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अल्लाह तआला ने हर छोटी बड़ी चीज़ को हिकमत व मसलेहत के साथ पैदा फ़र्माया है, इन्सान ऑक्सीज़न के बग़ैर ज़िन्दा नहीं रह सकता, इस लिये अल्लाह तआला ने साँस के ज़रिये ताज़ी हवा को खींचने और गंदी हवा को बाहर निकालने का निज़ाम बना दिया।
मगर अल्लाह की क़ुदरत व हिकमत का कमाल देखिये कि उसने फ़ज़ा में मौजूद ग़र्द व ग़ुब्बार से बचने के लिये नाक के अन्दर बाल और चिकना माद्दा पैदा कर दिया जिस की वजह से जरासीम माददे अन्दर तक नहीं जा पाते, इस तरह इन्सान नाक और फेफड़ों की बहुत सी बीमारियों से महफूज़ हो जाता है।
वाक़ई अल्लाह तआला ने अपनी क़ुदरत से मामूली सी चीज़ों के ज़रिये इन्सान को बड़ी बड़ी बीमारियों से महफ़ूज़ कर दिया है। #💫کُنْ فَیَکون✨ #🕌نماز #📖اسلامی واقعات 🕌 #🕌دینی مسائل🕮 #💓روحانی تسکین💖
पत्तों में अल्लाह की क़ुदरत
अल्लाह तआला ने जिस तरह इन्सानी जिस्म में ख़ून की गरदिश के लिये रगें बनाई, इसी तरह पत्तों के अन्दर भी पानी सप्लाई करने के लिये बारीक जाल बिछा दिया। यह पौधे को पानी और गर्मी पहुँचाने का काम करते हैं।
अगर यह बारीक मसामात पत्तों के ऊपर होते, तो सूरज की गर्मी से बचने के लिये पौधे से पानी को निकालते रहते जिस के नतीजे में पौधा सूख जाता।
मगर अल्लाह तआला ने अपनी क़ुदरत से उन मसामात को पत्तों के अन्दर बना कर पौधों को सूखने से महफ़ूज़ कर दिया। #📖نبی ﷺ کا فرمان♥ #🕌دینی مسائل🕮 #🥰 الله اکبر 🤗 #📝اسلام کا پیغام 🕌 #📝روحانی مکتوبات☪️
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📮तर्बियत व इस्लाह और सलफ़ी रहनुमा उसूल
✍️मुअल्लिफ़: अब्दुल्लाह बिन सालेह
✍🏻मुराज'आ व तक़दीम: शैख़ सालेह फ़ौज़ान हाफ़िज़ाहुल्लाह
✍🏼उर्दू मुतर्जिम: अजमल मंज़ूर मदनी
✍🏻हिंदी मुतर्जिम: हसन फ़ुज़ैल
1️⃣पहला उसूल
🕋दीन दो अज़ीम उसूलों पर मबनी है: इख़लास और नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुताब'अत (पैरवी)।
➡️पहला: इख़लास: जैसा कि इरशाद बारी तआला है:
"(وَمَنْ أَحْسَنُ دِينًا مِمَّنْ أَسْلَمَ وَجْهَهُ لِلَّهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ وَاتَّبَعَ مِلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا وَاتَّخَذَ اللَّهُ إِبْرَاهِيمَ خَلِيلًا)"
✨तर्जमा: और दीन के लिहाज़ से उस से बेहतर कौन है जिसने अपना चेहरा अल्लाह के लिए ताबे कर दिया, जब कि वह नेकी करने वाला हो और उसने इब्राहीम की मिल्लत की पैरवी की, जो एक (अल्लाह की) तरफ़ हो जाने वाला था और अल्लाह ने इब्राहीम को ख़ास दोस्त बना लिया। (अन-निसा: 125)
और भी इरशाद बारी तआला है:
"(وَمَا أُمِرُوا إِلَّا لِيَعْبُدُوا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ حُنَفَاءَ وَيُقِيمُوا الصَّلَاةَ وَيُؤْتُوا الزَّكَاةَ وَذَٰلِكَ دِينُ الْقَيِّمَةِ)"
