन्म लेंगे। उन्हें निगलना होगा, ट्रांसफॉर्म करना होगा।” काली वही करती हैं। वे कहती हैं,“नकारात्मकता को भागने मत दो। उसे पकड़ो, उसे पचाओ, ताकि वह नया जीवन न ले सके।” हर इंसान अपने जीवन में रक्तबीज से जूझता है।आप गुस्से को दबाते हैं, वह और फूटता है।आप चिंता को रोकते हैं, वह और बढ़ती है।आप झूठ बोलकर एक समस्या छिपाते हैं, उससे दस और समस्याएँ जन्म लेती हैं।यही है रक्तबीज का चक्र। आपको अपने रक्तबीज को पहचानना होगा। कौन-सी आदत है जो बार-बार लौटती है? कौन-सा पैटर्न है जो एक को रोकने पर दस और पैदा करता है? वही आपका असली शत्रु है।” रक्तबीज से लड़ाई सिखाती है कि सामना करो, दबाओ मत।एब्सॉर्ब करो, ट्रांसफॉर्म करो।नेगेटिव रिकर्शन को पॉजिटिव एक्शन में बदलो।जैसे काली ने रक्त पीकर उसे नया जन्म लेने से रोका, वैसे ही मनुष्य को अपनी नकारात्मकता को आत्मसात कर उससे सीख लेनी चाहिए। तभी वह बढ़ना बंद करेगी। रक्तबीज आपके भीतर का वह पैटर्न है जो कहता है कि आप हमेशा पीड़ित हैं, हमेशा गुस्से में हैं, हमेशा डर में हैं। आप उसे मारने की कोशिश करेंगे, तो वह और बढ़ेगा। लेकिन यदि आप उसे अपनी आँखों में देखें, उसे स्वीकारें, उसकी जिम्मेदारी लें,तो वह मर जाएगा। तभी आप मुक्त होंगे। तभी आप अपने जीवन के सच्चे निर्माता बनेंगे। #durga puja
durga puja - saf: Il I( 489 श्रीदुर्गासप्तशती सचित्र हिन्दी अनुवाद तथा पाठ विधि सहित 942 गीताप्रेस, गोरखपुर saf: Il I( 489 श्रीदुर्गासप्तशती सचित्र हिन्दी अनुवाद तथा पाठ विधि सहित 942 गीताप्रेस, गोरखपुर - ShareChat
#🌸शुभ शुक्रवार🙏
🌸शुभ शुक्रवार🙏 - १२ सितम्बर ೯ चाहते हो तो सेवा करो, जानना चाहते हो तो करना अपनेआप को जानो और मानना चाहते हो तो प्रभु 86 को मानो-्तीर्नों का परिणाम एक  = 8 5 4 9 চ ೩ புசிஅ@ 1 शुभ शुक्वार श्रीदुर्गायै नमः 3 91 श्रीजी की चरण सेवा १२ सितम्बर ೯ चाहते हो तो सेवा करो, जानना चाहते हो तो करना अपनेआप को जानो और मानना चाहते हो तो प्रभु 86 को मानो-्तीर्नों का परिणाम एक  = 8 5 4 9 চ ೩ புசிஅ@ 1 शुभ शुक्वार श्रीदुर्गायै नमः 3 91 श्रीजी की चरण सेवा - ShareChat
#✍ आदर्श कोट्स
✍ आदर्श कोट्स - Sep, 2025 एक कदम शांति की ओर जब परमेश्वर आपको सफल बनाना चाहता है, तो वह सबसे पहले आपका आराम छीन लेेगा , वह आपके धैर्य की परीक्षा लेेगा , वह आपको अलग-्थलग कर देगा , चुनौती देगा , क्योंकि इससे पहले वह आपके विश्वास को कि वह आपको वह जीवन दे जिसका आप सपना देखते हैं, वह आपका वह संस्करण बनाता है जो उसे संभाल सकता है। ভক্র ক্রভ্রম থাঁনি ক্রী স্ীয Follow श्री कृष्णा मित्रो जय Sep, 2025 एक कदम शांति की ओर जब परमेश्वर आपको सफल बनाना चाहता है, तो वह सबसे पहले आपका आराम छीन लेेगा , वह आपके धैर्य की परीक्षा लेेगा , वह आपको अलग-्थलग कर देगा , चुनौती देगा , क्योंकि इससे पहले वह आपके विश्वास को कि वह आपको वह जीवन दे जिसका आप सपना देखते हैं, वह आपका वह संस्करण बनाता है जो उसे संभाल सकता है। ভক্র ক্রভ্রম থাঁনি ক্রী স্ীয Follow श्री कृष्णा मित्रो जय - ShareChat
. पितृपक्ष में पितरों को जल देना . पितृ तर्पण के लिए दक्षिणमुखी होकर जल और तिल से अपना गोत्र और पितरों का नाम लेकर तीन तीन अंजलियाँ दें। मंत्र इस प्रकार है :--- अमुक गोत्रः अस्मत्पिता/ अस्मत्पितामह/ अस्मद् प्रपितामह/ अस्मद् वृद्ध प्रपितामह, अमुक शर्मा तिलोदकं जलं तस्मै स्वधा नमः , तस्मै स्वधा नमः , तस्मै स्वधा नमः । अमुक गोत्रः की जगह अपना गोत्र का नाम और अपने पितरों का नाम लेकर उपर लिखे मंत्र से तीन तीन अंजलियाँ जल दें। हर पितरों को अलग अलग जल दें। पिता, पितामह (दादा), प्रपितामह (परदादा) और इनसे ऊपर की पीढ़ी सभी वृद्ध प्रपितामह में आते हैं। यज्ञोपवीतधारी अपशव्य होकर जल दें अर्थात् जनेऊ को उल्टा करके यानि बायें कंधे से जनेऊ को दायें कंधे पर करलें और तब जलांजलि दें। जल देने के बाद जनेऊ को सीधा करलें। परहेज :---पितृ पक्ष में मांस ,मछली, मदिरा, प्याज, लहसुन, सलजम, गाजर, मसुर दाल, बैगन, नेनुआं, और मैथुन वर्जित है। इनका सेवन नहीं करना चाहिए। इस वर्ष पितृपक्ष 8 सितम्बर 2025 को प्रारंभ हो रहा है और 21 सितम्बर 2025 को समाप्त हो रहा है। ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र #❤️जीवन की सीख
