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✍️ साहित्य एवं शायरी - "ज़़िंदगी जब्र-ए॰ मुसलसल की तरह काटी है" "जाने किस जुर्म की पाई है सज़ा याद नहीं. ..!! "ज़़िंदगी जब्र-ए॰ मुसलसल की तरह काटी है" "जाने किस जुर्म की पाई है सज़ा याद नहीं. ..!! - ShareChat

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