✨तर्जमा: और उन्हें इसके सिवा हुक्म नहीं दिया गया कि वे अल्लाह की इबादत करें, इस हाल में कि उसके लिए दीन को ख़ालिस करने वाले, एक तरफ़ होने वाले हों, और नमाज़ क़ाइम करें और ज़कात दें, और यही मज़बूत मिल्लत का दीन है। (अल-बैयिना: 5)
फिर इरशाद है:
"(قُلْ إِنِّي أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ اللَّهَ مُخْلِصًا لَهُ الدِّينَ * وَأُمِرْتُ لِأَكُونَ أَوَّلَ الْمُسْلِمِينَ)"
✨तर्जमा: आप कह दीजिए! कि मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं अल्लाह तआला की इस तरह इबादत करूँ कि उसी के लिए इबादत को ख़ालिस कर लूँ और मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं सब से पहला फ़रमाँबरदार बन जाऊँ। (अज़-ज़ुमर: 11-12)
🍀और हदीस में वारिद हुआ है:
हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
"إِنَّمَا الْأَعْمَالُ بِالنِّيَّةِ، وَإِنَّمَا لِكُلِّ امْرِئٍ مَا نَوَى، فَمَنْ كَانَتْ هِجْرَتُهُ إِلَى اللَّهِ وَرَسُولِهِ، فَهِجْرَتُهُ إِلَى اللَّهِ وَرَسُولِهِ، وَمَنْ كَانَتْ هِجْرَتُهُ لِدُنْيَا يُصِيبُهَا، أَوِ امْرَأَةٍ يَنْكِحُهَا، فَهِجْرَتُهُ إِلَى مَا هَاجَرَ إِلَيْهِ"
✨तर्जमा: अमल का एतिबार नीयत से है और आदमी के लिए वही है जो उसने नीयत की, फिर जिसकी हिजरत अल्लाह और उसके रसूल के लिए है तो उसकी हिजरत अल्लाह और उसके रसूल के लिए ही है, और जिसकी हिजरत दुनिया कमाने या किसी औरत से निकाह करने के लिए है तो उसकी हिजरत उसी के लिए है जिसकी नीयत उसने की। (सहीह मुस्लिम: 1907)
2️⃣दूसरा उसूल:
नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुताब'अत, ब-ईं तौर कि हमारा अमल रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत के मुवाफ़िक़ हो।
इरशाद बारी तआला है:
"(الَّذِي خَلَقَ الْمَوْتَ وَالْحَيَاةَ لِيَبْلُوَكُمْ أَيُّكُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا وَهُوَ الْعَزِيزُ الْغَفُورُ)"
✨तर्जमा: वह जिसने मौत और ज़िंदगी को पैदा किया ताकि तुम्हें आज़माए कि तुम में से कौन अमल में ज़्यादा अच्छा है और वही सबसे गालिब और बेहद बख़्शने वाला है। (अल-मुल्क: 2)
🔊फ़ुज़ैल बिन अयाज़ रहिमहुल्लाह ने फ़रमाया:
अच्छे अमल से मुराद वह अमल है जो ख़ालिस और दुरुस्त हो। पूछा गया कि ख़ालिस और दुरुस्त से क्या मुराद है? कहा कि ख़ालिस से मुराद वह अमल है जो अल्लाह की रज़ा के लिए हो और दुरुस्त वह अमल है जो सुन्नत के मुताबिक़ हो। (तफ़सीर बग़वी: 8/176)
इरशाद बारी तआला है:
"(قُلْ إِن كُنتُمْ تُحِبُّونَ اللَّهَ فَاتَّبِعُونِي يُحْبِبْكُمُ اللَّهُ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ ۗ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ)"
✨तर्जमा: कह दीजिए! अगर तुम अल्लाह तआला से मोहब्बत रखते हो तो मेरी पैरवी करो, अल्लाह तआला तुमसे मोहब्बत करेगा और तुम्हारे गुनाह माफ़ कर देगा और अल्लाह तआला बड़ा बख़्शने वाला और रहम करने वाला है। (आल-ए-इमरान: 31)
✅हदीस में भी फ़रमाया गया:
हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
