रहस्य खुला: प्राण-प्रतिष्ठा — कैसे एक मूर्ति में 'आत्मा' का अनुभव उभरता है? 🔥 प्राण-प्रतिष्ठा वह वैदिक अनुष्ठान है जिसमें मंत्रों से देवता को मूर्ति में आमंत्रित कर मंदिर को 'जीवित' किया जाता है — यानी प्रतिमा में आध्यात्मिक उपस्थिति स्थापित करना। दिलचस्प बात यह है कि परंपरा कहती है कि मूर्ति की शिल्प-सुंदरता मायने नहीं रखती; साधारण पत्थर भी जब प्रतिष्ठित हो जाता है तो उतना ही पवित्र माना जाता है और कई ज्योतिर्लिंगों को भी सदियों पहले इसी प्रकार 'जगाया' गया बताया जाता है। आजकल यह क्रम फिर चर्चा में है — अयोध्या के श्री राम मंदिर में 22 जनवरी 2024 को प्रमुख प्राण-प्रतिष्ठा हुई और जून 2025 में मंदिर परिसर के कई नए मंदिरों की प्रतिष्ठा के आयोजनों ने इस विषय को ट्रेंड में बनाए रखा। वैज्ञानिक व तर्कसंगत दृष्टि से मंत्रों और सामूहिक अनुष्ठानों का असर मस्तिष्क-तरंगों और हृदय-स्वायत्तता पर नापे जा चुके हैं: chanting से दिमाग़ में विश्राम-संबंधी तरंगें और भावनात्मक स्थिरता आते हैं, जिससे भक्तों को 'दिव्य अनुभव' महसूस होता है — पर यह जैविक जीवन का पत्थर में प्रवेश नहीं, बल्कि मनो-न्यूरोफिजियोलॉजिकल और सामुदायिक प्रभाव है। "जब मंत्र भीतर उतरते हैं, तो पत्थर में नहीं, पर हमारे भीतर रोशनी जल उठती है" — धर्मिक श्रद्धा और वैज्ञानिक विश्लेषण दोनों मिलकर यही बतलाते हैं: पवित्रता का वास्तविक माप अनुभव और सामाजिक अर्थ है, न कि केवल भौतिक रूप। ✨🙏 #प्राणप्रतिष्ठा #PranaPratishtha #राममंदिर #VedicRitual #धर्म
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