❤️जीवन की सीख - sipRu Ja9a  com भचवाना रामा नै भf यह्वा किया्थाा पिंडदान sipRu Ja9a  com भचवाना रामा नै भf यह्वा किया्थाा पिंडदान - ShareChat
#✍ आदर्श कोट्स
✍ आदर्श कोट्स - Sep, 2025 31 आज की प्रेरणा में हों, आलोचकों की जब भी आप सफलता की तलाश न सुनें। आलोचक आपको धीमा करना बात कभी चाहते हैं क्योंकि ईर्ष्या उन्हें वह करने से रोकती है जो चाहते हैं। इसके बजाय , उन लोगों की बात आप करना सुनें जो आपसे पहले गए हैं और जिनके पास ज्ञान है। उनके दिल इस सफ़र की क़ीमत जानते हैं, इसलिए वे आपको तोड़ने के बजाय ऊपर उठाते हैं। ज्ञान निर्माण करता है। आलोचना विनाश करती है। Follow @Hindi Motivational Quotes Whenever You pursue success, never listen fo the crifics. Critics aim to slow you down because jealousy keeps them] from doing what you're willing to do Instead, listen tol fhose who have gone before you and carry wisdom Their they uplift instead heorts know the cost of the journey, so of fearing down Wisdom builds Criticism destroys Sep, 2025 31 आज की प्रेरणा में हों, आलोचकों की जब भी आप सफलता की तलाश न सुनें। आलोचक आपको धीमा करना बात कभी चाहते हैं क्योंकि ईर्ष्या उन्हें वह करने से रोकती है जो चाहते हैं। इसके बजाय , उन लोगों की बात आप करना सुनें जो आपसे पहले गए हैं और जिनके पास ज्ञान है। उनके दिल इस सफ़र की क़ीमत जानते हैं, इसलिए वे आपको तोड़ने के बजाय ऊपर उठाते हैं। ज्ञान निर्माण करता है। आलोचना विनाश करती है। Follow @Hindi Motivational Quotes Whenever You pursue success, never listen fo the crifics. Critics aim to slow you down because jealousy keeps them] from doing what you're willing to do Instead, listen tol fhose who have gone before you and carry wisdom Their they uplift instead heorts know the cost of the journey, so of fearing down Wisdom builds Criticism destroys - ShareChat
#✍ आदर्श कोट्स
✍ आदर्श कोट्स - Sep, 2025 2 आज की प्रेरणा @Iindi Qunte चिकनी सड़कें कभी अच्छे ड्राइवर नहीं बनातीं.. शांत समुद्र कभी अच्छे नाविक नहीं बनाता.. साफ आसमान कभी अच्छे पायलट नहीं बनाता. समस्या मुक्त जीवन कभी भी एक मजबूत और अच्छा इंसान नहीं बनाता.. जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए पर्याप्त मजबूत बनें.. Follow @Hindi Motivational Quotes Smooth roads never make good drivers_| Smooth sea never make good sailors. pilots. Clear skies never make good Problem free life never makes a strong] good person.. Be strong enough to accept the challenges of life.. Sep, 2025 2 आज की प्रेरणा @Iindi Qunte चिकनी सड़कें कभी अच्छे ड्राइवर नहीं बनातीं.. शांत समुद्र कभी अच्छे नाविक नहीं बनाता.. साफ आसमान कभी अच्छे पायलट नहीं बनाता. समस्या मुक्त जीवन कभी भी एक मजबूत और अच्छा इंसान नहीं बनाता.. जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए पर्याप्त मजबूत बनें.. Follow @Hindi Motivational Quotes Smooth roads never make good drivers_| Smooth sea never make good sailors. pilots. Clear skies never make good Problem free life never makes a strong] good person.. Be strong enough to accept the challenges of life.. - ShareChat
#🙏श्री तिरुपति बालाजी 🚩 #👌अच्छी और रोचक जानकारी😇
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00:52
#👉 लोगों के लिए सीख👈 #👌 अच्छी सोच👍
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