"مَنْ أَحْدَثَ فِي أَمْرِنَا هَذَا مَا لَيْسَ مِنْهُ فَهُوَ رَدٌّ"
✨तर्जमा: जो शख़्स हमारे इस दीन में कोई नई बात निकाले जो उसमें नहीं है (यानी बिना दलील के), वह रद्द है।
और दूसरी रिवायत में है:
"مَنْ عَمِلَ عَمَلًا لَيْسَ عَلَيْهِ أَمْرُنَا فَهُوَ رَدٌّ"
✨तर्जमा: जो शख़्स ऐसा काम करे जिसके लिए हमारा हुक्म न हो (यानी दीन में ऐसा अमल निकाले), वह मर्दूद है। (सहीह मुस्लिम: 1718)
👉इन दोनों उसूलों की रोशनी में लोगों की चार किस्में हैं:
1️⃣पहली क़िस्म: वे लोग जो अपने अमल में मुख़लिस होते हैं और सुन्नत की मुताबअत करते हैं। यही असल में "इय्याका नअबुदु" वाले हैं, क्योंकि इनका सारा अमल अल्लाह के लिए होता है।
वे जो भी बोलते हैं, अल्लाह की ख़ातिर बोलते हैं। इनका लेना देना, रोना, हँसना, दोस्ती, दुश्मनी, सब अल्लाह के लिए होता है।
इनकी सारी इबादत और आमाल अल्लाह के हुक्म और उसकी मर्ज़ी के मुताबिक़ होते हैं।
ऐसे ही अमल को अल्लाह तआला क़बूल करता है, और इसी लिए अल्लाह ने बंदों को मौत और हयात के ज़रिए आज़माया है। जैसा कि इरशाद बारी तआला है:
"(الَّذِي خَلَقَ الْمَوْتَ وَالْحَيَاةَ لِيَبْلُوَكُمْ أَيُّكُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا وَهُوَ الْعَزِيزُ الْغَفُورُ)"
✨तर्जमा: वह जिसने मौत और ज़िंदगी को पैदा किया, ताकि वह तुम्हें आज़माए कि तुम में कौन अमल में ज़्यादा अच्छा है और वही सब पर ग़ालिब और बेहद बख़्शने वाला है। (अल-मुल्क: 2)
🔊फ़ुज़ैल बिन अयाज़ रहिमहुल्लाह ने कहा: अच्छे अमल से मुराद वो अमल है जो ख़ालिस और दुरुस्त हो। पूछा गया कि ख़ालिस और दुरुस्त से क्या मुराद है? कहा कि ख़ालिस से मुराद वो अमल है जो अल्लाह की रज़ा जुई के लिये हो और दुरुस्त वो अमल है जो सुन्नत के मुताबिक़ हो। (तफ़्सीर बग़वी: 8/176)
यही चीज़ अल्लाह के इस क़ौल में मज़कूर है:
(فَمَن كَانَ يَرْجُو لِقَاءَ رَبِّهِ فَلْيَعْمَلْ عَمَلًا صَالِحًا وَلَا يُشْرِكْ بِعِبَادَةِ رَبِّهِ أَحَدًا)
✨तर्जमा: पस जो शख़्स अपने रब की मुलाक़ात की उम्मीद रखता हो तो लाज़िम है कि वो अमल करे नेक अमल और अपने रब की इबादत में किसी को शरीक न बनाए। (अल-कहफ़: 110)
मज़ीद इरशाद बारी तआला है:
(وَمَنْ أَحْسَنُ دِينًا مِمَّنْ أَسْلَمَ وَجْهَهُ لِلَّهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ وَاتَّبَعَ مِلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا وَاتَّخَذَ اللَّهُ إِبْرَاهِيمَ خَلِيلًا)
✨तर्जमा: और दीन के लिहाज़ से उस से बेहतर कौन है जिसने अपना चेहरा अल्लाह के लिये ताबे कर दिया, जब कि वो नेक आमाल करने वाला हो और उसने इब्राहीम की मिल्लत की पैरवी की, जो एक (अल्लाह की) तरफ़ हो जाने वाला था, और अल्लाह ने इब्राहीम को ख़ास दोस्त बना लिया। (अन-निसा: 125)
चुनांचे जो अमल ख़ालिस और सुन्नत के मुआफ़िक़ होगा वही मक़बूल होगा,
बसूरत-ए-दिगर मर्दूद हो जाएगा, हालाँकि उसे उस वक़्त अमल की सख़्त ज़रूरत होगी मगर उसे गर्द-ओ-ग़ुबार बनाकर उड़ा दिया जाएगा, जैसा कि इस हदीस के अन्दर वारिद हुआ है:
