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#गुरु जी की वाणी
गुरु जी की वाणी - मान कषाय तो एक होती है लेकिन मान के निमित्त अनेक बन जाते हैं। जब व्यक्ति अपनी प्रीस्टेज बना लेता है तो वह न तो धर्म को देखता है, न अधर्म को, न प्रभावना को देखता है, न अप्रभावना को। इसी अहंकार दुर्थोधन, कॅंस का fदिनाश कियाi ने रावण , विश्व के अंदर एक भी ऐसा देश नहीं है তী ক্িমী ন ক্িমী থম ব্ী ন সাননা কী, अपने आप को शिक्षित व वैज्ञानिक कहने वाला अमेरिका भी अदृश्य शक्ति को मानता है कि धर्म कोई चीज है और सिद्ध 8, 5## धर्म को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। नियम है जिन्हें जैनियों के तो ऐसे आदर्श व्यक्ति यदि अपना ले तो परमार्थ की सिद्धि होगी या नहीं लेकिन संसार की सिद्धि उसे जरूर हो जाएगी| मान कषाय तो एक होती है लेकिन मान के निमित्त अनेक बन जाते हैं। जब व्यक्ति अपनी प्रीस्टेज बना लेता है तो वह न तो धर्म को देखता है, न अधर्म को, न प्रभावना को देखता है, न अप्रभावना को। इसी अहंकार दुर्थोधन, कॅंस का fदिनाश कियाi ने रावण , विश्व के अंदर एक भी ऐसा देश नहीं है তী ক্িমী ন ক্িমী থম ব্ী ন সাননা কী, अपने आप को शिक्षित व वैज्ञानिक कहने वाला अमेरिका भी अदृश्य शक्ति को मानता है कि धर्म कोई चीज है और सिद्ध 8, 5## धर्म को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। नियम है जिन्हें जैनियों के तो ऐसे आदर्श व्यक्ति यदि अपना ले तो परमार्थ की सिद्धि होगी या नहीं लेकिन संसार की सिद्धि उसे जरूर हो जाएगी| - ShareChat

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