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#Sanskrit Shlok #sanskrit post #bhakti #🗞️3 अगस्त के अपडेट 🔴 #by sameer dharmik
Sanskrit Shlok - সন্্সাপামনা ক্ষা কল- सन्ध्यां जपंस्तिष्ठन्नैशमेनो व्यपोहति। qaf पश्चिमां तु समासीनो मलं हन्ति दिवाकृतम् ।। ७७ ।।  [ २ १०२ ] (দুন  797  f87) [ मनुष्य ] सन्ध्यां प्रातःकालीन सन्ध्या में बैठकर अर्थसहित जप करके ( नैशम्+्एनः व्यपोहति ) रात्रिकालीन मानसिक मलिनता या दोषों को दूर करता है ( पश्चिमां तु समासीनः ) और सायंकालीन सन्ध्या करके ( दिवा- कृतं मलं हन्ति ) दिन में संचित मानसिक मलिनता या [अभिप्राय यह है कि दोनों दोषों को नष्ट करता है पूर्ववेला में आये दोषों पर समय सन्ध्या करने से चिन्तन मनन और पश्चात्ताप करके उन्हें आगे न करने के लिए संकल्प किया जाता है तथा गायत्री जप द्वारा ईश्वर की उपासना से अपने संस्कारों को शुद्ध-पवित्र है ] II७७ I११ बनाया जा सकता तज्जपस्तदर्थभावनम् II २८ II ३ँकारका जप ( और ) ; तदर्थभावनम्=उसके अर्थस्वरूप तज्जपः=उस परमेश्वरका चिन्तन ( करना चाहिये साधकको   ईश्वरके जप और उसके व्याख्या नामका स्वरूपका चाहिये। * स्मरण- चिन्तन करना সন্্সাপামনা ক্ষা কল- सन्ध्यां जपंस्तिष्ठन्नैशमेनो व्यपोहति। qaf पश्चिमां तु समासीनो मलं हन्ति दिवाकृतम् ।। ७७ ।।  [ २ १०२ ] (দুন  797  f87) [ मनुष्य ] सन्ध्यां प्रातःकालीन सन्ध्या में बैठकर अर्थसहित जप करके ( नैशम्+्एनः व्यपोहति ) रात्रिकालीन मानसिक मलिनता या दोषों को दूर करता है ( पश्चिमां तु समासीनः ) और सायंकालीन सन्ध्या करके ( दिवा- कृतं मलं हन्ति ) दिन में संचित मानसिक मलिनता या [अभिप्राय यह है कि दोनों दोषों को नष्ट करता है पूर्ववेला में आये दोषों पर समय सन्ध्या करने से चिन्तन मनन और पश्चात्ताप करके उन्हें आगे न करने के लिए संकल्प किया जाता है तथा गायत्री जप द्वारा ईश्वर की उपासना से अपने संस्कारों को शुद्ध-पवित्र है ] II७७ I११ बनाया जा सकता तज्जपस्तदर्थभावनम् II २८ II ३ँकारका जप ( और ) ; तदर्थभावनम्=उसके अर्थस्वरूप तज्जपः=उस परमेश्वरका चिन्तन ( करना चाहिये साधकको   ईश्वरके जप और उसके व्याख्या नामका स्वरूपका चाहिये। * स्मरण- चिन्तन करना - ShareChat

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