عن عائشة، قالت: أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال: "من عمل عملاً ليس عليه أمرنا فهو ردّ"
✨तर्जमा: उम्मुल मोमिनीन सय्यदा आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "जो शख़्स ऐसा काम करे जिसके लिये हमारा हुक्म न हो (यानी दीन में ऐसा अमल निकाले) तो वो मर्दूद है" (सहीह मुस्लिम: 1718)
चुनांचे कोई भी अमल बग़ैर इक़्तिदा के अल्लाह से दूरी का नतीजा होगा,
क्योंकि अल्लाह की इबादत उसके हुक्म के मुताबिक़ होगी न कि आरा और ख़्वाहिशात के मुताबिक़।
दूसरी क़िस्म: वो लोग जिन के पास न तो इख़लास है और न ही सुन्नत की मुताबअत।
चुनांचे उनका अमल न तो शरियत के मुआफ़िक़ है और न ही अल्लाह के लिये ख़ालिस है, जैसे कि उन लोगों का वो अमल जो लोगों को दिखाने के लिये करते हैं जबकि इस अमल को अल्लाह और उसके रसूल ने मशरू नहीं किया है। ये बुरे लोग हैं और अल्लाह के नज़दीक बहुत ही मबग़ूज़ हैं। इन्हीं के लिये ये आयत नाज़िल हुई है:
(لَا تَحْسَبَنَّ الَّذِينَ يَفْرَحُونَ بِمَا أَتَوْا وَيُحِبُّونَ أَنْ يُحْمَدُوا بِمَا لَمْ يَفْعَلُوا فَلَا تَحْسَبَنَّهُمْ بِمَفَازَةٍ مِنَ الْعَذَابِ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ)
✨तर्जमा: इन लोगों को हरगिज़ ख़्याल न कर जो उन (कामों) पर ख़ुश होते हैं जो उन्होंने किये और पसन्द करते हैं कि उनकी तारीफ़ उन (कामों) पर की जाये जो उन्होंने नहीं किये, पस तू उन्हें अज़ाब से बच निकलने में कामयाब हरगिज़ ख़्याल न कर और उनके लिये दर्दनाक अज़ाब है। (आल-इ-इमरान: 188)
🔥ये बिदअतें, गुमराही और शिर्क का इर्तिकाब करके ख़ुश होते हैं लेकिन ये चाहते हैं कि इत्तिबा-ए-सुन्नत और इख़लास पर इनकी तारीफ़ की जाए, और ये हालत अक्सर उन लोगों की होती है जो सिरात-ए-मुस्तक़ीम से मुनहरिफ़ होते हैं कि ये शिर्क-ओ-बिदअत, गुमराहियों और रिया व नमूद का इर्तिकाब करते हैं लेकिन चाहते हैं कि इत्तिबा-ए-सुन्नत और इख़लास पर इनकी तारीफ़ की जाए, यही हक़ीक़त में ग़ज़ब-ए-इलाही और गुमराही वाले हैं।
3️⃣तीसरी क़िस्म: वो लोग जो अमल में मुख़लिस होते हैं लेकिन सुन्नत की मुताबअत नहीं होती,
जैसे कि जाहिल इबादत गुज़ार और ज़ोहद-ओ-वरा और फ़क़्र की तरफ़ ख़ुद को मन्सूब करने वाले।
चुनांचे जो भी अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ उसकी इबादत नहीं करेगा और उस इबादत को क़ुर्बत-ए-इलाही का ज़रिया समझेगा, उसका हाल उसी तरह होगा जैसे कि कुफ़्फ़ार-ए-मक्का ताली बजाने और शोर मचाने को इबादत समझते थे,
और जैसे वो शख़्स जो जुमा जमाअत को छोड़कर गोशा नशीनी इख़्तियार करने को क़ुर्बत-ए-इलाही समझता है
और इसी तरह जिस दिन लोग रोज़ा नहीं रखते, उसी दिन रोज़ा रख कर वो इसे नेक़ी समझता है
और इसी तरह दीगर मिसालें।
4️⃣चौथी क़िस्म: वो लोग जिनका अमल सुन्नत के मुताबिक़ तो है मगर उसमें इख़लास नहीं है,
जैसे कि रिया कारी करने वाले,
और जैसे वो शख़्स जो जंग करता है रिया व नमूद और बहादुरी की ख़ातिर, और इसी तरह हज करता है और क़ुरआन पढ़ता है ताके उसे हाजी और क़ारी कहा जाये।
सो इन लोगों के आमाल बज़ाहिर ठीक हैं मगर उनमें इख़लास नहीं है, इसी लिये वो ग़ैर मक़बूल हैं,
इरशाद-ए-बारी तआला है:
(وَمَا أُمِرُوا إِلَّا لِيَعْبُدُوا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ حُنَفَاءَ وَيُقِيمُوا الصَّلَاةَ وَيُؤْتُوا الزَّكَاةَ وَذَٰلِكَ دِينُ الْقَيِّمَةِ)
✨तर्जमा: और उन्हें इस के सिवा हुक्म नहीं दिया गया कि वो अल्लाह की इबादत करें, इस हाल में कि उसके लिये दीन को ख़ालिस करने वाले, एक तरफ़ होने वाले हों और नमाज़ क़ाइम करें और ज़कात दें और यही मज़बूत मिल्लत का दीन है। (अल-बय्यिना: 5)
📚(मदारिज़ उस-सालिकीन लि-इब्न अल-क़य्यिम: 1/83)
🔊शैख़ सालेह अल-फ़ौज़ान हफ़िज़हुल्लाह ने कहा:
अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन वस्सलातु वस्सलामु अला नबीय्यिना मुहम्मद व अला आलिहि व अस्हाबिहि अज्मईन, अम्मा बाद:
लोगों के दरमियान इख़्तिलाफ़ का वजूद क़दीम ज़माने ही से है, और मज़ाहिब भी इसी लिये मुख़तलिफ़ हैं।
इरशाद बारी तआला है:
(كَانَ النَّاسُ أُمَّةً وَاحِدَةً فَبَعَثَ اللَّهُ النَّبِيِّينَ مُبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ وَأَنزَلَ مَعَهُمُ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ لِيَحْكُمَ بَيْنَ النَّاسِ فِيمَا اخْتَلَفُوا فِيهِ وَمَا اخْتَلَفَ فِيهِ إِلَّا الَّذِينَ أُوتُوهُ مِن بَعْدِ مَا جَاءَتْهُمُ الْبَيِّنَاتُ)
✨तर्जमा: सब लोग एक ही उम्मत थे, फिर अल्लाह ने नबी भेजे, ख़ुश-ख़बरी देने वाले और डराने वाले, और उनके साथ हक़ के साथ किताब उतारी, ताके वो लोगों के दरमियान उन बातों का फ़ैसला करें जिनमें उन्होंने इख़्तिलाफ़ किया था, और इसमें इख़्तिलाफ़ उन्हीं लोगों ने किया जिन्हें वो दी गई थी, इस के बाद कि उनके पास वाज़ेह दलीलें आ चुकी थीं। (अल-बक़रह: 213)
मज़ीद इरशाद बारी तआला है:
(وَمَا كَانَ النَّاسُ إِلَّا أُمَّةً وَاحِدَةً فَاخْتَلَفُوا وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِن رَّبِّكَ لَقُضِيَ بَيْنَهُمْ فِيمَا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ)
✨तर्जमा: और नहीं थे लोग मगर एक ही उम्मत, फिर वो जुदा-जुदा हो गये, और अगर वो बात न होती जो तेरे रब की तरफ़ से पहले तय हो चुकी, तो उनके दरमियान उस बात के बारे में ज़रूर फ़ैसला कर दिया जाता जिस में वो इख़्तिलाफ़ कर रहे हैं। (यूनुस: 19)
👉चुनांचे लोगों के दरमियान इख़्तिलाफ़ ज़माना-ए-क़दीम ही से है मगर अल्लाह ने उनकी तरफ़ रसूलों को भेजता रहा है और उनकी तरफ़ किताबें नाज़िल करता रहा है ताके उनके ज़रिये लोगों के इख़्तिलाफ़ी उमूर में फ़ैसला करें,
क्योंकि अल्लाह तक पहुँचाने वाला नहज और सिरात-ए-मुस्तक़ीम एक ही है, इसमें कोई इख़्तिलाफ़ नहीं है।
इरशाद बारी तआला है:
(وَأَنَّ هَٰذَا صِرَاطِي مُسْتَقِيمًا فَاتَّبِعُوهُ وَلَا تَتَّبِعُوا السُّبُلَ فَتَفَرَّقَ بِكُمْ عَن سَبِيلِهِ ذَٰلِكُمْ وَصَّاكُم بِهِ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ)
✨तर्जमा: और यह कि यही मेरा रास्ता है सीधा, पस इस पर चलो और दूसरे रास्तों पर न चलो कि वो तुम्हें उसके रास्ते से जुदा कर देंगे। यही है जिसका ताक़ीदी हुक्म उसने तुम्हें दिया है, ताकि तुम बच जाओ। (अल-अनआम: 153)
जबकि मज़ाहिब, आरा और मनाहिज बहुत हैं, और यह सब इंसानी वज़-कर्दा (घड़ा हुआ) हैं, जिनका कोई शुमार नहीं है, क्योंकि हर फ़र्द और गिरोह के पास नया तरीक़ा और नसीज (बनावट) है जिसकी वह पैरवी करता है, जबकि अल्लाह की तरफ़ ले जाने वाला रास्ता एक ही है, और वह रसूलों का रास्ता है जिनके बारे में इरशाद बारी तआला है:
"(وَمَنْ يُطِعِ اللَّهَ وَالرَّسُولَ فَأُولَئِكَ مَعَ الَّذِينَ أَنْعَمَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ مِنَ النَّبِيِّينَ وَالصِّدِّيقِينَ وَالشُّهَدَاءِ وَالصَّالِحِينَ وَحَسُنَ أُولَئِكَ رَفِيقًا)"
✨तर्जमा: और जो अल्लाह और रसूल की फ़रमाँबरदारी करे तो यह उन लोगों के साथ होंगे जिन पर अल्लाह ने इनआम किया नबियों और सिद्दीक़ों और शुहदा और सालेहीन में से और यह लोग अच्छे साथी हैं। (अन-निसा: 69)
और एक और इरशाद बारी तआला है:
"(اهْدِنَا الصِّرَاط الْمُسْتَقِيمَ)"
✨तर्जमा: हमें सीधे रास्ते पर चला। (अल-फ़ातिहा: 6)
इस मनहज और रास्ते की वज़ाहत ज़रूरी है ताकि लोग इसे समझ कर उसी की पैरवी करें और हिदायत पर क़ाइम रहें और दीगर मनाहिज, मज़ाहिब, अक़वाल व आरा और रास्तों से दूर रहें।
🖼️हर ज़माने में लोगों को ज़रूरत रही है कि उन्हें उसी रास्ते की तरफ़ रहनुमाई की जाए जो अल्लाह तक पहुँचाने वाला हो, जो कि रब्बानी मनहज है, जिसके अंदर इख़लास और मुताबअत-ए-सुन्नत का होना ज़रूरी है। चुनाँचे जो इन दोनों औसाफ़ से मुत्तसिफ़ होगा, यानी उसकी इबादत में और उसके तमाम अक़वाल व अफ़आल में और उसकी नीयतों और मक़ासिद में इख़लास होगा और अपने तमाम सलूक व मनहज और इबादत में सुन्नत की मुताबअत करता हो, तो गोया वह उसी राह पर गामज़न है जिसे सिरात-ए-मुस्तक़ीम कहते हैं। इस पर बहुत सारी आयतें और हदीसें दलालत करती हैं:
इरशाद बारी तआला है:
"(بَلَى مَنْ أَسْلَمَ وَجْهَهُ لِلَّهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ فَلَهُ أَجْرُهُ عِنْدَ رَبِّهِ وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ)"
✨तर्जमा: क्यों नहीं, जिसने अपना चेहरा अल्लाह के ताबे कर दिया और वह नेकी करने वाला हो तो उसके लिए उसका अज्र उसके रब के पास है और न उन पर कोई ख़ौफ़ है और न वह ग़मगीन होंगे। (अल-बक़रा: 112)।
इस आयत के अंदर रद्द है उन यहूद व नसारा पर जिन्होंने कहा था कि जन्नत में सिर्फ़ वही जाएगा जो यहूदी या ईसाई होगा। जैसा कि सूरह बक़रा आयत नंबर (111) के अंदर वारिद हुआ है, चुनाँचे यहाँ पर उनकी तर्दीद की गई कि जन्नत में वह जाएगा जिसने अपना चेहरा अल्लाह के ताबे कर दिया और वह नेकी करने वाला हो। अब इसके अलावा दूसरे लोग जन्नत में नहीं जाएँगे, गरचे वह दावा करे कि वही जन्नत में जाएगा, या यह दावा करे कि उसके सिवा कोई जन्नत में नहीं जाएगा।
✅"अपना चेहरा अल्लाह के ताबे कर दिया" इस से इख़लास मुराद है, और
✅"नेकी करने वाला हो" इस से मुराद सुन्नत की पैरवी करना है, क्योंकि कोई अमल कितने ही इख़लास से क्यों न किया जाए अगर वह सुन्नत के मुताबिक़ नहीं है तो अल्लाह के नज़दीक वह अमल मक़बूल नहीं होगा, इसी तरह अगर सुन्नत के मुताबिक़ है मगर उसमें इख़लास नहीं तो वह भी मर्दूद होगा। इसलिए अमल के अंदर ज़रूरी है कि उसके अंदर इख़लास और शरीअत-ए-मुहम्मदिया के मुताबिक़ हो।
🔊यह पहला क़ायदा है जिसके अंदर यह वाज़ेह किया गया कि इख़लास और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुताबअत ज़रूरी है, क्योंकि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि आमाल का दारोमदार नीयत पर है, गोया ज़ाहिरी अमल का कोई एतिबार नहीं है, एतिबार नीयत और मक़सद का है, अगर मक़सद और नीयत में इख़लास है और सुन्नत के मुताबिक़ है तो वही अमल नाफ़े है लेकिन अगर अमल में इख़लास नहीं है बल्कि ग़ैर अल्लाह के लिए है तो वह अमल न तो सालेह होगा और न ही मक़बूल होगा, इसी लिए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जिसकी हिजरत अल्लाह और उसके रसूल की ख़ातिर होगी तो उसकी हिजरत अल्लाह और उसके रसूल के लिए मानी जाएगी। लोग हिजरत करते हैं इस तौर पर कि एक जगह से दूसरी जगह मुन्तक़िल होते हैं लेकिन उनके मक़ासिद मुख़तलिफ़ होते हैं, चुनाँचे जिसकी हिजरत दीन और अल्लाह की रज़ा की ख़ातिर होगी उसी की हिजरत सही होगी, और वही 'इंदल्लाह मक़बूल होगी लेकिन जिसकी हिजरत दुनिया कमाने की ख़ातिर होगी तो वह गरचे ब-ज़ाहिर अल्लाह और उसके रसूल के लिए हिजरत कर रहा होगा मगर उसकी हिजरत उसी के लिए होगी जिसकी उसने नीयत की होगी, ख़्वाह वह नीयत तिजारत की हो या औरत से शादी करने की हो, गरचे उसने दूसरे मुहाजिरीन के साथ हिजरत की हो लेकिन चूँकि उसकी नीयत ग़ैर अल्लाह की है, इसलिए उसकी हिजरत अल्लाह और उसके रसूल के लिए नहीं होगी, क्योंकि अल्लाह तआला नीयतों को जानता है, वही अमल का बदला देता है – किसके दिल में कितना इख़लास है और कितना शिर्क है उसी एतिबार से उसे बदला देता है। #📖نبی ﷺ کا فرمان♥ #🕌دینی مسائل🕮 #🥰 الله اکبر 🤗 #📝اسلام کا پیغام 🕌 #💓روحانی تسکین💖
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَعَلَىٰ آلِ مُحَمَّدٍ، كَمَا صَلَّيْتَ عَلَىٰ إِبْرَاهِيمَ وَعَلَىٰ آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ.
اللَّهُمَّ بَارِكْ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَعَلَىٰ آلِ مُحَمَّدٍ، كَمَا بَارَكْتَ عَلَىٰ إِبْرَاهِيمَ وَعَلَىٰ آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ #📖نبی ﷺ کا فرمان♥ #🕌دینی مسائل🕮 #🥰 الله اکبر 🤗 #📝اسلام کا پیغام 🕌 #💓روحانی تسکین💖